जेहन में अब भी वो दीपावली है, जानें पटना के ये पांच प्रमुख हस्ती कैसे करते हैं बचपन की दिवाली को याद

त्योहारों का स्वरूप भले ही समय के साथ बदलता रहे, लेकिन आदमी को पुराने स्वरूप को नहीं भुलता है. प्रभात खबर ने इन्हीं बातों को लेकर शहर के चुनिंदा लोगों से बात की और उनसे पूछा कि बचपन में वो दिवाली के त्योहार को कैसे मनाते हैं. उनके लिए दिवाली कैसे खास था. पेश है खास बातचीत की रिपोर्ट...

By Prabhat Khabar News Desk | November 12, 2023 3:26 PM
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पटना. बचपन के त्योहार की बातें ताउम्र आदमी के जेहन में बनी रहती हैं. त्योहारों का स्वरूप भले ही समय के साथ बदलता रहे, लेकिन आदमी को पुराने स्वरूप को नहीं भुलता है. प्रभात खबर ने इन्हीं बातों को लेकर शहर के चुनिंदा लोगों से बात की और उनसे पूछा कि बचपन में वो दिवाली के त्योहार को कैसे मनाते हैं. उनके लिए दिवाली कैसे खास था. पेश है खास बातचीत की रिपोर्ट…

दिवाली के दिन पढ़ना अनिवार्य था : डीएम

डीएम डॉ चंद्रशेखर सिंह ने बचपन की दिवाली को लेकर कहा कि दिवाली में गांव में रहते थे. परिवार के सदस्यों के साथ घर व आसपास में साफ-सफाई के लिए दिवाली से एक सप्ताह पहले से लगते थे.काम सौंपा जाता था. दिवाली के दिन दीये जलाने का खूब शौक रखते थे. परिवार के सदस्यों से दिये लेकर जलाते थे. पटाखा मिलता नहीं था. बहुत कम आता था.दिवाली के दिन पढ़ना अनिवार्य रहता था. जिससे एक साल तक पढ़ाई कर सके. पहले की अपेक्षा काफी बदलाव हुआ है. उन्होंने बातचीत में कहा कि जिस तरह से हवा की गुणवत्ता खराब हो रही है. ऐसे में पटाखा नहीं छोड़ें, ग्रीन दिवाली मनायें.

दीपों की जगह चाइनीज झालरों ने ले ली जगह: आइजी विकास वैभव

बचपन से आजतक दीपावली को दीपों का उत्सव मानता आ रहा हूं. अब इस त्योहार के स्वरूप में काफी परिवर्तन आया है. दीप का महत्व पर आज के युवा पीढ़ी का ध्यान नही हैं. दिपावली का अर्थ है अंधकार दूर करें और रोशनी फैलाएं. दीपों की जगह चाइनीज झालरों ने ले ली है. मैं बचपन में मिट्टी से घर कुंडा बनाता था. उसे रंगों से सजाता था. मां बाजार से मिट्टी का कुल्हिया-चुकिया और लावा लाती थी. तरह-तरह के खिलौने मिलते थे, जो अब बहुत कम देखने को मिलते हैं. मिलते भी हैं तो अब उसे कोई खरीदता नहीं. कई परंपराएं हैं जो अब लगभग खत्म हो चुका है. जैसे आज अन्य त्योहारों में मिलन समारोह होता है उसी तरह दीपावली में भी दीपावली मिलन समारोह होता था. परिवार और दोस्त एक-दूसरे के घर पर जाकर बधाई देते थे. मिठाइयां बांटते थे और पर्व को मनाते थे. ये सारी परंपराएं धीरे-धीरे खत्म हो गयी है. चाइनीज लाइटों को छोड़ दीपों से घर-आंगन को सजाएं.

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दीपावली के पहले से ही पटाखे फोड़ने लगते थे : अनिमेष कुमार पराशर, नगर आयुक्त

मुझे बचपन से दीपावली का पर्व बहुत पसंद है. स्कूल के समय में औरंगाबाद में हम इसे मानते थे. हमारे पास ढेर सारे पटाखों का स्टॉक होता था, जिसमें हर तरह के पटाखे शामिल रहते थे. दीपावली के पहले से ही हम पटाखे फोड़ने लगते थे. कॉलेज के दिनों में दिवाली और भी अच्छी होती थी. आइआइटी खड़गपुर में लगभग एक महीने पहले से ही दीवाली फेस्टिवल की तैयारियां शुरू हो जाती थी. कॉलेज में ये सबसे बड़ा फेस्टिवल होता था. हम स्टूडेंट्स मिलकर मस्ती करते थे. सर्विस में आने के बाद ये सब चीजें थोड़ी सीमित हो गयी. अब प्रदूषण नियंत्रण में लगे रहते हैं. स्प्रिंकलर, एन्टी स्मोग गन सहित मशीनों के माध्यम से वायु प्रदूषण को रोकने के उपाय पर विशेष ध्यान होता है. परिवार एवं मित्रों के साथ मिठाई और दीयों के साथ दीपावली मानते हैं.

मिट्टी के दीप जलाकर बनाते थे दीपावली : डॉ जीके पाल, निदेशक पटना एम्स.

वैसे तो बचपन का हर दिन ही अच्छा था. लेकिन बचपन की यादें ऐसी होती हैं कि हम कम से कम दिवाली में तो बच्चा बन ही जाना चाहते हैं. मुझे दीपावली का त्योहार बहुत पसंद है. बचपन से ही मैं इस त्योहार को खुशियों व अपने सगे संबंधियों के साथ मनाते आ रहा हूं. मेरा बचपन का जीवन गांव में बीता. जब छोटा था उस समय मिट्टी का दीप जलाकर अपने माता-पिता के साथ दीपावली मनाता था. आज भी में अपने बचपन की तरह की दीप ही जलाता हूं. मुझे आवाज करने वाले पटाखे, धुआं शुरू से ही पसंद नहीं है. ऐसे में मैं सभी लोगों से अपील करता हूं कि वह इको फ्रेंडली दिवाली मनाएं. साथ ही इस दिवाली में अपने सेहत पर विशेष ध्यान रखें.

घर की सफाई में जुटे रहते थे बच्चे, मिट्टी के दीपों से सजता था आंगन : प्रो केसी सिन्हा

पटना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो केसी सिन्हा ने बचपन की दीपावली की यादों को साझा करते हुए कि दीपावली से दो तीन दिन पहले से ही परिवार के बच्चे घर की साफ-सफाई में जुट जाते थे. इसके साथ ही दिये के बाती तैयार करते थे. दीपावली के दिन एक-एक कर हम सभी दिये को आंगन से लेकर घर के बाहर तक सजाते थे. पूजा के बाद सभी भाई-बहन को फुलझड़ी जालने का इंतजार रहता था. वक्त बदलने के साथ ही अब दिये की जगह सीरीज बल्ब ने जगह ले ली है. लेकिन आज भी मैं अपने घर में मिट्टी के दीप जरूर जलाता हूं. दीपावली पर लोगों को शुभकामनाएं देते हुए पर्यावरण संरक्षण का भी ख्याल रखने की सलाह देता हूं.

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