Pitru Paksha 2022: पितृपक्ष में करें इन चीजों का दान, घर में बनी रहेगी सुख-समृद्धि और शांति

Pitru Paksha 2022: पितृपक्ष में इन चीजों में से किसी एक चीज का दान करने पर पितर की शांति मिलती है. इसके साथ ही घर में सुख-समृद्धि और शांति आती है. पितृपक्ष और श्राद्ध पक्ष में इन वस्तुओं का दान करने से महापुण्य की प्राप्ति होती है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 20, 2022 12:56 PM
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Pitru Paksha 2022: इस समय पितृपक्ष का दौर चल रहा है. पितृपक्ष को श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है. इस दौरान श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व होता है. पितृपक्ष में परिजन अपने पितर को पिंडदान, तर्पण और पितरों की मृत्यु तिथि पर उनके नाम पर श्राद्ध करते है. इससे पितृ प्रसन्न होकर परिजनों को आशीर्वाद देते है. श्राद्ध पक्ष में एकादशी तिथि का खास महत्व होता है. मान्यता है कि पितृपक्ष में इन चीजों में से किसी एक चीज का दान करने पर पितर की शांति मिलती है. इसके साथ ही घर में सुख-समृद्धि और शांति आती है. पितृपक्ष और श्राद्ध पक्ष में इन वस्तुओं का दान करने से महापुण्य की प्राप्ति होती है.

इनमें से करें किसी एक का दान आएगी सुख-समृद्धि

चांदी का दान- शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष में चांदी दान करने पर शुभ फल मिलता है. मान्यता है कि जिस तिथि को आप श्राद्ध कर रहें है उसी दिन ब्राह्मण को चांदी की कोई वस्तु दिान करना चाहिए. अगर आप उस दिन नहीं दे पाये तो सर्व पितृ अमावस्या को चांदी की कोई वस्तु किसी ब्राह्राण को दान कर सकते है. चांदी का संबंध चंद्र ग्रह से होता है. इसलिए चांदी दान करने पर चंद्रदेव की कृपा बरसती है.

काले तिल का दान करना

पितृपक्ष में काले तिल का दान जरूर करना चाहिए. मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में जो व्यक्ति ब्राह्मण या गरीब को भोजन कराने में असमर्थ है, उन्हें पूर्वजों का ध्यान करते हुए एक मुट्ठी काला तिल दान करना चाहिए. इससे पितृ प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं. जिससे घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है.

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गुड़ का दान

पितृपक्ष में गुड़ के दान करने का विशेष महत्व होता है. गुड़ का दान करने से धन आगमन के मार्ग खुल जाते हैं. मान्यता है कि गुड़ की दान करने से सूर्य की कृपा बनी रहती है.

अन्न दान महादान

पितृपक्ष में अन्न का दान महादान माना जाता है. इससे पितरों को तृप्ति मिलती है. उनके आशीर्वाद से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है.

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