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शराबबंदी नहीं बिहार में ये कानून है सुपर फ्लाप, दर्ज होते हैं उत्पीड़न के मामले, पर लेन-देन की कोई शिकायत नहीं

बिहार में यह कानून पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है. वैसे 2018 में नीतीश कुमार ने दहेज न लेने-देने की अभियान चलाकर सभी सरकारी व जनप्रतिनिधियों से शथपत्र भरवाया था, लेकिन वर्तमान में दहेज न लेने-देने का शपथपत्र भरने वाले ही डिमांड सूची लंबी करते जा रहे हैं.

कंचन कुमार, बिहारशरीफ. बिहार में दहेजबंदी कानून सबसे पहले 1886 में दरभंगा रियासत में लागू हुआ. वैसे दहेजबंदी कानून की मांग करनेवाले प्यारे लाल भोजपुर जिले से थे. करीब 140 साल पहले बने इस कानून को आजादी से पहले ही केंद्रीय सरकार ने अपना लिया. आजाद भारत में भी कई बार इस कानून में संशोधन किये गये. इसके बावजूद यह कानून अब तक कारगर साबित नहीं हुआ है. साल दर साल दहेज लेन-देन और दहेज उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ती जा रही है. बिहार में यह कानून पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है. वैसे 2018 में नीतीश कुमार ने दहेज न लेने-देने की अभियान चलाकर सभी सरकारी व जनप्रतिनिधियों से शथपत्र भरवाया था, लेकिन वर्तमान में दहेज न लेने-देने का शपथपत्र भरने वाले ही डिमांड सूची लंबी करते जा रहे हैं.

कानून को लेकर कोई गंभीर नहीं

इस कानून को लेकर न समाज गंभीर है और न सरकार गंभीर है. ग्रामीण स्तर के जनप्रतिनिधि से लेकर जिला स्तरीय जनप्रतिनिधि और अधिकारी दहेज न लेने-देने सामाजिक जागरुकता में रुचि नहीं दिखा रहे हैं. 23 नवंबर से विवाह मुहूर्त शुरू हो गया. हर साल की तरह इस साल भी जनप्रतिनिधि से लेकर नौकरी पेशा वाले लड़का-लड़की की शादियों में पानी की तरह रुपये बहाये जा रहे हैं. बड़े पैमाने पर दहेज के लेन-देन की बातें सामने आ रही हैं, इसके बावजूद न कहीं से शिकायत आ रही है न ही अब तक प्रशासन की ओर से बैंड, बाजा और बारात के खिलाफ कार्रवाई की पहल नहीं की गई है.

फाइलों में ही दब कर रह गया शपथ पत्र

हालात ये है कि नौकरी वाले लड़के की डिमांड पूरा करने में जीवन की जमा पूंजी के साथ कर्जदार बन रहे हैं. वर्तमान में नौकर पेशा परिवारों ही सबसे अधिक दहेज व अन्य डिमांड लड़की वालों से कर रहे हैं. बाल विवाह और दहेज प्रथा निषेध के प्रति आम लोगों को जागरूकता लाने के लिए जनवरी 2018 में 435 किलोमीटर लंबा मानव श्रृखंखा बना था, जिसमें 15 लाख 57 हजार 78 लोगों ने शामिल हुए थे. बावजूद अब तक दहेज न लेने न देने के सभी शपथ पत्र फाइलों में ही दब कर रह गया.

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इन लोगों को सौंपी गयी थी दहेजबंदी की जिम्मेदारी

वर्ष 2018 में ही सरकार की ओर से बाल विवाह और दहेज प्रथा के प्रति अंकुश लगाने के लिए वार्ड सदस्य, मुखिया समेत सभी जनप्रतिनिधियों से लेकर बीडीओ, अनुमंडल पदाधिकारी और पंचायत राज पदाधिकारी, कलयाण पदाधिकारी व जिला पदाधिकारी को जिम्मेवारी सौंपी गई थी. फिर भी चार वर्ष गुजरने के बाद भी जनप्रतिनिधियों से लेकर अधिकारियों द्वारा दहेज विवाह के प्रति कोई गंभीरता नहीं दिखायी गई है.

प्रत्येक माह में दहेज प्रताड़ना के 12 से 18 मामले दर्ज

वहीं आम लोगों को अपनी बेटी की शादी में दहेज देने के दौरान कोई शिकायत नहीं रहती है. दूसरी ओर प्रतिमाह विभिन्न थाने में 12 से 18 दहेज हत्या व दहेज प्रताड.ना के मामले दर्ज हो रहे हैं. साथ ही हरेक माह दहेज प्रताड.ना के दर्जनों मुकदमें न्यायालय में भी दाखिल किये जा रहे हैं. सामजिक व परिवारिक स्तर की अनदेखी कर रचाई गई बेमेल शादियों में पति-पत्नी के बीच उत्पन्न विवादों में फैमली कोर्ट में भी आधा दर्जन मामले हरेक माह पहुंच रहे हैं. फिर भी दहेज प्रथा के खिलाफ प्रशासन कोई जागरूकता लाने की पहल नहीं कर रहा है.

तीन साल की कैद और जुर्माना का है प्रावधान

बिहार पंचायत राज अधिनियम 2006 की धारा 22 एवं 47 के अंतर्गत क्रमश: ग्राम पंचायत एवं पंचायत समिति को महिला एवं बाल कार्यक्रमों में सहभागिता करने का दायित्व सौंपा गया था. दहेज के लिए उत्पीड.न करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए, जो कि पति और उनके रिश्तेदारों द्वारा संपत्ति अथवा कीमती वस्तुओं के लिए अवैधानिक मांग के मामले से संबंधित है. इसको लेकर तीन साल की कैद और जुर्माना का प्रावधान है.

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