बिहार में युवाओं को ऑनलाइन गेमिंग से फांस रहे नशे के कारोबारी, शिकायत के बाद इओयू ने बढ़ाई सतर्कता
नशे के कारोबारी इसका इस्तेमाल कर न सिर्फ युवाओं तक नशीली दवाएं पहुंचा रहे हैं, बल्कि डार्क नेट के जरिये बड़ी मात्रा में पैसों का लेन-देन भी कर रहे हैं. बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई (इओयू) को ऐसी कई शिकायतें मिलने के बाद इसको लेकर सतर्कता बढ़ा दी गयी है.
पटना. ऑनलाइन गेमिंग की लत के कारण बच्च चिड़चिड़ा और डिप्रेशन के शिकार तो हो ही रहे हैं, अब इसके माध्यम से तस्कर अपने नशे का कारोबार भी बढ़ाने में लगे हैं. नशे के कारोबारी इसका इस्तेमाल कर न सिर्फ युवाओं तक नशीली दवाएं पहुंचा रहे हैं, बल्कि डार्क नेट के जरिये बड़ी मात्रा में पैसों का लेन-देन भी कर रहे हैं. बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई (इओयू) को ऐसी कई शिकायतें मिलने के बाद इसको लेकर सतर्कता बढ़ा दी गयी है.
कोडवर्ड और इमोजी का कर कर रहे इस्तेमाल
जानकारों के मुताबिक ऑनलाइन गेम में यूजर किसी से भी जुड़ सकते हैं. इसमें वे किशोरों और अजनबी लोगों से मैसेज और कॉल के जरिये बात कर सकते हैं. इसमें बहुत कुछ यूसर्ज के कंट्रोल में नहीं होता है. गेम के दौरान किये जाने वाले मैसेज को जानना बहुत कठिन है. नारकोटिक्स तस्कर इसका फायदा उठाते हुए युवाओं तक नशे की खेप पहुंचा रहे हैं. इस गोरखधंधे में शामिल तस्करों ने पकड़े जाने से बचने के लिए कोड वर्ड का ईजाद किया है. ड्रग डीलर, गांजा, कोकीन, मारिजुआना आदि के लिए अलग-अलग कोड वर्ड का इस्तेमाल करते हैं, जिसे केवल इसमें शामिल लोग ही समझ सकते हैं. इसके माध्यम से नशीले पदार्थों की सप्लाई की जाती है.
अनजान जगहों से पैसे का हो रहा लेन-देन
इओयू के मुताबिक बड़ी मात्रा में पैसों के लेन-देन में भी डार्क नेट का इस्तेमाल हो रहा है. डार्क नेट इंटरनेट का वह अदृश्य भाग है, जिसकी सामान्य रूप से निगरानी नहीं की जा सकती है. पैसों का लेन-देन करने वालों में नारकोटिक्स तस्करों की बड़ी संख्या बतायी जा रही है. इओयू निकट भविष्य में अपने लैब को उन्नत बनाते हुए डार्कनेट लैबोरेटरी बनाने जा रही है, ताकि इसके माध्यम से होने वाले लेन-देन पर नजर रखी जा सके.
हॉट-स्पॉट व व्यक्तियों को किया जा रहा चिह्नित
इओयू के अधिकारियों ने बताया कि नशे के प्रकोप से युवाओं को बचाने के लिए इकाई की तरफ से स्कूल-कॉलेजों में अभियान चलाया जा रहा है. इसके साथ ही जिला पुलिस के साथ मिल कर संवेदनशील हॉट-स्पॉट व व्यक्तियों को चिह्नित करते हुए उनके विरुद्ध कार्रवाई भी की जा रही है. इसके स्रोत को पकड़ने के लिए दवाएं बनाने वाली कंपनियों की भी निगरानी हो रही है. इसके लिए ड्रग कंट्रोलरों से उनका डेटा लिया जा रहा है.