Exclusive: महज 20 वर्षों में ठनका बन गया बिहार में कहर, जानें क्या रहे इसके कारण
बादल धरती के मात्र 400 मीटर ऊपर से ही ठनका गिरा रहे हैं. कई बार तो ये बादल 400 मीटर से भी नीचे आ रहे हैं. बादलों के नीचे आने का यह ट्रेंड पिछले तीनचार साल से हीदेखा जा रहा है. पहले ऐसा नहीं . पढ़िए राजदेव पांडेय की रिपोर्ट.
तापमान में 0.5 से एक डिग्री सेल्सियस का इजाफा और घटते सतही पानी ने बिहार में ठनके के कहर को बढ़ा दिया है. क्लाइमेट चेंज के कारण बिहार में इन दिनों ठनके वाले कपासी बादलों के बनने कीदर बढ़ी है. ये बादल धरती के मात्र 400 मीटर ऊपर से ही ठनका गिरा रहे हैं. कई बार तो ये बादल 400 मीटर से भी नीचे आ रहे हैं. बादलों के नीचे आने का यह ट्रेंड पिछले तीनचार साल से हीदेखा जा रहा है. पहले ऐसा नहीं . पढ़िए राजदेव पांडेय की रिपोर्ट.
आइएमडी के क्षेत्रीय निदेशक विवेक सिन्हा के अनुसार अप्रैल से जुलाई तक हर माह दो से ढाई लाख लाइटनिंग (ठनका) की घटनाएं बिहार के आकाश में होती है. प्रारंभिक आकलन के मुताबिक इसमें करीब 10 फीसदी तक इजाफा दिख रहा है. हालांकि, अभी अभी इसका मूल्यांकन जारी है. बादलों का निचला आधार काफी नीचे आ रहा है.
ठनके की संभावना 10 फीसदी अधिक
ऊपरी आधार 18 किमी तक पहुंच जाता है. चूंकि बादल काफी नीचे आ रहेहैं, इससे इनकी घातकता अधिक है. ऐसे में बादल और धरातल के बीच कोई बाधा नहीं होती है. सिन्हा नेबताया कि सतह या वातावरण के औसत तापमान में एक डिग्री सेल्सियस के इजाफे से ठनके की संभावना 10 फीसदी अधिक हो जाती है.
ठनकों की संख्या में भारी वृद्धि
क्लाइमेट रेजिलिएंट ऑबजर्विंग सिस्टम प्रमोशन काउंसिल के मुताबिक पिछले तीन साल में बिहार में क्लाउट टू ग्राउंड ठनका की संख्या (एक अप्रैल से 31 मार्च तक ) वर्ष 2019-20 में 1471 थी. 2020 -2021 में 3520 और 2021-22 में 2692, 2022-23 में यह आंकड़ा 1020 पार कर गयी. जबकि, अभी साल के नौ माह बाकी हैं. इससे पहले के वर्षों में यह संख्या काफी कम हुई करती थी.
मौत के आंकड़े आश्चर्यजनक
बिहार में पिछले दो दशकों में ही सबसे ज्यादा जलवायुविक बदलाव के असर देखे गये हैं. वर्ष 2000 से पहले बिहार में ठनका कोई बड़ी मुसीबत नहीं थी. उदाहरण के लिए बिहार में 2001 में ठनके से केवल 34 मौत हुई थीं. 2009 तक यह संख्या 81 या इससे कम ही रही.2010 में यह आंकड़ा सौ पार हो गया. 2020 में 459 पार हो गया. हालांकि 2021 मे यह आंकड़ा 280 और 2022 में अब तक 194 हो गया है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
निश्चित तौर पर पिछले एक दशक में बिहार में आकाशीय बिजली की घटनाएं बढ़ी हैं. इनका सीधा संबंध क्लाइमेट चेंज से है. दरअसल, जब तक बिहार में ग्राउंड लेवल पर इन घटनाओं को रोकने पॉलिसी तैयार नहीं होती,जब तक होने वाली मौतों को रोका नहीं जा सकता है. इसके लिए बड़े स्तर जागरुकता अभियान चलाना होगा. झारखंड इसका मॉडल स्टेट है.
– कर्नल संजय श्रीवास्तव, निदेशक
क्लाइमेट रेजिलिएंट ऑबजर्विंग सिस्टम प्रमोशन काउंसिल, भारत
ऐसी बढ़ीं ठनके से होने वाली मौतें
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2001 34
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2002 22
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2003 58
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2004 31
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2005 35
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2006 73
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2007 55
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2008 63
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2009 81
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2010 142
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2011 197
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2012 232
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2013 273
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2014 188
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2015 158
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2016 243
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2017 514
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2018 277
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2019 221
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2020 459
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2021 280
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2022 194 –29 जुलाई तक