बिहार का पाकिस्तान पट्टी: जहां मां दुर्गा का है प्रसिद्ध मंदिर, श्रद्धालुओं की उमड़ती भीड़, जानें महत्व
बिहार में पूर्णिया जिले के अंदर एक पाकिस्तान पट्टी है जहां मां दुर्गा की एक प्राचीन मंदिर है. गुलाबबाग स्थित पाकिस्तान पट्टी में पिछले करीब छह दशकों से आदिशक्ति का अनुष्ठान हो रहा है. जानिये यहां की विशेषता...
Durga puja 2022: बिहार में एक पाकिस्तान भी है और यहां धूम-धाम से दुर्गा पूजा भी मनाया जाता है. चौंकिये मत, पूर्णिया जिला मुख्यालय से सटे गुलाबबाग स्थित पाकिस्तान पट्टी में पिछले करीब छह दशकों से आदिशक्ति का अनुष्ठान हो रहा है. वैसे, अब इस इलाके को पुराना सिनेमा रोड के नाम से पुकारा जाता है. अहम यह है कि इस दुर्गा मंदिर में पूजन की बंगला संस्कृति प्रभावी है. इस मंदिर से पूरे गुलाबबाग की आस्था जुड़ी हुई है.
भक्तों की आस्था
कहते हैं यहां आस्था व निष्ठा के साथ पूजा करने पर भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है. यही वजह है कि यहां पूजा के समय हर घर के लोग जुटते हैं. पूजा की समाप्ति के बाद ही घर में भोजन की परंपरा है. एक खास बात यह भी है कि यह पूजा स्थल शहरी क्षेत्र में जरूर है पर ग्रामीणों की भीड़ यहां खूब जुटती है. ग्रामीण महिलाएं बड़ी आस्था के साथ चढ़ावा चढ़ाती हैं और मनौती मांगती हैं.
पूजन की बंगला पद्धति
इस मंदिर की खासियत है कि यहां आज तलक बंगला पद्धति से पूजा होती हैं. सचिव श्री भगत बताते हैं कि पूरी पूजा प्रक्रिया बंगला पद्धति पर आधारित है. पूजन की यह परंपरा शुरुआती दौर से ही चल रही है. आरंभिक काल से चूंकि यहां बंगाली समाज की आबादी रही है इस लिए बंगाल की संस्कृति की झलक है.
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सांस्कृतिक गतिविधियां
दुर्गा पूजा के दौरान यहां सांस्कृतिक गतिविधियां काफी तेज हो जाती हैं. बंगाल से माता की जगराता के लिए कलाकार बुलाए जाते हैं तो स्थानीय स्तर पर भी कला और संस्कृति के कई कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं.
1966 में पूजन अनुष्ठान की शुरुआत
यहां पूजन अनुष्ठान की शुरुआत 1966 में हुई. उस समय के स्थानीय लोगों के मन में अचानक पूजा की भावना आयी. पालो दास, सुनील दास, आशुतोष दास, नारायण कुंडू आदि समेत कई स्थानीय नागरिकों ने आपस में सहमति बनायी. फिर आपसी विचार-विमर्श के बाद समिति का गठन कर लोगों को दायित्यव सौंपा गया और इसके बाद पूजा शुरु कर दी गयी.
मंदिर के बारे में जानें
शुरुआती दौर में यहां बंगाल के मुर्तिकारों द्वारा प्रतिमा का निर्माण करा कर पूजा की जाती थी. पूजा समिति के सचिव अजीत भगत बताते हैं कि 2006 में मंदिर में देवी की संगमर्मर की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की गयी. इसके बाद मंदिर को भव्य रुप दिया गया. आज यह मंदिर स्थानीय लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है.