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Bhagalpur: सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल,भागलपुर में इन जगहों पर मुस्लिम कलाकर बना रहे दुर्गा पूजा पंडाल

Durga puja 2022: भागलपुर के अधिकतर पूजा पंडालों में मुस्लिम धर्मावलंबी मंदिर व अन्य स्वरूप देने का काम कर रहे हैं. इतना ही नहीं वे पूजन सामग्री बेचने से लेकर मां की चुनरी बनाने का भी काम कर रहे हैं. काम में उनकी श्रद्धा देखते ही बन रही है.

भागलपुर, दीपक राव: बिहार में चारों तरफ दुर्गा पूजा को लेकर माहौल बनने लगा है. इसमें पूजा पंडाल के कलाकार से लेकर मूर्तिकारों की बड़ी भूमिका है. दरअसल एक माह पहले से ही कलाकारों ने अपने सृजन से कला की पूजा और श्रम का हवन शुरू कर दिया था. इसी का नतीजा है कि पंडाल का स्वरूप महल, मंदिर व विभिन्न प्रकार के ऐतिहासिक भवन में दिखने लगा है.

शहर के मारवाड़ी पाठशाला, मुंदीचक गढ़ैया, सत्कार क्लब की ओर से कचहरी चौक, आदमपुर चौक, दुर्गाबाड़ी, कालीबाड़ी, हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी, मंदरोजा, बड़ी खंजरपुर, रिफ्यूजी कॉलोनी-काजीपाड़ा बरारी आदि स्थानों पर विभिन्न स्वरूप में पंडाल को सजाया जा रहा है.

मुस्लिम कलाकर बना रहे पूजा पंडाल

भागलपुर के अधिकतर पूजा पंडालों में मुस्लिम धर्मावलंबी मंदिर व अन्य स्वरूप देने का काम कर रहे हैं. इतना ही नहीं वे पूजन सामग्री बेचने से लेकर मां की चुनरी बनाने का भी काम कर रहे हैं. काम में उनकी श्रद्धा देखते ही बन रही है. इससे सांप्रदायिक सौहार्द कायम हो रहा है. एक-दूसरे समुदाय के बीच मेलजोल को बढ़ावा मिल रहा है.

अब्दुल मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, बेंगलुरु में सजा चुके हैं पंडाल

मारवाड़ी पाठशाला में जुबक संघ की ओर से अयोध्या का श्रीराम मंदिर आकर्षक बांस से बनाया जा रहा है. इसमें कोलकाता के अब्दुल के संचालन में 15 कलाकार काम कर रहे हैं. अब्दुल ने बताया कि वे एक माह पहले ही पंडाल सजाने का काम शुरू कर चुके हैं. 19 साल से पंडाल सजाने का काम कर रहे हैं. अब तक बेंगलुरु, कोलकाता, मुंबई, दिल्ली आदि महानगरों में बांस, कपड़ा, लोहा व अन्य मेडल से पंडाल को सजाते हैं. कोलकाता के ही जमाल ने बताया कि अब तक ताजमहल, दक्षिणेश्वर मंदिर समेत अन्य धार्मिक स्थल के स्वरूप का पंडाल सजा चुके हैं. आयोजक जिस तरह की तस्वीर उपलब्ध कराते हैं, उसी तरह हू-ब-हू पंडाल सजाते हैं. उनका धर्म अलग जरूर है, लेकिन श्रद्धालुओं की श्रद्धा का ख्याल जरूर करते हैं.

मन्नान व कुर्बान सजा रहे मां का दरबार

मुंदीचक गढ़ैया में मालदा के सबीउल 15 वर्षों से पंडाल सजाने आते हैं. सबीउल का कहना है कि एक माह में कम से कम 20 हजार रुपये तक की कमाई हो जाती है. अधिकतर स्थानों पर मंदिर के स्वरूप में पंडाल सजाते हैं. इससे श्रद्धापूर्वक काम करते हैं, ताकि कला में किसी तरह का कोई भेद न दिखे. उनके साथ जलाल, आलीम भी काम कर रहे हैं. आठ कलाकार मां का दरबार सजा रहे हैं. यहां इस बार केदारनाथ के स्वरूप का पंडाल सजाया जा रहा है.आलीम ने बताया कि कोई भी तस्वीर देखकर ही तय करते हैं कि पंडाल सजाने में कितना समय लगेगा. छोटा पंडाल 15 से 20 दिन, जबकि बड़ा पंडाल दो माह में सजाते हैं.

पूजा पंडाल सजाना है खानदानी काम

जलाल ने बताया कि वे लोग 20 साल से पूजा पंडाल सजा रहे हैं. अब तक बिहार, झारखंड व पश्चिम बंगाल के विभिन्न स्थानों पर पूजा पंडाल सजा चुके हैं. यहां पर थर्मोकोल, कागज, कपड़ा से मंदिर बनाते हैं. अब तो यह खानदानी काम हो चुका है. भूमि पूजन से लेकर मां के पूजन तक अपने काम में समर्पित रहते हैं. धर्म कोई भी हो, श्रद्धा जरूर रखता हूं. दोनों धर्म का मेलजोल बढ़ चुका है.

ऐसा काम, जिससे मिटे भेदभाव

पंडाल सजाने वाले कलाकारों का मानना है कि पंडाल का काम करते-करते भागलपुर से खास लगाव हो गया है. यहां पर पूजा पंडाल में काम करने के दौरान कोई ऐसा काम नहीं करता हूं, जिसे भेदभाव के रूप में देखा जा सके. सहयोग से अन्य लोग प्रेमपूर्वक काम करते हैं. हिंदू भी हमलोगों के त्योहार में सहयोग करते हैं, हमारा सहयोग काम से होता है.

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