Durga Puja 2023: बिहार के एक मंदिर की मान्यता थोड़ी अलग है. यहां बिना रक्त बहाए ही बली दी जाती है. इसके पिछे का रोचक रहस्य भी है. बिहार के मुंडेश्वरी माता मंदिर की परंपरा काफी अलग है. यहां भीड़ भी बहुत अधिक होती है. यहां लोग मन्नत मांगते हैं. इसके बाद मन्नतों के पूरे होने पर भक्त अपने साथ बलि के लिए बकरे लेकर आते हैं. मन्नतों को उतारने के लिए बलि दी जाती है. मन्नतों को उतारने के लिए यहां बलि दी जाती है. श्रद्धालु माता के जयकारे के साथ गर्भगृह में पहुंचते है. इसके बाद बकरे को पंडित को देते हैं. छटपटाते हुए बकरे को उठाने के बाद पंडित उसे माता के सामने रखते है. इस दौरान मंत्र पढ़ने के साथ ही माता का जयकारा लगाया जाता है. मंत्र पढ़ने के बाद माता के चरणों में बकरा बेहोश हो जाता है. इसेक बाद वह ऐसे पड़ा होता है, जैसे कि वह गहरी नींद में हो. इसके बाद फिर से माता का जयकारा लगाकर पंडित मूर्ति को छूकर हार लेते हैं और मंत्र पढ़कर बकरे को फेंक देते हैं. वह बेहोश होने के बाद उठ जाता है. इसके बाद उसे भक्त को वापस कर दिया जाता है.
बकरे के भक्त के पास वापस जाने को और इस पूरी प्रक्रिया को बलि मान लिया जाता है. इसमें ना बकरे की गर्दन कटती है और ना ही खून निकलता है. राज्य के भभुआ के मुंडेश्वरी मंदिर में ऐसी ही अनोखी बलि दी जाती है. पटना से 200 किलोमीटर की दूरी पर सासाराम में यह स्थित है. स्ट्रक्चर के लिहाज से देश में माता का इसे सबसे पुराना मंदिर माना जाता है. बताया जाता है कि पांचवी शताब्दी के आसपास इस मंदिर का निर्माण किया गया था. छठी शताब्दी के दौरान इस मंदिर को पहली बार एक चरवाहें ने देखा था. यह मंदिर अपने इतिहास में रक्तहीन बलि के लिए प्रचलित है. मंत्रों के कारण बकरा बेहोश हो जाता है और इसे ही बलि मान लिया जाता है.
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कैमूर जिले के भभुआ मुख्यालय से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर भगवानपुर ब्लॉक स्थित रामपुर पंचायत में पंवरा पहाड़ी पर मां मुंडेश्वरी देवी का मंदिर है. यह मंदिर पदाड़ पर स्थित है और पहाड़ 600 फीट की उंचाई पर है. सीढ़ियों का प्रयोग करके लोग माता के दर्शन के लिए पहुंचते है. सिर्फ दुर्गा पूजा के मौके पर नहीं बल्कि हर दिन यह मंदिर खुला रहता है. सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक यह मंदिर खुला रहता है. बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों से भी भक्त यहां पहुंचते है. यहां माता के दर्शन के लिए लोग दूर- दूर से आते हैं.
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यहां मंदिर आने वाले श्रद्धालु मन्नत रखते हैं. वहीं, जब उनकी इच्छा और मनोकामना पूरी हो जाती है, तो बकरे की बलि देने आते हैं. मंदिर के पुजारी पिंटू बताते है कि सबसे पहले हवन कुंड पर मन्नत पूरी होने वाले श्रद्धालु का संकल्प कराया जाता है. वहां पर परिवार के लोगों के साथ ही बकरा भी होता है. बकरे को मंदिर के गर्भगृह में ले जाने के बाद माता के चरणों में लेटा दिया जाता है. मंत्र के उच्चारण से बकरा बेहोश हो जाता है. वहीं, पूजा के बाद वह खुद खड़ा हो जाता है. इसे ही बलि मान लिया जाता है. कुछ भक्त बकरे को मंदिर में ही छोड़ देते हैं. वहीं, कुछ भक्त इसे घर ले जाकर बलि देते हैं और इसे प्रसाद के रुप में खाते हैं. बता दें कि इस प्रथा के शुरुआत की जानकारी किसी को भी नहीं है. लेकिन, लोगों के अनुसार सदियों से यह परंपरा चली आ रही है. मान्यताओं के अनुसार यहां चंड और मुंड दो राक्षस रहते थे. इनका माता ने वध किया था. इसके बाद ही इस मंदिर का नाम मुंडेश्वरी देवी पड़ा है.