Durga puja navmi vidhi: शारदीय नवरात्र की नवमी तिथि तीन अक्तूबर सोमवार को संध्या 4:36 बजे शुरू होकर चार अक्तूबर दोपहर 2:21 बजे समाप्त हो रही है. उदयातिथि के अनुसार महानवमी चार अक्तूबर को होगी. शास्त्रों के अनुसार नवमी तिथि के दिन हवन और कन्या पूजन का विधान है.
जगन्नाथ मंदिर के पंडित सौरभ मिश्रा ने बतायाा कि शारदीय नवरात्रि की नवमी तिथि तीन अक्तूबर को संध्या 4:36 बजे शुरू हो रही है. अगले दिन चार अक्तूबर को दोपहर 2:21 बजे खत्म हो रही है. उदयातिथि के अनुसार महानवमी चार अक्तूबर को होगी. हवन के लिए शुभ मुहूर्त प्रात: 6:20 से दोपहर 2:21 बजे तक है. नवरात्रि व्रत-पारण दोपहर 2:21 बजे के बाद कर सकते हैं. ज्योतिषाचार्य डॉ सदानंद झा ने बताया कि नवरात्रि के आखिरी दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा होती है. इस दिन मां दुर्गा के सिद्धिदात्री रूप को तिल या अनार का भोग लगा सकते हैं.
ओम् ऐं हृीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे.
इस मंत्र से नवमी को हवन किया जाता है. इसका विधान भी है. कुछ लोग दुर्गा सप्तशती में वर्णित सात सौ श्लोकों को पढ़ कर भी हवन करते हैं.
हवन में आक, पलास, पीपल और दुम्बर, शमी, दूर्वा, कुश का प्रयोग होता है. यदि यह लकड़ी उपलब्ध नहीं है, तो आम की लकड़ी का भी प्रयोग किया जाता है.
शाकल में तिल व तिल से आधा तंडुल (अरवा चावल), तंडुल का आधा जौ, जौ का आधा गुड़ व सबका आधा घी मिलाया जाता है. इसमें धूप की लकड़ी भी मिलायी जाती है. इन सभी काम के बाद लकड़ी, गोयठा, रूई, कपूर, घी से आग सुलगाये जाते हैं. अग्नि में उक्त मंत्रोच्चार के साथ शाकल डाल कर हवन किया जाता है. कुछ लोग गाय के दूध से बनी खीर से भी हवन करते हैं. हवन करने के लिए 700 बार मंत्रोच्चार किया जाता है. चाहे बीज मंत्र का उच्चारण हो या सप्तशती के 700 श्लोकों का पाठ कर.
नवमी तिथि को कुंवारी पूजा को शुभ व आवश्यक माना जाता है. सामर्थ्य हो तो नवरात्र भर प्रतिदिन, अन्यथा समाप्ति के दिन नौ कुंवारियों के चरण धोकर उन्हें देवी रूप मान कर गंध व पुष्पादि से अर्चन कर आदर के साथ यथा रूचि मिष्ठान्न भोजन कराना चाहिए व वस्त्रादि से सत्कृत करना चाहिए. शास्त्रों में नियम है कि एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य , दो की पूजा से भोग और मोक्ष, तीन की अर्चना से धर्म, अर्थ, काम-त्रिवर्ग, चार की पूजा से राज्यपद, पांच की पूजा से विद्या, छह की पूजा से षट्कर्म सिद्धि, सात की पूजा से राज्य, आठ की अर्चना से सम्पदा की और नौ कुंवारी कन्याओं की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है. कुंवारी पूजन में 10 वर्ष तक की कन्याओं का अर्चन विहित है. 10 वर्ष से ऊपर की आयु वाली कन्या का कुंवारी पूजन में वर्जन किया गया है.