बांका, संजीव पाठक: बौंसी प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत सरुआ पंचायत के साढ़ामोह गांव स्थित दुर्गा मंदिर की प्रसिद्धि काफी दूर-दूर तक फैली है. 1950 ई. से यहां पर मूर्ति निर्माण कर पूजा-अर्चना की जा रही है. यहां के स्थानीय जानकारों की माने तो उस वक्त ताड़ के पत्तों से मंदिर का निर्माण स्थानीय छबीली लैया के द्वारा किया गया था और इन्हीं के द्वारा पूजा-अर्चना की जा रही थी. जिसके बाद आर्थिक तंगी की वजह से उक्त व्यक्ति के द्वारा पूजा-अर्चना और मूर्ति स्थापना बंद कर दिया गया था.
पूजा-अर्चना बंद होना लोगों को नागवार गुजरा. जिसके बाद स्थानीय ग्रामीणों की मदद से पुनः पूजा-अर्चना शुरू की गयी. 1970 ई में ईंट और मिट्टी के गारे से मंदिर का निर्माण कराया गया था. बताया जाता है कि इन ईंटों को लकड़ी से पकाया गया था. 6 साल पूर्व पुनः चंदा कर मंदिर का नये तरीके से जीर्णोद्धार किया गया है. मार्बल ग्रेनाइट से बनाया मंदिर बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है.
मालूम हो कि यहां पर सालो भर पिंडी की पूजा-अर्चना की जाती है. केवल शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र में मिट्टी की प्रतिमा का निर्माण कर पूजा-अर्चना की जाती है. सबसे अहम बात स्थानीय लोगों द्वारा यह बताया गया कि यहां कलश स्थापना एक पूजा को तो कर दिया जाता है, लेकिन विधिवत पूजा अर्चना छह पूजा से की जाती है. जबकि प्रतिमा का विसर्जन त्रयोदशी को किया जाता है. पंडित प्रकाश मिश्रा की मौजूदगी में मेढ़पति अनंत कुमार सिंह के द्वारा पूजा अर्चना की जाती है. जबकि आम दिनों में पुजारी कपिल सिंह के द्वारा यहां पूजा अर्चना किया जाता है. यहां पर बलि देने की परंपरा नहीं है. बताया गया कि यह वैष्णवी दुर्गा मंदिर है.
मालूम हो कि प्रखंड क्षेत्र के अलावा आसपास के इलाकों में सबसे विशाल मेला इसी मंदिर प्रांगण में लगता है. जहां पर आसपास के दर्जनों गांवों के श्रद्धालु पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं और मेले का आनंद उठाते हैं. बताया जाता है कि अष्टमी से आरंभ हुए इस मेले में विसर्जन के दिन काफी भीड़ रहती है.
मंदिर प्रांगण में शिवालय का निर्माण इसी वर्ष कराया गया है. जहां शिव मंदिर के अलावा माता पार्वती का भी मंदिर है. शिवरात्रि का यहां पर भव्य आयोजन किया गया था.