Bihar: मुजफ्फरपुर में सबसे कम बौने बच्चे, जानिए बिहार में कहां सबसे अधिक बच्चे बौने होते हैं
डॉक्टरों का कहना है कि बौनापन लंबे समय तक पर्याप्त मात्रा में पोषण युक्त आहार ना लेने और बार-बार होने वाले संक्रमणों के कारण होता है.
भारत कुपोषण के बड़े संकट का सामना कर रहा है.यही कारण है कि दुनिया में बौने या कम लंबाई वाले लोगों की संख्या के भारत शीर्ष पर है. भारत में करीब चार करोड़ 66 लाख बौने बच्चें हैं. इसके बाद नाइजीरिया (1.39 करोड़) और पाकिस्तान (1.7 करोड़)है. डॉक्टरों का कहना है कि बौनापन लंबे समय तक पर्याप्त मात्रा में पोषण युक्त आहार ना लेने और बार-बार होने वाले संक्रमणों के कारण होता है. लेकिन, बिहार में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार पिछले पांच वर्षों में कुपोषण के कारण बौने हो रहे बच्चों की संख्या में तो कमी आयी है, लेकिन कमी का दर 42 प्रतिशत से नीचे नहीं गिरा है.
सीतामढ़ी में सबसे अधिक बौने बच्चे
उत्तर बिहार में मुजफ्फरपुर जिले में बौने बच्चों की संख्या सबसे कम है, जबकि सीतामढ़ी में सबसे अधिक है. दूसरे स्थान पर पूर्वी चंपारण और तीसरे स्थान पर दरभंगा है. उत्तर बिहार के सात जिलों के आंकड़े बताते हैं कि पांच वर्ष तक के ऐसे बच्चे जिनकी लंबाई उम्र के अनुसार नहीं है, उनमें सीतामढ़ी पहले नंबर पर है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में कुपोषण के कारण बौने हो रहे बच्चों की संख्या में कमी आयी है, लेकिन कमी का दर 42 प्रतिशत से नीचे नहीं गिरा है.बच्चों के खान-पान में पोषक तत्व नहीं होने के कारण वे कुपोषित हो रहे हैं. इसमें अभी बहुत सुधार की जरूरत है.
मुजफ्फरपुर में सात प्रतिशत हुआ सुधार
उत्तर बिहार के सात जिलों में पिछले पांच वर्षों में अपेक्षाकृत सुधार नहीं हुआ है. शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ एमएन कमाल कहते हैं कि बच्चों में कुपोषण से कई तरह की बीमारियां होती हैं. एइएस जैसी बीमारी की एक प्रमुख वजह कुपोषण ही है. उम्र के हिसाब से लंबाई नहीं होना या अधिक मोटा होना भी कुपोषण का ही लक्षण है. अभिभावकों को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए. मुजफ्फरपुर में पिछले पांच वर्षों में सात प्रतिशत सुधार हुआ है. वर्ष 2015-16 में जिले में पांच वर्ष से कम उम्र के 47.9 प्रतिशत बच्चों की लंबाई उम्र के अनुसार नहीं थी, लेकिन 2019-20 में इसमें अपेक्षाकृत सुधार हुआ है और इसका दर नीचे गिर कर 42.6 प्रतिशत तक पहुंचा. ऐसा ही सुधार दूसरे जिलों में भी हुआ, लेकिन पश्चिमी चंपारण की स्थित पहले की तरह ही है. यहां मात्र 0.1 प्रतिशत सुधार हुआ है. यहां बच्चों में कुपोषण पहले की तरह ही है.
पांच वर्ष तक के बच्चे जिनकी लंबाई उम्र के अनुसार नहीं है
जिला – 2019-20 – 2015-16
मुजफ्फरपुर – 42.6 – 47.9
दरभंगा – 45.4 – 49.0
मधुबनी – 43.3 – 51.8
सीतामढ़ी – 54.2 – 57.3
पूर्वी चंपारण – 49.1 – 47.2
पश्चिमी चंपारण – 43.5 – 43.6
समस्तीपुर – 44.0 – 49.2
शिशु के बेहतर स्वास्थ्य में बौनापन सबसे बड़ी चुनौती
कुपोषण की वजह से बच्चे बौनापन (Dwarfism) होते हैं. यह एक आम किन्तु गंभीर समस्या है. डॉक्टर अमित चौबे के अनुसार इसकी शुरुआत बच्चे के जन्म से पहले से शुरू हो जाती है. बच्चे जब अपनी मां के गर्भ में होते ही उसी समय से इसकी शुरूआत होती है. इसलिए गर्भवती माताओं को अपने बच्चे को कुपोषित होने से बचाने के लिए अपने कान पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए. इसके बाद जन्म के शुरुआती 2 सालों में बच्चे के आहार में आवश्यक पोषक तत्त्वों की कमी होने तथा बार-बार होने वाले संक्रमण के कारण भी बच्चे बौने होते हैं. इसलिए माता -पिता को अपने बच्चे के खान पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए. एक बार शिशु में नाटापन की समस्या हो जाने पर उसमें सुधार की गुंजाइश काफी कम हो जाती है. इसके कारण बच्चों का शारीरिक और बौद्धिक विकास देर से होता है. ऐसे बच्चे बहुत से कार्य में अक्षम होते है और स्कूल में उनका प्रदर्शन खराब होता है. बौनापन के कारण डायरिया, मलेरिया, मीजिल्स, निमोनिया के साथ मधुमेह जैसे गंभीर रोगों के होने की संभावना बढ़ जाती है.
देश में पोषण संबंधी संतुष्टता के बावजूद यह अब तक नाकाफी है. इसका कारण पोषण पर केंद्रित ज्यादातर कदम जन्म के बाद की अवधि की जरूरते पूरी करने पर केंद्रित हैं. अध्ययन इस ओर संकेत करते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य और पोषण अनेक सामाजिक-आर्थिक कारकों के साथ-साथ भ्रूण के जन्म और विकास संबंधी उपलब्धियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. मां और बच्चे का स्वास्थ्य आपस में इस तरह जुड़े हुए हैं कि उन्हें अलग करके नहीं देखा जा सकता, इसलिए मां का पोषण (गर्भावस्था के पूर्व और पश्चात) बच्चे के विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. ऐसे में इसे हर हाल में प्राथमिकता दी जानी चाहिए. इस बात को रेखांकित करना महत्वपूर्ण होगा कि जहां एक ओर बौनापन, कुपोषण का प्रत्यक्ष परिणाम है, वहीं यह समस्या कहीं ज्यादा गंभीर है तथा प्रसव पूर्व देखभाल, स्वच्छता और साफ-सफाई, टीकाकरण, शिक्षा, महिलाओं का सशक्तिकरण, गरीबी उन्मूलन, कृषि संबंधी पैदावार आदि जैसे कई अन्य कारक इसमें योगदान देते हैं.