बिहार में मिश्रीकंद की खेती से कमाएं अधिक लाभ, जानें खेती करने की जानकारी और रोपनी का तरीका

Mishrikand ki Kheti Kisani: जुलाई में मिश्रीकन्द बुआई के लि ये 15 से 20 कि लोग्राम, अगस्त में बुआई करने के लि ए 30 से 40 कि लोग्राम एवं सि तंबर में बुआई के लि ये 50 से 55 कि लोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है.

By Prabhat Khabar News Desk | July 16, 2022 2:30 PM

मुजफ्फरपुर. मिश्रीकंद के फूल नीले या सफेद होते है. इसकी फली को यामबीन कहते हैं. इसकी खेती पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा और असम के कुछ हिस्से में की जाती है. इसके बीज का उपयोग कीटनाशक के रूप में किया जाता है. इसकी खेती सभी प्रकार के जलवायु में की जा सकती है. यह एक गर्म एवं आर्द्र जलवायु की फसल है और इसे गर्म समशीतोष्ण क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है. इसकी खेती के लिये बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जीवांश की प्रचुरता हो एवं जल निकास वाली हो तथा मृदा का पीएच मान 6.0 से 7.0 के बीच हो जो उपयुक्त होती है.

प्रभेद

  • रोजेन्द्र मिश्रीकन्द -1, राजेन्द्र मिश्रीकन्द -2.

  • बुआई का समय : मिश्रीकंद की बुआई जुलाई से सि तंबर तक की जाती है.

बीज दर

जुलाई में मिश्रीकन्द बुआई के लिये 15 से 20 किलोग्राम, अगस्त में बुआई करने के लिए 30 से 40 किलो ग्राम एवं सितंबर में बुआई के लिये 50 से 55 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है.

खेत की तैयारी

मिश्रीकंद के कंद जमीन में मिट्टी के नीचे बनते है, इसलि ये मिट्टी काफी बारीक एवं मुलायम होनी चाहिए, जिसके लिये दो से तीन क्रॉस जुताई की आवश्यकता होती है. पहली जुताई मिट्टी पलट हल से एवं शेष जुताई कल्टी वेटर या देशी हल से करनी चाहिए. प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाना अनिवार्य होता है.

रोपाई का तरीका एवं दूरी

इसकी बुआई छिटकवां विधि से या फिर ऊंची उठी क्यारी बनाकर पंक्ति में की जाती है. जुलाई रोप में पौधे से पौधे एवं कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर रखा जाता है एवं अगस्त रोप में कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर तथा सितंबर रोप में पौधे से पौधे एवं कतार से कतार की दूरी 15 सेंटीमीटर रखा जाता है.

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उर्वरक प्रबंधन

इसकी अच्छी पैदावार के लिए प्रति हेक्टेयर की दर से 40 किलोग्राम नेत्रजन, 60 किलोग्राम फॉस्फेट एवं 40 किलोग्राम पोटाश को खेत की अंतिम जुताई में उपयोग किया जाता है. बुआई के 40 से 45 दिन बाद पुनः 40 कि लोग्राम नेत्रजन एवं 40 कि लोग्राम पोटाश का उपरिवेशन कि या जाता है.

सिंचाई प्रबंधन

रोपाई के समय नमीं की मात्रा कम रहने पर बुआई के 5 से 7 दिनों के अंदर सिंचाई कर देनी चाहिए. इस प्रकार करने से अंकुरण अच्छा होता है. नवंबर से जनवरी के बीच नमीं को ध्यान में रखते हुए सिंचाई करते रहना चाहिए.

खरपतवार प्रबंधन

इसकी फसल में समय से निकाई – गुड़ाई करने से खरपतवार के प्रबंधन के साथ-साथ उत्पाद न भी अधिक प्राप्त होता है. पहली निकाई -गुड़ाई रोपाई से 25 से 30 दिन बाद एवं दूसरा 50 से 60 दिन बाद करनी चाहिए. इस समय पौधों के जड़ों पर मिट्टी चढ़ानी चाहिए. कन्द वाली पौधों से फूल को तोड़ दी जाती है. जब कलियां निकलती है तब उसे तोड़ दिया जाता है. फुल को नष्ट करने के लिये 2,4-डी सोडियम साल्ट 50 पीपीएम का प्रयोग करना चाहिए.

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