बिहार सरकार ने हरियाली बचाने सहित बिना किसी बाधा के विकास कार्यों को जारी रखने के लिए पेड़ों का स्थानांतरण (ट्रांसलोकेशन) शुरू किया है. करीब साढ़े तीन साल बाद इस नई योजना के परिणाम के तौर पर पेड़ों के जीवित रहने की दर करीब 40-45 फीसदी सामने आ रही है. मृत होने वाले अधिकतर पुराने और बड़े पेड़ हैं. ये ऐसे पेड़ हैं जिनकी औसत आयु करीब 20 साल से अधिक की है. ऐसे में मृत इन पेड़ों की जगह नये पेड़ों को लेने में लंबे समय का इंतजार करना पड़ सकता है.
स्थानांतरण की शुरुआत जुलाई 2019 में पटना से हुई
सूत्रों के अनुसार पेड़ों के स्थानांतरण की शुरुआत जुलाई 2019 में पटना शहर से हुई थी. योजना की सफलता के अध्ययन के आधार पर राज्य के अन्य हिस्सों में भी इसे लागू किया जाना था. योजना के अनुसार अन्य जगह से पेड़ों को जड़ से उखाड़कर पटना में आर ब्लॉक-दीघा सड़क के दोनों किनारों पर लगाना था. बिहार राज्य सड़क विकास निगम लिमिटेड द्वारा 379.59 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत तय की गई थी. बाद में इसे अन्य स्थानों पर भी लगाया जाने लगा.
जेपी गंगा पथ और गांधी मैदान-दीघा सड़क के बीच लगाये गये पेड़
इन पेड़ों को बड़ी संख्या में गांधी मैदान से दीघा जाने वाली सड़क और जेपी गंगा पथ के बीच वाले खाली मैदान में लगाया गया है. वहां भी इनमें से कई बड़े पेड़ सूख गये हैं. जानकारों का कहना है कि ऐसे में पेड़ों के ट्रांसलोकेशन की योजना अपने मकसद में पिछड़ती दिख रही है.
विकास कार्यों में काटने पड़ते थे पेड़
दरअसल, राज्य में सड़क, फ्लाइओवर, बड़े भवन आदि बनाने में कई बार पेड़ों को काटने की विवशता हो जाती थी. ऐसे में फॉरेस्ट क्लीयरेंस मिले बिना निर्माण कार्य बाधित रहती थी. इस समस्या से निपटने के लिए राज्य सरकार ने पेड़ों को जड़ से उखाड़कर कर स्थानांतरित करने की योजना पर काम शुरू किया.
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पर्यावरण की सुरक्षा जरूरी
जानकारों के अनुसार राज्य में पर्यावरण की सुरक्षा के लिए पेड़ों का रहना जरूरी है. राज्य की हरियाली को बढ़ाकर 17 फीसदी करने की योजना पर काम हो रहा है. इसके लिए लगातार पौधारोपण किये जा रहे हैं. फिलहाल हरियाली करीब 16 फीसदी तक पहुंच चुकी है.