बिहार सरकार शिक्षा पर कुल बजट का एक चौथाई खर्च करता है. नयी शिक्षा नीति के तहत प्रस्तावित बदलाव के लिये अतिरिक्त बजट की जरूरत होगी. अभी बजट में वृद्धि नहीं हो सकती है. विकल्प आधारित तमाम इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी सुविधाएं जुटाने में काफी धनराशि की जरूरत पड़ेगी. ये बातें शनिवार को शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर सिंह ने दशरथ मांझी स्मृति सभागार में आयोजित समीक्षा बैठक में विश्वविद्यालयों के कुलपति, अंगीभूत कॉलेजों के प्राचार्य और कुलसचिवों को संबोधित करते हुए कही.
शिक्षा मंत्री ने विश्वविद्यालयों में विकल्प आधारित पाठ्क्रम, चार वर्षीय स्नातक डिग्री कोर्स के संदर्भ में कई सवाल खड़े किये. कुछ आशंकाओं के आधार पर कहा कि राज्य इसके लिए अभी तैयार नहीं दिख रहा है. अपर मुख्य सचिव के के पाठक के राजभवन को लिखे पत्र का जिक्र करते हुई कहा कि हमारा राज्य लोक कल्याण कारी है. इसलिये सबको शिक्षा सुलभ कराने की जरूरत है. कहा कि हमें देखना होगा कि नयी शिक्षा नीति से हमारे शैक्षणिक सिस्टम में विसंगतियां तो खड़ी नहीं होंगी. शिक्षा गरीबों के दायरे से बाहर तो नहीं होगी. मंत्री ने कहा कि हम बदलाव के विरोधी नहीं है. हम चाहते हैं कि बदलाव रचनात्मक होने चाहिये. कहीं ऐसा न हो कि बदलाव होने से उच्च शिक्षा गरीबों के दायरे से बाहर न हो जाये.
शिक्षा मंत्री ने नई शिक्षा नीति के प्रस्तावों पर आशंकाएं जतायी. नई शिक्षा नीति के तहत जब विद्यार्थी कई विषयों से डिग्री लेगा, तो उसकी विशेषज्ञता क्या होगी. उनकी पीएचडी किस संकाय में होगी. इस तरह कुछ और सवाल उठाये. कहा कि इन सब के लिए राज्य के पास संसाधनों की कमी है. विश्वविद्यालयों में सेशन लेट चल रहे हैं. छात्र भी बदलाव के विरोध में हैं. उन्होंने कहा कि हमें इस दिशा में मंथन करने की जरूरत है. कहा कि किसी भी बदलाव से जनहित होना चाहिये. उन्होंने साफ किया कि नई शिक्षा नीति के तहत नए पाठ्यक्रम को प्रभावी करने के लिये वर्तमान में दक्ष औऱ प्रशक्षित लोगों का अभाव है.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर कई वक्ताओं ने बताया कि नई व्यवस्था के तहत चार वर्ष में आठ परीक्षाएं कराने से सत्र और भी पीछे हो सकता. वर्तमान व्यवस्था के तहत छात्रों को तीन बार नामांकन लेना होता है नई व्यवस्था के तहत आठ बार नामांकन लेना होगा. वर्तमान व्यवस्था में 3000 रुपये के आसपास डिग्री पाठ्यक्रम पूरा हो जाता है ,जबकि नई व्यवस्था चार वर्षीय पाठ्यक्रम में लगभग 16000 से 20000 रुपये लगेंगे. इससे पहले शिक्षा विभाग के उप निदेशक दीपक कुमार सिंह ने विश्वविद्यालय से प्रतिवेदन प्राप्त कर पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से विभिन्न समस्याओं तथा उसके संभव निदान पर वृहद रूप से प्रकाश डाला. बैठक में कुलपतियों ने भी विचार रखे.
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सभी विश्वविद्यालयों को निर्देश दिए गए कि सभी लंबित परीक्षा फल तथा लंबित परीक्षा तीन महीने के अंदर लेकर प्रतिवेदन समर्पित करें.
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संबद्ध डिग्री महाविद्यालय के परीक्षाफल आधारित अनुदानित वितरण की अद्यतन स्थिति पर बताया गया कि शैक्षणिक सत्र 2013 से 2016 तक सहायक अनुदान की राशि उपलब्ध करा दी जाती है तथा अन्य सत्र की कार्यवाही प्रक्रियाधीन है.
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शिक्षेत्तर कर्मचारियों के मुद्दे पर निर्देश दिये कि जिस महाविद्यालय के पास जो भी इस संबंध में पुराने अभिलेख उपलब्ध हैं,वे इसे लेकर उच्च शिक्षा निदेशालय में संपर्क स्थापित करें तथा प्रक्रिया के अनुसार रिक्त पदों का विज्ञापन करवाने में सहयोग दें.