बिहार और जापान में बीच शैक्षणिक दूरी होगी कम, इनोवेशन, तकनीक व कृषि उद्यम में मिलकर करेंगे काम
इंडो-जापान सीओइ (निहोन नो हाको) संस्थागत एवं एमएसएमइ को बढ़ावा देने के लिए मदद करेगा.ताकाशी सुजुकी ने कहा कि यह केंद्र बिहार और जापान के बीच इनोवेशन, तकनीक, व्यापार-कारोबार, कृषि उद्यम, शिक्षा के बीच दूरी को कम करेगा.
पटना. आइआइटी पटना का 15वां स्थापना दिवस रविवार को मनाया गया. इस मौके पर इंडो-जापान सेंटर आफ एक्सीलेंस (सीओइ)का उद्घाटन हुआ. उद्घाटन आइआइटी पटना के निदेशक प्रो टीएन सिंह और जापान एक्सटर्नल ट्रेड आर्गेनाइजेशन (जेट्रो) के चीफ डायरेक्टर जनरल ताकाशी सुजुकी ने किया. इंडो-जापान सीओइ (निहोन नो हाको) संस्थागत एवं एमएसएमइ को बढ़ावा देने के लिए मदद करेगा. ताकाशी सुजुकी ने कहा कि यह केंद्र बिहार और जापान के बीच इनोवेशन, तकनीक, व्यापार-कारोबार, कृषि उद्यम, शिक्षा के बीच दूरी को कम करेगा.
अकादमिक क्षेत्र में विकास के लिए जापान से होगा एमओयू
आइआइटी पटना के निदेशक प्रो टीएन सिंह ने कहा कि यह सेंटर बिहार के मानव बल व जापान की तकनीक का मिलन स्थल बनेगा. जापान तकनीक और इनोवेशन का विश्व लीडर है. बिहार में देश के सबसे ज्यादा युवा आबादी है. अकादमिक क्षेत्र में विकास के लिए यहां के संस्थान जापान से एमओयू करेंगे. शिक्षण संस्थानों से सहयोग और ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए हब का निर्माण होगा. बिहार में एमएसएमइ की असीम संभावना है. यहां के उद्यमी एमएसएमइ स्थापित करना चाहेंगे उन्हें तकनीकी सहयोग सेंटर के माध्यम जापान की सरकार व उद्यमी उपलब्ध करायेंगे. बिहार में कृषि, शिक्षा, छोटे उद्योग, डेयरी आदि में असीम संभावनाएं हैं. जापान के लिए बिहार को एक निवेश के हब के रूप में विकसित किया जायेगा.
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सीओई की स्थापना से होंगे ये फायदे
इंडो-जापान सीओई (निहोन नो हाको) संस्थागत एवं एसएमई के स्तर पर संस्थागत सहयोग को बढ़ाने में मदद करेगा. इससे भारत और जापान की सरकार, संस्थानों , व्यापार में सहयोग मिलेगा. सेंटर के कार्यों को बढ़ावा देने के लिए आईआईटी पटना एवं मासायुमे इंडिया की ओर से जापानी भाषा प्रशिक्षण कार्यक्रम की भी शुरूआत की जा रही है.
17 अगस्त से पहला बैच
जापानी से पहुंचे प्रतिनिधियों ने कहा कि दोनों देश की जनता में ऐतिहासिक मैत्री संबंध है. एक-दूसरे का सम्मान करते हैं, लेकिन भाषा दोनों देशों के बीच दीवार बन गयी है. इसे दूर करने के लिए आइआइटी पटना और मासायुमे इंडिया जापानी भाषा प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया जा रहा है. जापानी भाषा के कौशल की जांच के जेएलपीटी नियमों के अनुरूप शिक्षा मंत्रालय (मोम्बुशो), जापान के अंतर्गत कार्य करेगा. 17 अगस्त को पहला बैच आरंभ हो जायेगा. सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त जापानी भाषा प्रशिक्षक छात्रों को प्रशिक्षण देंगे. आइआइटी पटना की वेबसाइट (https://www.iitp.ac.in/) पर इससे संबंधित विस्तृत जानकारी जल्द ही अपलोड कर दी जायेगी.
सीओई स्थापित करने के मुख्य उद्देश्य
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अकादमिक क्षेत्र में सहयोग के लिए शिक्षण संस्थान और ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए हब का निर्माण.
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जापान के लिए बिहार को एक निवेश के हब के रूप में विकसित करना.
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बिहार से नौकरी के लिए पलायन कर रहे युवाओं के लिए जापान को एक अच्छे विकल्प के रूप में प्रस्तुत करना.
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नये स्टार्टअप, इन्क्युबेशन, नए शोध, सहकारिता, जॉइंट वेंचर इत्यादि को बढ़ावा देना.
दो देशों के बीच संबंध से बनेंगे नये अवसर
सीओई की शुरुआत को लेकर आईआईटी पटना के निदेशक प्रो. (डॉ.) टीएन सिंह ने कहा कि दो देशों के बीच ऐसे संबंधों से तकनीक और ज्ञान के आदान प्रदान के नए अवसर बनते हैं. सीओई की स्थापना रोजगार के नए अवसरों को भी जन्म देती है, जो कि भारत के विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है.
बोधगया की माटी का स्पर्श जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि
डॉ लिम चोंग फुंग ने कहा कि सांस्कृतिक और धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से बिहार और जापान के संबंध काफी सुदृढ़ रहे हैं. तकनीक और अकादमिक क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ाकर हम अपने पुराने संबंधों को ही और प्रगाढ़ कर रहे हैं. बोधगया की माटी का स्पर्श जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि हमारी संस्कृति में मानी जाती है.
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जापान में मात्र 40 हजार भारतीय
ताकाशी सुजुकी ने कहा कि भारत-जापान के संबंध बहुत मधुर हैं, बावजूद जापान में सबसे कम भारतीय रहते हैं. भारत से ज्यादा नेपाल के एक लाख 30 हजार लोग रहते हैं. उन्होंने बताया कि जापान में सिर्फ 40 हजार भारतीय रहते हैं. चीन के लोगों की संख्या सात लाख 40 हजार तथा वियतनाम के चार लाख 80 हजार लोग रहते हैं.
ये थे मौजूद
आइआइटी दिल्ली के विजटिंग प्रोफेसर प्रो योशिरो अजुमा, सुमिटोमो इंडिया के पूर्व सीएमडी सह हरियाणा सरकार व डीएमआइसी के सलाहकार केइजी नाकाजिमा, आइआइआरएम हैदराबाद के निदेशक डॉ सुरेश माथुर, मासायुमे इंडिया के सह-संस्थापक जयकांत सिंह, मासायुमे के सह-संस्थापक एवं डोरंडा-जापान काबुशिकी कैषा के निदेशक विनोद सिंह परिहार आदि मौजूद थे.