Bihar news: बिहार में शेखपुरा जिले के मिल्कीचक गांव में ‘अनारकली’ की मौत के सैकड़ों ग्रामीण छाती पीट-पीटकर दहाड़ मारकर रोने लगे. पूरे गांव की आंखें नम हैं. अनारकली की अंतिम यात्रा में पूरा गांव शामिल हुआ और उसको सम्मानजनक विदाई दी गई. अनारकली का नाम सुनते ही आप चौंक गए होंगे कि बादशाह अकबर के बेटे सलीम की महबूबा अनारकली की मौत तो सदियों पहले हो चुकी थी. फिर पूरे गांव के लोग आज क्यों रो-रहे हैं. बता दें कि यह अनारकली कोई सलीम की महबूबा नहीं थी. बल्कि एक हथिनी का नाम था. यह हथिनी केवटी पंचायत के मिल्कीचक गांव के सूर्यमणि सिंह उनके ससुर ने शादी के बाद तोहफे में दी थी.
ग्रामीणों ने बताया कि जिले के जाने-माने किसान सूर्यमणि सिंह अपने पिता कामेश्वरी सिंह के एकमात्र बेटे थे. उनके ससुर 400 बीघा जमीन के मालिक थे. जिसमें से 200 बीघा जमीन और अनारकली हथिनी को 1978 में शादी के तोहफे के रूप में प्रदान किया था. सूर्यमणि सिंह के ससुर भी लखीसराय जिले के एक बड़े जमींदार थे.
अनारकली की मौत के बाद हाथी के मालिक, गांव के लोग और महावत के आखों से अभी भी आंसू के धारा बह रहे हैं. लोगों ने बताया कि किसान सूर्यमणि सिंह अनारकली को अपने बच्चे की तरह प्यार करते थे. उनको 1978 में उनके ससुर ने 10 हजार रुपये में यह हथिनी खरीदकर तोहफे में दिया था. ग्रामीणों ने बताया कि अनारकली हथिनी पूरे जिले की शान थी. 46 साल की अनारकली की मौत से पूरे जिले में गम का माहौल छा गया है. हथिनी की मौत के बाद उसका महावत मोहम्मद फईमउद्दीन भी मायूस है.
लोगों ने बताया कि अनारकली जैसे बैठी थी उसी स्थिति में उसने अंतिम सांस ली. अंतिम संस्कार के लिए अनारकली को दुल्हन की तरह सजाया गया. जिस जगह वह रहती थी उसके पास ही गड्ढा खोदकर पूरे रिति रिवाज के साथ उसका अंतिम संस्कार किया गया है. उसके बाद सूर्यमणी सिंह के एक एक खेत में जेसीबी की मदद से गड्ढा खोदकर हिंदू रिति-रिवाज के साथ अनारकली का अंतिम संस्कार किया गया.