जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन (George Abraham Grierson) संभवतः पहले ऐसे अंग्रेज थे जो कि भोजपुरिया रंग में रचे बसे हुए थे. जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन को भाषा वैज्ञानिक भी कहा जाता है. उन्होंने ही सबसे पहले आधुनिक भारत में भाषाओं का सर्वेक्षण किया और विद्यापति एवं तुलसीदास जैसे भारतीय कवियों से पूरे विश्व को परिचित कराया. 7 जनवरी को आयरलैंड के निकट डब्लिन में जन्मे जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन आईसीएस करने के बाद 1870 के करीब भारत आए और काफी समय तक बिहार और बंगाल में अपना समय गुजारा. यहां पर कई उच्च पद पर रहते हुए उन्होंने कई क्षेत्रों में काम किया. लेकिन भाषा के क्षेत्र में उनके काम के कारण उन्हें भाषा वैज्ञानिक भी कहा जाता है.
भारत आने के बाद जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन बंगाल और बिहार में कई उच्च पदों पर 1899 तक कार्यरत रहे. उसके बाद वे फिर आयरलैंड चले गए. बिहार के मधुबनी और गया जिले में वे बतौर कलेक्टर भी रहे थे. मधुबनी का प्रसिद्ध गिलेसन बाजार आज भी उनके नाम पर ही है. यहां रहने के दौरान हिंदी क्षेत्र की बोलियों के लोक साहित्य (गीत-कथा) का संकलन और विश्लेषण करने वाले कुछ एक विद्वानों में से वो एक थे. इसके साथ ही उन्होंने तुलसीदास और विद्यापति के साहित्य का महत्त्व प्रतिपादित किया. ऐसा करने वाले वे संभवत: पहले अंग्रेज विद्वान थे.
जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन के संबंध में कहा जाता है कि सरकारी कामों से छुट्टी पाने के बाद वे अपना अतिरिक्त समय संस्कृत, प्राकृत, पुरानी हिंदी, बिहारी और बंगला भाषाओं और साहित्यों के अध्ययन में लगाते थे. जहाँ भी उनकी नियुक्ति होती थी वहीं की भाषा, बोली, साहित्य और लोकजीवन पर वो अध्ययन किया करते थे.इसी कारण लोग उन्हें भाषा वैज्ञानिक कहा करते थे.
1873 और 1869 के कार्यकाल में ग्रियर्सन ने उत्तरी बंगाल के लोकगीत,कविता और रंगपुर की बंगला बोली, जर्नल ऑफ दि एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ बंगाल, राजा गोपीचंद की कथा, मैथिली ग्रामर, सैवन ग्रामर्स ऑफ़ दि डायलेक्ट्स ऑफ़ दि बिहारी लैंग्वेज इंट्रोडक्शन टु द मैथिली लैंग्वेज; ए हैंड बुक टु दि कैथी कैरेक्टर, बिहार पेजेंट लाइफ़,बीइंग डिस्क्रिप्टिव कैटेलॉग ऑफ़ द सराउंडिंग्स ऑफ़ दि वर्नाक्युलर्स, जर्नल ऑफ़ द जर्मन ओरिएंटल सोसाइटी, कश्मीरी व्याकरण और कोश, कश्मीरी मैनुअल, पद्मावती का संपादन, महामहोपाध्याय सुधाकर द्विवेदी के सहयोग से बिहारी कृत सतसई का संपादन, नोट्स ऑन तुलसीदास, दि मॉडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर ऑफ़ हिंदुस्तान की रचना किया.
जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन का बिहार से विशेष लगाव था. विदेशी होने के बाद भी वे जिस प्रकार से धारा- प्रवाह भोजपुरी बोला करते थे उसे देख लोग आश्चर्यचकित हो जाते थे. बिहार से उनके संबंधों का अंदाजा आप इससे भी लगा सकते हैं कि हिन्दुस्तान छोड़कर अपने वतन वापस जाने के बाद भी वो अपने खान पान में बिहारी खाना चूड़ा दही को शामिल किए रखा. सबसे पहले उन्होंने ही भोजपुरी बोलने वाले लोगों के लिए ‘भोजपुरिया’ शब्द का इस्तेमाल किया था. भोजपुरी को लेकर उन्होंने लिखा था…
कस-कस कसगर केना मगहिया,
का भोजपुरिया,का तिरहुतिया!