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बिहार SFC पेपर लीक मामला क्या है? केस बंद करने में लगी थी पुलिस, अब EOU की निगरानी में होगी जांच..

बिहार एसएफसी पेपर लीक मामले में एक नया मोड़ अब आ चुका है. एक तरफ जहां बिहार पुलिस केस को बंद करने की दिशा में बढ़ रही थी वहीं अब इस केस की जांच इओयू को सौंप दी गयी है. जानिए बिहार SFC पेपर लीक मामला क्या है और कैसे पकड़ी गयी थी धांधली..

By ThakurShaktilochan Sandilya | August 6, 2023 8:43 AM

BSFC Paper Leak Case: बिहार में अब एक और पेपर लीक मामला सुर्खियों में है. बिहार स्टेट फूड एंड सिविल सप्लाइज कॉरपोरेशन लिमिटेड (बिहार एसएफसी) के पेपर लीक मामले में एक बड़ा खुलासा हुआ है. मामले की प्राथमिकी व जांच में लापरवाही बरती गयी थी और अब इसकी जांच आर्थिक अपराध शाखा( इओयू ) की निगरानी में किया जाएगा. पुलिस इस केस को क्लोज करने के प्रयास में थी.

बिहार एसएफसी पेपर लीक मामले की जांच करेगी इओयू

बिहार स्टेट फूड एंड सिविल सप्लाइज कॉरपोरेशन लिमिटेड (बिहार एसएफसी) के पेपर लीक मामले की प्राथमिकी व जांच में लापरवाही बरती गयी थी. अब इसकी जांच इओयू की निगरानी में होगी. सूत्रों के अनुसार, इस मामले में खगौल थाने की पुलिस ने अच्छे से अनुसंधान नहीं किया और चार्जशीट करने के बाद केस को एक तरह से बंद कर रही थी. लेकिन ऐसे तथ्य सामने आये कि इओयू ने इस मामले की फिर से जांच कराने का निर्णय लिया है.

पुलिस की लापरवाही आयी सामने

सूत्रों का कहना है कि पेपर लीक केस में पुलिस ने तीन अभियुक्तों को गिरफ्तार किया था, लेकिन उनके मोबाइल फोन को जब्त नहीं किया गया. जबकि उन तीनों के मोबाइल फोन को जब्त कर सीडीआर निकाल कर जांच की जानी चाहिए थी, ताकि इस रैकेट में शामिल अन्य की गिरफ्तारी हो सके. लेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं किया और इसे इस जांच में बड़ी लापरवाही के तौर पर देखा जा रहा है.

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सेंटर पर कैसे पकड़ में आई थी धांधली?

बता दें कि बिहार एसएफसी की परीक्षा में बड़ी सेंधमारी सामने आयी थी. 23 मार्च को खगौल स्थित एएमआर आइटी सॉल्यूशन नाम के ऑनलाइन परीक्षा केंद्र पर बिहार एसएफसी की परीक्षा के दौरान एक अधिकारी जांच करने पहुंचे थे. इस दौरान परीक्षा खत्म होने के बावजूद एक परीक्षार्थी वीर प्रकाश राय परीक्षा दे रहा था और उसके पास आंसरशीट भी थी. जब ये मामला सामने आया तो परीक्षा केंद्र के मालिक अरुण कुमार, पर्यवेक्षक बबलू कुमार व अभ्यर्थी वीर प्रकाश राय को गिरफ्तार कर लिया था और जेल भेज दिया गया था. तीनों फिलहाल जमानत पर हैं.

केस डायरी में साक्ष्य का अभाव!

पुलिस ने जब कोर्ट में 8 पन्ने की केस डायरी जमा की तो इसमें साक्ष्य का अभाव था. केस करने वाले अधिकारी, साक्षी और आरोपियाें के बयान ही केवल इसमें शामिल थे. आरोपितों को इसका बड़ा लाभ मिला. कोर्ट ने इस शर्त पर जमानत दे दी कि साक्ष्यों से छेड़छाड़ नहीं किया जाएगा और जांच में वो सहयोग करेंगे.

कहां हुई चूक?

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जब दंडाधिकारी ने कार्रवाई की तो जब्त एडमिट कार्ड में पर्यवेक्षक का नाम राजा बाबू बताया गया है जबकि एफआईआर में पर्यवेक्षक बबलू का नाम बबलू है. इस मामले में आईपीसी की धारा 419 और 420 के तहत केस दर्ज की गई. इन्हीं दोनों बातों का विरोध कोर्ट में आराेपियाें के वकील ने किया और आरोपितों को जमानत मिल गई. इसे पुलिस की लापरवाही के रूप में देखा जा रहा है.

क्यों खड़े हुए पुलिस जांच पर सवाल? 

बता दें कि पुलिस पर ऐसे मामलों में आरोप पहले भी लग चुके हैं. साल 2020 में बुद्धा कॉलोनी पुलिस ने अतुल वत्स गिरोह के कई सदस्यों को गिरफ्तार किया था. हाईकोर्ट से आरोपितों को जमानत मिल गयी थी. उस दौरान पुलिस के उपर टिप्पणी करते हुए कहा गया था कि सारे आरोप अस्पष्ट हैं. जांच पूरी होने के बाद भी आरोपितों के खिलाफ पुलिस पर्याप्त और वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं जुटा पाई है. इसी तरह 2022 में दानापुर पुलिस ने आरकेपूरम से चार आरोपितों को गिरफ्तार किया था. तब अतुल वत्स और बिजेंद्र पर केस दर्ज हुआ था. लेकिन तब भी पुलिस साक्ष्य नहीं जुटा सकी थी और जमानत आरोपितों को मिल गयी थी. अब सवाल सामने आते हैं कि सीसीटीवी फूटेज में आखिर क्या दिखा? क्या शातिरों ने सेंटर के सर्वर को बाइपास करके आंसीशीट तैयार की थी. सर्वर रूम के इंचार्ज से पूछताछ हुई या नहीं? ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब मिलना बाकी है. अब इओयू अपने स्तर से इस मामले की जांच करेगी.

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