Exclusive: बिहार में बदला सावन का ट्रेंड, चार दशकों में घटी औसतन 112 मिलीमीटर बारिश
वर्ष 1981 से 90 के दशक के दरम्यान बिहार में जुलाई में औसतन हर साल 426.27 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गयी. इसकी तुलना में अगले तीन दशकों वर्ष 1991- 2000 , 2001 - 2010 और 2011-2020 के दशकों (30 साल) में प्रति वर्ष औसतन 314.11 मिलीमीटर प्रति दशक बरसात दर्ज हुई है.
राजदेव पांडेय,पटना. बिहार में पिछले तीन दशकों में जुलाई माह की बारिश औसतन 112 मिलीमीटर घट गयी है. वर्ष 1981 से 90 के दशक के दरम्यान बिहार में जुलाई में औसतन हर साल 426.27 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गयी. इसकी तुलना में अगले तीन दशकों वर्ष 1991- 2000 , 2001 – 2010 और 2011-2020 के दशकों (30 साल) में प्रति वर्ष औसतन 314.11 मिलीमीटर प्रति दशक बरसात दर्ज हुई है.
क्लाइमेट चेंज का यह एक विशेष ट्रेंड
विशेषज्ञों के मुताबिक जुलाई में मानसून का रूठना खरीफ के पूरे पैटर्न को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है. क्लाइमेट चेंज का इसे एक विशेष ट्रेंड माना जा रहा है. अगर हम चालू दशक 2021 -2030 की पहले तीन सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो औसतन 200 मिलीमीटर चालू दशक के पहले तीन सालों में जुलाई की बारिश अप्रत्याशित कमी आयी है. जुलाई 2021 में 258.3, जुलाई 2022 में 134.7 और जुलाई 2023 में अब तक केवल 112.7 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गयी है. जुलाई की बारिश का यह खतरनाक ट्रेंड है.
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जुलाई की बारिश का ट्रेंड स्थायी रूप से बदल गया
फिलहाल पिछले चार दशकों के दरम्यान बिहार में जुलाई की बारिश का ट्रेंड स्थायी रूप से बदल गया है. इसे कुछ यूं भी समझ सकते हैं- वर्ष 1981 से 90 के दशक में हर साल औसतन 426.27 मिलीमीटर, 1991 से 2000 के दशक में हर साल 293, 2001-2010 के दशक में औसतन 332.81 और 2011-20 के दशक में हर साल औसतन केवल 316 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गयी है.
बिहार में जुलाई की बारिश से जुड़े खास तथ्य
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– वर्ष 1981 से पहले बिहार में जुलाई में 500 एमएम या इससे अधिक उल्लेखनीय बारिश साल दो-तीन साल के अंतर से होती थी. पिछले करीब 26सालों में
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500 एमएम या इससे अधिक बरसात एक बार भी दर्ज नहीं हुई है .है. वर्ष 1981 में 580.1 और 2007 में 549.4 एमएम बारिश दर्ज हुई थी.
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– वर्ष 1981 से 1990 के दशक में जुलाई में 400 से 500 एमएम के बीच तीन बार , 1991 से 2000 के दशक के बीच दो बार, 2001 से 2010 के बीच एक बार और 2011 से 2020 के बीच भी दो बार इतनी बारिश दर्ज की गयी है.
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– पिछले साल 2022 में जुलाई में मॉनसून 19 दिन निष्क्रिय रहा था. बिहार के मॉनसून के सौ सालो के इतिहास में यह ऐसा पहली बार हुआ था.
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– इस साल मॉनसून आठ दिनों से निष्क्रिय या कमजोर है, यह दौर अभी जारी है. इस तरह जुलाई की बारिश के बदलते ट्रेंड से जलवायु परिवर्तन को समझा जा सकता है.
नहीं बन पा रहा पूर्वी भारत में कम दबाव का क्षेत्र
जुलाई माह में बारिश कम होने की मुख्य वजहों में पूर्वी भारत में कम दबाव का क्षेत्र न बनना है. इसकी वजह से पूरब से आनेवाली नमी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में व्यापक तौर पर नहीं पुहंच पा रही है. यही वजह है कि मानसून का शक्तिशाली सिस्टम सक्रिय नहीं हो पा रहा है. जो भी बारिश हो रही है वो स्थानीय मौसमी दशाओं से प्रभावित है. क्योंकि तापमान बढ़ा हुआ रहता है, इसलिए ठनका गिरने की आशंकाएं बन जाती है.
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अर्थव्यवस्था पर घातक असर
जुलाई की बारिश का घटता ट्रेंड बिहार की कृषि अर्थव्यवस्था के लिए घातक साबित होने जा रहा है. अगर इसे धान के संदर्भ में देखें तो जुलाई में परंपरागत धान की फसल पर कल्ला फूटता है. यूं कहें कि धान में बालें निकलना शुरू होती है. कम बारिश में उस पर विपरीत असर पड़ेगा. उत्पादन कमोबेश यही असर दूसरी फसलों पर होगा. अगर कम समय में पकने वाला धान लगाया तो उसकी आर्थिक लागत बढ़ेगी. सबसे अहम यह कि रबी की फसल भी लेट होगी. दूसरा सबसे बुरा असर आम, जामुन और दूसरे फलों की गुणवत्ता पर भी पड़ेगा. क्योंकि यह इनके पकने का मुख्य समय है.
जुलाई में मॉनसून के कमजोर होने की कई वजह हैं
आइएमडी पटना के वरिष्ठ मौसम विज्ञानी आनंद शंकर ने बताया कि निश्चित तौर पर जुलाई में बारिश के घटने का ट्रेंड है. इसको देखते हुए हमें अपने कृषि पेटर्न में बदलाव की जरूरत होगी. जुलाई में मॉनसून के कमजोर होने की कई वजह हैं. इस दिशा में गंभीर अध्ययन किया जा रहा है. मौटे तौर पर यह है कि पिछले साल की तरह इस साल जुृलाई में मॉनसून बारिश के लिए जरूरी सिस्टम नहीं बन पा रहे हैं.