छठ महापर्व के अवसर पर बिहार के इस मंदिर में लगता है भव्य मेला, सूर्य के तीन रूपों की होती है पूजा
औरंगाबाद स्थित सूर्य मंदिर में भगवान सूर्य के तीनों रूप उदयाचल , मध्याचल व अस्ताचल की पूजा होती हैं. मंदिर के पास एक कुंड भी है, जहां छठ महापर्व के दौरान पूजा होती है, साथ ही मेला भी लगता है.
बिहार के औरंगाबाद जिले में वैसे तो कई तीर्थस्थल एवं प्राचीन मंदिर हैं, जहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है. लेकिन जिले के देव में स्थित सूर्य मंदिर विश्व का एकमात्र पश्चिमोभिमुख सूर्य मंदिर है. पटना से करीब 140 किलोमीटर और औरंगाबाद से 18 किमी दूर इस मंदिर का निर्माण बिना सीमेंट या चूना-गारा का प्रयोग किये आयताकार, वर्गाकार, आर्वाकार, गोलाकार, त्रिभुजाकार आदि कई रूपों और आकारों में काटे गये पत्थरों को जोड़ कर किया गया है, जो काफी आकर्षक लगता है. इस मंदिर की नायाब शिल्पकारी काले व भूरे पत्थरों से गई है. इस मंदिर में भगवान सूर्य के तीनों रूप उदयाचल , मध्याचल व अस्ताचल की पूजा होती हैं. मंदिर के पास एक कुंड भी है, जहां छठ महापर्व के दौरान पूजा होती है, साथ ही मेला भी लगता है.
त्रेता युग में मंदिर का हुआ था निर्माण
ओड़िशा के कोणार्क सूर्य मंदिर की तरह बने इस मंदिर को देवार्क कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग में स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने एक रात में किया था. मंदिर के बाहर लगे शिलालेख के अनुसार, मंदिर का निर्माण 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेता युग के बीत जाने के बाद इला के पुत्र पुरुरवा ऐल ने कराया था. शिलालेख से पता चलता है कि वर्ष 2023 में इस पौराणिक मंदिर के निर्माण काल के एक लाख 50 हजार 22 वर्ष पूरे हो गये हैं.
कुंड के पानी से ठीक होता है कुष्ठ रोग
मंदिर के निर्माण को लेकर यह भी कहा जाता है कि इला के पुत्र पुरुरवा ऐल कुष्ठ रोग से पीड़ित थे. एक दिन शिकार करने के बाद वो यहां पहुंचे और सरोवर के पानी से अपने शरीर पर लगी गंदगी को साफ किया. इसके बाद उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया. इसके बाद उन्होंने सपने में देखा कि गड्ढे के नीचे मूर्तियां हैं. जिसके बाद उन्होंने वहां खुदाई करवाई और मूर्तियां बाहर निकलवाकर मंदिर का निर्माण कराया. ऐसा कहा जाता है कि इस कुंड के पानी में स्नान करने से कुष्ठ रोग का निवारण होता है.
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इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां सात रथों से सूर्य की नक्काशीदार पत्थर की मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल, मध्याचल व अस्ताचल के रूप में विद्यमान हैं. यह मंदिर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह ईश्व का इकलौता सूर्य मंदिर है जिसका दरवाजा पश्चिम दिशा में है.
छठ के दौरान यहां लगता है मेला
इस सूर्य मंदिर के पास एक कुंड भी है. ऐसा कहा जाता है कि इस सूर्यकुंड तालाब का तार सीधे समुद्र से जुड़ा हुआ है. इसी कारण देव में दो-तीन किलोमीटर के क्षेत्र में पानी खारा मिलता है. मंदिर के आसपास व देव बाजार में विभिन्न जलाशय व चापाकल से निकलने वाले पानी का स्वाद भी खारा है. अगर, समुद्र में किसी प्रकार की हलचल होती है, तो उसका सीधा असर सूर्यकुंड तालाब में देखने को मिलता है. मान्यता है कि छठ की शुरुआत देव से हुई थी. इसलिए छठ महापर्व के दौरान यहां व्रत करने के लिए लोगों को काफी भीड़ जुटती है. इस दौरान यहां मेला भी लगता है.
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पौराणिक कथाओं के अनुसार देव और असुरों के संग्राम में जब असुरों से देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी. प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था. इसके बाद अदिति के पुत्र त्रिदेव रूप आदित्य भगवान हुए, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी. कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया.
कैसे पहुंचें:
हवाई मार्ग से : पटना हवाई अड्डा, लोक नायक जयप्रकाश हवाई अड्डा पहुंचकर यहां से सड़क मार्ग से औरंगाबाद के देव में स्थित सूर्य मंदिर जाया जा सकता है. पटना एयरपोर्ट से यह मंदिर सड़क मार्ग से 4 से 5 घंटे की दूरी पर है.
ट्रेन द्वारा : इस प्राचीन मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन अनुग्रह नारायण रोड है. जो देव से लगभग 20 किलोमीटर दूर है
सड़क के द्वारा : यह मंदिर पटना से लगभग 160 किलोमीटर की दूरी पर है. पटना से बिक्रम, अरवल , दाउदनगर, ओबरा, औरंगाबाद के रास्ते यहां पहुंचा जा सकता है.