बिहार में ब्रांडेड बोतलों की पैकिंग में बिक रही नकली शराब, मद्यनिषेध विभाग की जांच में हुआ खुलासा
मद्यनिषेध विभाग के रसायन निरीक्षक सुबोध कुमार ने बताया कि सूबे में कहीं भी किसी भी मात्रा में जब्त होने वाली शराब की एक सैंपल जांच के लिए विभाग में आती है.
पटना. ब्रांडेड बोतलों की पैकिंग में चोरी-छिपा कर बिहार में बेची जा रही 90 फीसदी से अधिक अंग्रेजी शराब नकली है. इसका खुलासा मद्यनिषेध, उत्पाद एवं निबंधन विभाग की केमिकल लैब की जांच रिपोर्ट में हुआ है. विशेषज्ञों के मुताबिक असली दिखाने के लिए इन शराब में अल्कोहल का स्तर तो किसी तरह व्यवस्थित कर दिया जाता है, लेकिन शुद्धता नहीं होने से यह स्वास्थ्य के लिए कहीं अधिक खतरनाक हो जाता है.
इएनए की जगह आरएस व इथेनॉल का कर रहे उपयोग
विभाग के रसायन निरीक्षक सुबोध कुमार ने बताया कि सूबे में कहीं भी किसी भी मात्रा में जब्त होने वाली शराब की एक सैंपल जांच के लिए विभाग में आती है. इस जांच में 90 फीसदी से अधिक शराब आइएमएफएल (इंडियन मेड फॉरेन लीकर) के मानकों पर फेल साबित हुई हैं.
डिस्ट्रिल्ड वाटर की जगह कुएं या नल का पानी इस्तेमाल
नकली शराब बनाने वाले रसायन शास्त्रियों की मदद से अल्कोहल का मानक स्तर 42.8 फीसदी, तो किसी तरह मेंटेन कर लेते हैं, लेकिन इएनए (एक्स्ट्रा न्यूट्रल अल्कोहल) की जगह स्पिरिट, रेक्टिफाइड स्पिरिट या इथेनॉल का इस्तेमाल करते हैं. इसके साथ ही डिस्ट्रिल्ड वाटर की जगह कुएं या नल का पानी इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में यह शराब मानक पर आधारित नहीं होने से स्वास्थ्य के लिए और खतरनाक हो जाती है.
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बोतल, रैपर, ढक्कन से भी नकली का चल रहा पता
रसायन विशेषज्ञ के मुताबिक नकली शराब की पहचान उसके रि-यूज्ड बोतल, रैपर, ढक्कन और सील से भी हो जाती है. अशुद्ध होने की वजह से यह स्वाद में भी काफी कड़वी होती है. वहीं, इएनए से बनी शराब सॉफ्ट होती है. उनके मुताबिक किसी भी रसायन में मिथाइल अल्कोहल मिलाने पर वह जहरीली हो जाती है. जहरीली शराब से हुई मौत के मामलों में आमतौर पर इस रसायन का इस्तेमाल ही पाया गया है.