बिहार में बढ़ रही इस औषधीय पौधे की मांग, इसकी खेती से किसानों को हो रहा लाखों का फायदा
ऐलोवेरा की खेती किसानों के लिए लाभदायक साबित हो रही है.एलोवेरा का उपयोग हर्बल उत्पाद और दवाओं में प्रचुर मात्रा में किया जाता है.देखा जाए तो कोरोना संकट के बाद से ही ऐलोवेरा की खेती किसानों के लिए लाभदायक साबित हो रही है.एलोवेरा का उपयोग हर्बल उत्पाद और दवाओं में प्रचुर मात्रा में किया जाता है.
ऐलोवेरा की खेती किसानों के लिए लाभदायक साबित हो रही है. एलोवेरा का उपयोग हर्बल उत्पाद और दवाओं में प्रचुर मात्रा में किया जाता है. देखा जाए तो कोरोना संकट के बाद से ही देश दुनिया में आयुर्वेदिक और इम्युनिटी बढ़ाने वाले प्रोडक्ट की मांग में काफी तेजी आई है. सौंदर्य प्रसाधन के सामान में ऐलोवेरा का बहुत ज्यादा उपयोग होता है. बाजार में एलोवेरा से बने उत्पादों जैसे एलोवेरा का फेस वॉश, क्रीम, फेस पैक और भी कितने प्रोक्ट्स हैं जिनकी बहुत मांग है.
एलोवेरा का पौधा 3 से 4 महीने में बेबी प्लांट देता है
एलोवेरा की खेती की सबसे अच्छी बात यह है कि इसके लिए सिर्फ एक बार पैसा लगाना होता है और उसके बाद 5 साल तक उस पौधे से लाभ कमाया जा सकता है. एलोवेरा का पौधा 3 से 4 महीने में बेबी प्लांट देता है. इसलिए एक बार पौधा लगाने के बाद पौधों से निकलने वाले बेबी प्लांट को दूसरी जगह भी लगाया जा सकता है. बाजारों में बढ़ती मांग को देखते हुए हर्बल और कास्मेटिक्स उत्पाद और दवाएं बनाने वाली कंपनियां इसे खरीदती है.
एलोवेरा की कॉन्ट्रैक्ट खेती भी होती है
यदि इसकी व्यावसायिक तरीके से खेती की जाए तो इसकी खेती से सालाना 8 से 10 लाख रुपए तक कमाई की जा सकती है. ऐसी कई कंपनी हैं. जो एलोवेरा की कॉन्ट्रैक्ट खेती भी कराती हैं. एलोवेरा को घृत कुमारी के नाम से भी जाना जाता है. कई साल चलने वाला एलोवेरा का पौधा एक औषधीय पौधे के रूप में विख्यात है. एलोवेरा का पौधा बिना तने का या यह कहें की बहुत ही छोटे तने का एक गूदेदार और रसीला पौधा होता है. जिसकी लम्बाई 60 से 100 सेंटीमीटर तक होती है.
एलोवेरा की पत्तियां हरी एवं मांसल होती है
एलोवेरा के पौधा में गर्मी के मौसम में पीले रंग के फूल भी उत्पन्न होते हैं. एलोवेरा की पत्तियां हरी एवं मांसल होती है. एलोवेरा भारत में विदेश से आया है. लेकिन धीरे धीरे यह देश के शुष्क इलाकों में बड़ी संख्या में पाया जाने लगा. यह बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के सूखे हिस्सों में बड़ी संख्या में पाया जाता है. देखा जाए तो एलोवेरा की कई प्रजातियां होती हैं. जिसमें इंडिगो सबसे आम है जो आम तौर पर हर घर में देखने को मिल जाता है. लेकिन इसकी एलोवेरा बार्बाडेन्सीस प्रजाति काफी लोकप्रिय है.
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इसकी खेती के लिए उष्ण जलवायु उपयुक्त मानी जाती है
एलोवेरा की खेती के लिए उष्ण जलवायु उपयुक्त मानी जाती है. इसकी खेती आमतौर पर शुष्क क्षेत्र में न्यूनतम वर्षा और गर्म आर्द्र क्षेत्र में की जाती है. धूसर मिट्टी में एलोवेरा अच्छी पैदावार देता है. इसकी खेती रेतीली मिट्टी और दोमट मिट्टी में भी की जा सकती है. एलोवेरा की खेती सर्दियों के महीनों को छोडक़र पूरे साल की जा सकती है. एलोवेरा के पौधे में ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है. ज्यादा पानी से इसकी जड़ें सड़ जाती है. एलोवेरा पीलिया, खांसी, बुखार, पथरी, चर्म रोग और सांस आदि रोगों में काफी उपयोगी माना जाता है.