परंपरागत खेती छोड़ रहे किसान, खेतों में अब लहलहा रही है काले गेहूं की फसल, किसानों को अच्छी आमदनी उम्मीद
परंपरागत खेती जैसे धान-गेहूं के साथ-साथ अपने खेत के कुछ हिस्सों में औषधि पौधा, जैविक सब्जी खेती इत्यादि का भी समावेश जरूरी हो गया है.
टिकारी. परंपरागत खेती जैसे धान-गेहूं के साथ-साथ अपने खेत के कुछ हिस्सों में औषधि पौधा, जैविक सब्जी खेती इत्यादि का भी समावेश जरूरी हो गया है. प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत मखदुमपुर पंचायत के भैरबा गांव निवासी अवकाश प्राप्त शिक्षक मुरारी शर्मा लगभग एक बीघा जमीन पर काले गेहूं की खेती कर रहे हैं.
अपने खेतों में लहलहाते फसल को देख काफी खुश व प्रसन्न दिखते हैं. इनका कहना है कि काले गेहूं बहुत ही गुणकारी है और तो और कई तरह के बीमारियों को रोका जा सकता है.
ब्लैक व्हीट(काला गेंहू) डाईविटीज, कैंसर और दिल के बीमारियों के लिए फायदेमंद है. साथ ही इसका डिमांड बड़े-बड़े शहरों में बहुत है. नार्मल गेहूं में प्रोटीन सिर्फ 13 ग्राम (100 ग्राम) होता है. जबकि काला गेहूं में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है.
काले गेहूं के आटे के सेवन से मनुष्य स्वस्थ रहता है. इस संबंध में श्री शर्मा बताते है कि मेरा बेटा मनीष कुमार वायुसेना में है और उसका हमेशा दबाव रहता था कि काले गेहूं की खेती करूं और दूसरे लोगों को भी इसके लिये प्रेरित करूं. क्योंकि यह बहुत ही गुणकारी व औषधीय पौधे है.
किसान श्री शर्मा का कहना है कि गांव में सिंचाई का एकमात्र प्राकृतिक साधन मोरहर नदी है. जो गेहूं पटवन के समय पूरी तरह से सूखा रहता है. फसल को बचाने के लिये ट्यूबवेल के सहारे खेतों का पटवन किया जाता है.
यहां यह बतादे की क्षेत्र में कई किसान ऐसे है जो आम,अमरूद,वैर ,पपीता के फसल के अलावे मशरूम , ब्लैक राइस, काला गेहूं, नीला गेहूं, बेबी कॉर्न आदि की खेती करते हैं और अच्छी फसल होती है. इससे किसान काफी खुश होते हैं.
Posted by Ashish Jha