किसानों को कच्चे पपीते से पपेन निकाल कर अच्छी कमाई के लिए किया जा रहा प्रेरित, पपेन से बनेगी दवाएं
पपेन प्राप्त करने के लिए तीन महीने पुराने फलों पर डंठल की ओर से करीब तीन मिमी गहराई के 4-5 चीरे लंबाई में लगाये जाते है. चीरा लगाने के तुरंत बाद फलों से दूध निकलने लगता है.
पपीते का दूध यानी पपेन से बिहार की सेहत और किसानों की माली हालत में सुधार होगा. इसी ध्येय के साथ डॉ राजेंद्र प्रसाद केद्रीय कृषि विवि, समस्तीपुर की अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना के तहत पपीते की खेती करने वाले किसानों को कच्चे फल से पपेन (दूध) निकाल कर अच्छी कमाई के लिए प्रेरित किया जा रहा है. विव के वैज्ञानिक कार्य योजना बना रहे है.
इसके लिए किसानों को ट्रेनिंग भी दी जायेगी. आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, असम, उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और मिजोरम के तर्ज पर बिहार में भी पपीता उत्पादक किसानों को पपेन का उत्पादन कराने के लिए सरकार पयासरत है. अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना के डायरेक्टर रिसर्च डॉ एसके सिंह बताते है कि बिहार में पपेन के उत्पादन को व्यवहार में लाने की जरुरत है. इसके लिए किसानों को जागरुक किया जा रहा है. यूरोप में इसकी मांग बहुत है.
पपेन से बनती है दवा व सौदर्य प्रसाधन सामग्री
डॉ सिंह बताते है कि पपेन हरे एवं कच्चे पपीते के फलों से सफेद रस या दूध निकाल कर सुखाये गये पदार्थ को पपेन कहते है. पपेन एक पाचक एन्जाइम है, जिसका उपयोग प्रोटीन के पचाने, चिवंगम बनाने, पेपर कारखाने में, दवाओं के निर्माण , सौदर्य प्रसाधन के सामान बनाने आदि के लिए किया जाता है. पपेन से पेट का अल्सर, दस्त, एक्जिमा, लीवर के रोग, कैसर के इलाज में उपयोगी दवा तैयार की जाती है.
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पपेन निकालने की विधि
पपेन प्राप्त करने के लिए तीन महीने पुराने फलों पर डंठल की ओर से करीब तीन मिमी गहराई के 4-5 चीरे लंबाई में लगाये जाते है. चीरा लगाने के तुरंत बाद फलों से दूध निकलने लगता, जिसे किसी मिट्टी या एल्युमिनियम के बर्तन में इकट्ठा कर लिया जाता है. चीरा लगाये गये फलो को पकने दिया जाता है. इन फलों का उपयोग जैम, मुरब्बा, फरटी एवं फरट शेक के रूप में भी किया जा सकता है.
होगी अतिरिक्त आय
डॉ राजेंद्र प्रसाद केद्रीय कृषि विवि के वैज्ञानिकों के अनुसार एक हेक्टयेर में पपीते की खेती में करीब तीन लाख रुपये की लागत आती है, इससे आठ से 12 लाख तक का फल बेच सकते है. किसान यदि पपेन निकालता है, तो उससे अतिरिक्त आय होगी. एक हेक्टेयर में औसतन 300 किग्रा तक पपेन निकाला जा सकता है. बाजार में इसकी कीमत 150 रुपये पति किलों तक है.
पपीते की खेती में रुचि दिखा रहे किसान
बिहार में पपीते की खेती के प्रति किसान रुचि दिखा रहे है. वैसे पपीते की खेती पूरे बिहार में होती है, पर व्यावसायिक स्तर पर इसकी खेती समस्तीपुर, बेगूसराय, मुंगेर, वैशाली एवं भागलपुर जिलों में होती है. 2018 में राज्य में इसकी खेती का कुल रकबा 1.9 हजार हेक्टेयर था़. 42.72 हजार टन उत्पादन था. वर्तमान में 2.57 हजार हेक्टेयर में 47.93 हजार टन उत्पादन हो रहा है. 16.30 % वार्षिक चकवृद्ध की दर से क्षेत्रफल और 5.92 % वार्षिक चकवृद्ध की दर से उत्पादन बढ़ रहा है.