बक्सर जिले के ब्रह्मपुर प्रखंड के दियारा इलाके के उत्तरी नैनीजोर, दक्षिणी नैनीजोर महुआर व हरनाथपुर पंचायत के किसानों की मुख्य आय का स्रोत परवल की खेती है. मगर इनकी माने तो मंडी के अभाव में परवल औने-पौने दाम में ही व्यापारियों को बेचने को मजबूर हैं. जबकि यहां से प्रतिदिन दर्जनों ट्रक परवल सूबे के विभिन्न शहरों समेत यूपी, उड़ीसा और बंगाल भेजी जाती है. किसानों का मानना है कि कम लागत में अधिक मुनाफा इसकी खेती से की जा सकती है. किसान बताते है कि इसमें उर्वरक और पानी की आवश्यकता बिल्कुल नहीं होती. इसकी खेती के लिए एक पटवन काफी होता है. इसलिए इसमें बोआई के समय ही लागत आती है. जनवरी में बोआई के बाद मार्च में परवल निकलना आरंभ हो जाता है जो पांच महीने तक चलता है.
किसानों का कहना है कि एक एकड़ परवल की खेती में 30 से 40 हजार की लागत आती है जिसमें मुनाफा चार गुना से अधिक मुनाफा हो सकता है. परवल की खेती ज्यादातर गंगा के तराई की बलुआही मिट्टी पर की जाती है. नैनीजोर व जवही दियर के पांच किलोमीटर क्षेत्र के पांच सौ एकड़ से अधिक जमीन पर परवल बोया जा रहा है. परवल की खेती से हजारों लोगों को छह महीने तक रोजगार मिल रहा है. घर में बैठी महिलाएं सुबह के दो घंटे परवल तोड़ कर दो सौ रुपये कमा ले रही है. वहीं सैकड़ों पुरुष भी परवल को वजन करने और दूसरे शहरों में भेजने के लिये ट्रांसपोर्ट में लोडिंग करने में लगे रहते हैं.
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रमेश तिवारी- बाजार के अभाव में फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पाता. इस इलाके में उगायी जाने वाली परवल की सप्लाइ ब्रह्मपुर चौरास्ता स्थित मंडी से बिहार सहित झारखंड, बंगाल, उड़ीसा व उत्तर प्रदेश भेजा जाता है. लेकिन किसानों को इनके फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पाता क्योंकि यहां बाजार नहीं है.
रामजीत तिवारी – परवल की खेती करने के बाद किसानों के पास बहुत सारी मजबूरी होती है क्योंकि यही फसल लगाने के लिए किसान गोलेदार से पैसा कर्ज के रूप में लेता है जिसके कारण किसान को गोलेदार को फसल बेचना मजबूरी होती है.
जितेंद्र तिवारी- फसल तैयार के बाद मंडी नहीं होने के कारण बिचौलियों के हाथ फसल बेचना मजबूरी होती है. क्योंकि उत्पादन के बाद किसान के पास रखरखाव का साधन नहीं है. जिसके कारण फसल को बेचना मजबूरी है. इससे किसानों की परेशानी बढ़ गयी है.
विनय कुमार- यदि यहां पर कोल्ड स्टोरेज रहता तो किसान फसल बेचने के लिए इंतजार भी कर सकते थे, लेकिन कोल्ड स्टोरेज नहीं होने के कारण फसल की रखरखाव नहीं हो सकती है. जबूरी में किसान को औने पौने भाव में फसल को बेचना पड़ता है.
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