मॉनसून बारिश नहीं होने से मवेशी को धान का बिचड़ा खिला रहे मायूस किसान
मॉनसून बारिश नहीं होने से मायूस किसान अब खेतों में लगे धान के बिचड़े को काटकर मवेशी को खिला रहे हैं. इस बार अषाढ़ से लेकर भादव तक मानसून के कमजोर रहने के कारण अनावृष्टि की स्थिति उत्पन्न हो गयी है. जिले में 9407 हेक्टेयर में धनरोपनी के विरुद्ध 9209 हेक्टेयर में खेती हुई है.
मॉनसून बारिश नहीं होने से मायूस किसान अब खेतों में लगे धान के बिचड़े को काटकर मवेशी को खिला रहे हैं. इस बार अषाढ़ से लेकर भादव तक मानसून के कमजोर रहने के कारण अनावृष्टि की स्थिति उत्पन्न हो गयी है. हालांकि, संघर्षशील किसानों ने जैसे-तैसे पटवन कर धान की रोपनी की. लेकिन, जुलाई व अगस्त माह में अनावृष्टि ने किसानों की कमर तोड़ दी. पानी के अभाव में झुलस रहे धान के पौधों को देख किसान हताश हैं, वहीं पीले बिचड़ों को देख रोपनी की आस छोड़ उसे काट मवेशी को खिला रहे हैं.
सावन भादो में खेत में पड़ी दरार
अमैठी के किसान भगवान बाबू झा ने बताया कि बारिश की आस में जैसे-तैसे आधे खेतों में धान की रोपनी हो सकी. सावन-भादो में बारिश नहीं होने के कारण खेतों में दरारें पड़ चुकी हैं. फसल मुरझा रही है. रोपनी के लिए संजोग कर रखे बिचड़े पीले पड़ने लगे हैं. अब बारिश होने पर रोपनी करने से भी कोई फायदा नहीं है. वहीं हावीभौआर के किसान चौधरी निर्मल राय का कहना है कि इस बार शुरू से ही मानसून किसानों को दगा दे रही है. किसान बारिश होने की आस में महंगे पटवन कर लगभग 70 फीसदी खेतों में रोपनी तो कर दी, वे फसल भी अब पानी के अभाव में झुलस रही है. पंचायत के लगभग 30 प्रतिशत खेत आज भी परती पड़ा है.
बारिश के आस में बर्बाद हुआ बिचड़ा
बारिश की आस में धान के बिचड़े अब बर्बाद हो चुके हैं. किसान उसे काटकर मवेशी को खिलाने रहे हैं. कटवासा के किसान बैजनाथ यादव बताते हैं कि आर्द्रा नक्षत्र में बारिश होने से थोड़ा-बहुत धान की रोपनी हुई. उसके बाद निजी पम्पसट के सहारे फसल लगाया, परंतु खेतों में दरार पड़ने से पौधे झुलस रहे हैं. वहीं दो-तीन बीघा खेत बारिश के अभाव में परती पड़ी हुई है. अब रोपनी संभव नहीं हो पायेगी. गांव में लगे राजकीय नलकूप दशकों से बंद पड़े हैं. इस कारण पटवन नहीं हो पा रहा है. नलकूप चालू रहता तो आज किसान का बिचड़ा काटकर मवेशी को नहीं खिलाना पड़ता. इस संबंध में बीएओ नकुल प्रसाद ने बताया कि इस वर्ष 9407 हेक्टेयर भूमि में धनरोपनी का लक्ष्य दिया गया था. इसमें किसानों द्वारा 9209 हेक्टेयर में खेती की गयी.