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बिहार के किसानों ने खेती करने का बदला तरीका, हल्दी की खेती कर संवार रहे जिंदगी

प्रखंड के मलहारा, ईटवां, हैबसपुर, खुटहन,धमनी सहित अन्य गांवों में किसान परंपरागत खेती से हट कर बड़े पैमाने पर हल्दी की खेती कर रहे हैं, जिससे कम मेहनत में उन्हें अच्छी कमाई हो रही है.

By Prabhat Khabar News Desk | December 14, 2020 10:13 AM

हसपुरा (औरंगाबाद): प्रखंड के मलहारा, ईटवां, हैबसपुर, खुटहन,धमनी सहित अन्य गांवों में किसान परंपरागत खेती से हट कर बड़े पैमाने पर हल्दी की खेती कर रहे हैं, जिससे कम मेहनत में उन्हें अच्छी कमाई हो रही है.

बताया जाता है कि कई गांवों में मंझोले किसान बंटाई की जमीन लेकर भी हल्दी की खेती को बढ़ावा दे रहे हैं. कोई पांच कट्ठा में खेती कर रहा है, तो कोई दस से बीस कट्ठा में.

किसानों की सोच है कि कम पूंजी में अधिक मुनाफा कमाया जाये. मलहारा गांव के किसान रामबिलास महतो, लीलाधर रंजन, चनारिक यादव,अरविंद प्रसाद, जखौरा गांव के परशुराम वर्मा बताते है कि धान व गेहूं की खेती अब खर्चीला हो गया है.

पैदावार की कोई गारंटी भी नहीं है. कभी सूखाड़ का सामना करना पड़ता है तो कभी बाढ़ का. अच्छी फसल होने के बाद किसानों को कमजोर बाजार व सरकारी उदासीनता का भी सामना करना पड़ता है.

ऊपर से बिचौलिये हावी है. वैसे भी बिचौलियों के हाथ फसल बेचना किसानों की मजबूरी है. हल्दी की खेती में पांच से दस हजार रुपये खर्च कर चार गुना से अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है.

सबसे बड़ी बात यह है कि हल्दी का नकद बाजार है.व्यवसायी किसानों के घर से बेहतर कीमत पर सामान उठा लेते है या जरूरत पड़ी तो किसान बाजार में जाकर अपने उत्पाद को भी बेच देते है.

किसानों ने बताया कि हल्दी के अलावा दूसरे फसल भी लगाया जा सकते है. इस वर्ष मौसम के अनुकूल हल्दी की खेती हुई है. अच्छी फसल होने का भी अनुमान है.

क्या कहते हैं कृषि समन्वयक

हसपुरा प्रखंड के कृषि समन्वयक राजकुमार सिंह और रिटायर्ड कृषि समन्वयक सुरेंद्र कुमार सिंह बताते है कि किसान हल्दी की खेती के लिए दोमट मिट्टी वाली खेत को चयन करें. इसमें उपज अधिक होती है.

उन्होंने कहा कि धान व गेहूं की खेती से अलग हट कर हल्दी या सब्जी की खेती में किसानों की रुचि लगातार बढ़ रही है. सरकार की ओर से भी किसानों को बढ़ावा दिया जा रहा है,जिसका लाभ किसान उठा रहे है.

Posted by Ashish Jha

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