Drought In Magadh: बारिश के इंतजार में किसान, मगध के इलाकों के खेतों में पड़ी दरार

औरंगाबाद के भीम बैराज में जलस्तर नगण्य होने के कारण नहरों का संचालन नहीं हो पा रहा है. 17549.324 हेक्टेयर भूमि पर फसल बोने का लक्ष्य है जिसके लिए 2.3 मीटर पानी की आवश्यकता है. ऐसे में किसान बारिश का इंतजार कर रहे हैं लेकिन बारिश नहीं हो रही है

By Anand Shekhar | June 23, 2024 6:00 AM

सुजीत सिंह, औरंगाबाद. Drought In Magadh: बिहार के मगध क्षेत्र को कृषि प्रधान इलाके के तौर पर जाना जाता है. यहां उद्योग धंधों का अभाव है. इस वजह से आबादी ही नहीं, बल्कि मगध की पूरी अर्थव्यवस्था कृषि पर ही टिकी हुई है. पिछले दो वर्षों से मगध के जिले सुखाड़ का सामना कर रहे है. इस वजह से ग्रामीण क्षेत्रों से लोगों का पलायन भी हुआ है. मगध के ही औरंगाबाद जिले की बात की जाए, तो 11 प्रखंडों में चार से पांच ऐसे प्रखंड हैं, जहां के लोग गरीबी में जीवन बसर करते है. यूं कहे कि कृषि कार्यों में मजदूरी कर अपनी आजीविका चलाते है, लेकिन दो वर्षों से सुखाड़ के कारण मदनपुर, रफीगंज और देव प्रखंड के मजदूर दूसरे राज्यों की ओर पलायन कर गये.

इस वर्ष अत्यधिक ठंड के बाद गर्मी पड़ने से किसानों व मजदूरों में एक उम्मीद जगी थी कि शायद इस बार जिले में हरियाली आयेगी और पलायन करने वाले फिर खेती की ओर मुड़ेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. समय के साथ बारिश की उम्मीदें भी क्षीण होती जा रही हैं. लगातार तीसरे साल औरंगाबाद जिला सूखाड़ की ओर बढ़ रहा है. हालांकि, इस बार 17549.324 हेक्टेयर भूभाग में नर्सरी लगाने का लक्ष्य तय किया गया है, लेकिन अब तक महज 225 हेक्टेयर में ही नर्सरी लगायी जा सकी है.

लंबी अवधि वाले धान का बिचड़ा डालने का समय समाप्त

कृषि मौसम वैज्ञानिक डॉ अनूप कुमार चौबे की मानें, तो लंबी अवधि और मध्यम अवधी वाले धान का बिचडा डालने का समय समाप्त हो गया है. मध्यम अवधि के प्रभेद सोनम, राजेंद्र श्वेता आदि की नर्सरी 15 जून तक के आसपास लगाये जा सकते थे, जिसका समय भी समाप्त हो गया. हैरत की बात तो यह है कि आसमान से अंगारे बरस रहे हैं. ऐसे में अब तक लक्ष्य के अनुरूप महज लगभग दो प्रतिशत धान का बिचडा डाला गया है.

कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी के जिले में 175493.24 हेक्टयेर भूभाग में धान की रोपनी कराने का लक्ष्य है. इसके लिए 17549.324 हेक्टेयर में नर्सरी तैयार करनी है, जो रोपनी के कुल भूभाग का 10 प्रतिशत है. अब तक जिले में तकरीबन 250 हेक्टेयर भूभाग में ही नर्सरी लगाई जा सकी है. कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि इसका असर उत्पादन पर पड़ सकता है.

रोहिणी के बाद बीता मृगशिरा, अब आर्द्रा से उम्मीद

खेती का समय बीता जा रहा है. नर्सरी तैयार करने का प्रमुख नक्षत्र रोहिणी के बाद मृगशिरा नक्षत्र बीत गया,लेकिन बारिश का कहीं अता-पता नहीं है. इस वर्ष भी अब तक के हालात कुछ ठीक नहीं दिख रहे है. 22 जून को प्रकृति में आर्द्रा नक्षत्र का भी प्रवेश हो गया. अभी तक जिले के किसी भी क्षेत्र में बारिश नहीं हुई है.ऐसे में किसान बिल्कुल हताश -निराश है.

जाने ज्योतिर्विद से मौसम का हाल

ज्योतिर्विद डॉ हेरंब कुमार मिश्र कहते हैं कि शनिवार को प्रातः सात बजकर 44 मिनट पर सूर्यदेव का आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश हो गया. आर्द्रा को बारिश का कारक नक्षत्र माना जाता है. इस नक्षत्र से ही वर्षा का आरंभ होता है जो कृषि कार्य के लिए शुभ है .इस नक्षत्र में होने वाली बारिश से खेतों की पैदावार का अनुमान लगाया जाता है. उन्होंने बताया कि 27 नक्षत्रों में आर्द्रा छठा नक्षत्र है, जिसके स्वामी राहु हैं. मृगशिरा नक्षत्र में धरती के तपने के बाद आर्द्रा में बारिश होने का समय आरंभ होता है. इसमें किसान खेती का कार्य मनोयोग पूर्वक शुरू करते हैं.

22 दिनों में सिर्फ 4.9 एमएम बारिश

औरंगाबाद जिले में बारिश ने किसानों को दगा दे दिया है. एक जून से अब तक 95 से 100 एमएम बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन महज 4.9 एमएम ही बारिश हुई. प्रतिदिन 4.5 एमएम बारिश की आवश्यकता है, लेकिन ये आंकड़े अब तक व्यर्थ साबित हुए. एसएसओ ब्रजेंद्र सिंह ने बताया कि जून में 136.1 एमएम औसतन बारिश की संभावना जतायी गयी थी. अब तक कम से कम 95 एमएम से 100 एमएम बारिश होनी चाहिए थी.

बिहार में क्यों देर से आया मानसून

मौसम वैज्ञानिक डॉ अनूप चौबे ने बताया कि बिहार के ज्यादातर हिस्सों में जून के दूसरे सप्ताह में पछुआ हवा और लू चली थी. इस वजह से बंगाल के इस्लामपुर में 31 मई से मानसून रुका हुआ था. उत्तर हिमालय के इलाके में पश्चिमी विक्षोभ ने दस्तक दी, जिससे हवा में नमी की मात्रा बढ़ी और हवा की दिशा पुरवैया हो गयी. इससे बंगाल की खाड़ी में कम दबाव का क्षेत्र बना और फिर आगे बढ़ गया. मानसून के देरी से आने पर खरीफ फसलों के उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. मिट्टी में नमी की कमी और वातारण का तापमान अधिक होने से फसलों के अंकुरण पर असर पड़ा है. धान की खेती के लिए समय पर बारिश होना बहुत जरूरी है.

30 सितंबर तक मानसून सीजन, ला-नीना के प्रभाव से अच्छी बारिश के आसार

इस वर्ष सारी परिस्थितियां अनुकूल रहीं, तो सामान्य से अधिक बारिश की संभावना है. ला-नीना के प्रभाव से अच्छी वर्षा के आसार हैं. वहीं, पर्याप्त बारिश के पीछे बंगाल की खाड़ी में दबाव का होना, हवा का प्रभाव, ट्रफ एरिया का विकसित होना समेत अन्य भौगोलिक कारक होते हैं. इन चीजों में कमी आने पर वर्षा के अनुपात में कमी आती है. हालांकि इस बार बारिश होने के पूरे आसार हैं.

औरंगाबाद में 40 से 47 डिग्री के बीच झूलता रहा पारा

औरंगाबाद जिले के लोगों ने मई और जून माह में भयानक गर्मी का सामना किया है. एक तरह से स्थिति भयावह रही. 40 से 47 डिग्री के बीच पारा झूलते रहा. हीटवेव और अत्यधिक गर्मी से दर्जनों लोगों की जान गयी. ये अलग बात है कि प्रशासनिक स्तर पर चंद लोगों की मौत की पुष्टि हुई. वैसे मॉनसून देर से आने के कारण बिहार के अधिकांश जिलों का तापमान 40 से 47 डिग्री सेल्सियस के आसपास दर्ज किया गया. यह किसी भी फसल या सब्जी फसल के उत्पादन पर बुरा प्रभाव डाला.

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