मुजफ्फरपुर. कृषि से जुड़ी समस्याओं के समाधान व खेती की नयी तकनीक से अवगत कराने के लिए शनिवार को प्रभात खबर की ओर से ऑनलाइन कृषि काउंसेलिंग का आयोजन किया गया. इसमें राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ शेषधर पांडेय, डॉ मानधाता, डॉ गोविंद कुमार, पौधा संरक्षण विशेषज्ञ हेमचंद्र चौधरी, पशुपालन विशेषज्ञ डॉ भूषण, कृषि विशेषज्ञ डॉ श्रीप्रिया दास, किसान नेता वीरेंद्र राय, सुधीर कुमार, भवानी प्रसाद, संजय कुमार, राजा बाबू, गुंजन कुमार रावत, उत्कर्ष उज्वल चौबे, पवन कुमार, नीतेश कुमार, रवींद्र जहिया, बालेश्वर प्रसाद, मुकेश कुमार, मनीष नंदन, हरिशंकर साह, सत्यम कुमार, कुंदन शर्मा, राजीव कुमार, साक्षी कुमारी, शंकर प्रसाद, इंदल शर्मा, शैलेंद्र चौधरी, सत्यनारायण, रोशन कुमार, कुंदन कुमार, प्रतिभा आयूषी समेत काफी संख्या कृषि वैज्ञानिक व किसानों ने भाग लिया. कृषि विशेषज्ञ डॉ मानधाता ने सरसों, तोरी व मक्के की खेती के संबंध में विस्तार पूर्वक जानकारी दी.
कृषि विशेषज्ञ डॉ मानधाता ने कहा कि तेलहनी फसलों में मुख्य रूप से अवधि व प्रभेद पर ध्यान देना है. बढ़िया उत्पादन की पहली शर्त है कि किसान मिट्टी जांच कर संतुलित मात्रा में उर्वरक व पानी का प्रयोग करें. लंबी अवधि की प्रजाति की देर से बोआई नहीं करें. समय से बोआई करने के बाद फसल अपना जीवन चक्र आराम से पूरा करती है. लंबी अवधि के प्रभेद को कम समय में जीवन चक्र पूरा करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इससे उत्पादन पर काफी असर पड़ता है. तेलहनी फसलों के अधिक उत्पादन के लिए आवश्यक उर्वरकों के साथ सूक्ष्म पोषक तत्व सल्फर, जिंक व बोरॉन का उचित मात्रा में प्रयोग काफी आवश्यक है. यह सेल का निर्माण के साथ साथ अधिक फलन में भी सहायक होता है. बीज में एजेटोबैक्टर बैक्ट्रीया भी मिलाकर बोआई कर सकते हैं.
धान के खेत में अगर सरसों की बोआई करते हैं तो पीएसबी जरूर मिलाएं. एक बीघा में एक किलोग्राम सरसों की बोआई करें. किसान पूसा सरसों 28, पूसा सरसों 30, आर 728 आर 728 किस्म की बोआई कर सकते हैं. हाइब्रिड किस्म के बीज भी अच्छे परिणाम देते हैं. बढ़ती जनसंख्या के लिए भोजन की जरूरतों को पूरा करने के लिए वर्ष 1980 बाद डीएपी उर्वरक का प्रयोग बढ़ गया. इस उर्वरक में सबसे बड़ी समस्या है कि यह मिट्टी में घुलता नहीं है. इसका प्रयोग पौधा कम कर पाता है. मिट्टी में लेयर भी बना लेता है. और मिट्टी की छलनी को बंद कर देता है. इसके दुष्प्रभाव को कम करने के लिए गरमी में खेतों की गहरी जुताई के बाद पीएसबी कल्चर यानी बैक्ट्रिया फॉर्म में उपयोग कर सकते हैं. ऑर्गेनिक कार्बन कंटेट का प्रयोग करने की जरूरत है.
किसान राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विवि, पूसा व तिरहुत कृषि कॉलेज ढोली में पीएसबी कल्चर का ऑर्डर दे सकते हैं. यहां पर पीएसबी कॉलोनी फार्मिंग यूनिट के रूप में तैयार किया जाता है. इस कल्चर से बीज उपचारित करके भी बोआई कर सकते हैं. एक एकड़ के लिए दो किलोग्राम कल्चर का उपयोग करना बेहतर होगा. यह कल्चर 24 घंटे में मिट्टी में फैलकर प्रभाव फसलों पर डालता है. बीज उपचारित करने के दौरान गुड़ का उपयोग कर सकते हैं.
कृषि विशेषज्ञ डॉ धमेंद्र द्विवेदी किसानों को आलू व मक्के की मिश्रित खेती के संबंध में जानकारी दी. आलू व मक्के की खेती जैविक तरीके से करने पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि आलू के कंद सात सेंटीमीटर दूरी पर और मक्के को 20 सेंटीमीटर दूरी पर लगाएं. खेतों में एसएसपी यानी सिंगल सुपर फॉस्फेट का प्रयोग जरूर करें. यह बहुत संतुलित उर्वरक है. एक किलोग्राम डीएपी की जगह तीन किलोग्राम एसएसपी का प्रयोग करना है.
किसान दलहनी फसलों में चना, मटर, मसूर की खेती खरीफ सीजन में कर सकते हैं. इन फसलों की खेती की सबसे बड़ी समस्या उकटा रोग है. इस रोग के लगने के बाद पौधा सूखने लगता है. किसान बोआई के दौरान कार्बेंडाजिम से बीज को उपचारित करें. राइजोबियम कल्चर अधिक फायदेमंद साबित हो सकता है. बोआई के 40 से 45 दिनों के बाद दलहन में 19.19.19 दानेदान फॉर्म में छिड़काव कर सकते हैं. दलहन व तेलहन की खेती में टी आकार में लकड़ी का बनाकर लगा दें.
इस पर समय समय पर चिड़िया बैठेगी, वह कई की कीड़े- मकोड़े का सफाया करेगी. इससे फली छेदक व कटुआ रोग से फसल को निजात मिलेगी. किसान तेलहनी व दलहनी फसलों में खरपतवार नियंत्रण के लिए बोआई के पहले दिन पेंडिमेथिलिन नाम की दवा का इस्तेमाल कर सकते हैं. पेंडिमेथिलिन को मास्टर हर्बिसाइड भी कहते हैं. एक लीटर पानी में एक एमएल दवा का मिश्रण बनाकर प्रयोग कर सकते हैं. बाद में, खरपतवार नियंत्रक दवा का छिड़काव करने से बीज के अंकुरण पर प्रतिकूल असर पड़ता है.
पौधा संरक्षण विशेषज्ञ हेमचंद्र चौधरी ने किसानों को पीएसबी का प्रयोग कर जमीन को हानिकारक रसायनों के दुष्प्रभाव से मुक्त कराने की जानकारी दी. उन्होंने किसानों को एजोस्पोरिलम व ऑर्गेनिक कार्बन के प्रयोग के फायदे भी बताये. बताया कि मिट्टी में उर्वरक का मैनेजमेंट बहुत जरूरी है. किसानों को लौकी की फसल को बचाने की तकनीकी जानकारी दी. लौकी के फूल व फलों को फंगस व कीड़े से बचाने के लिए क्लोरोपाइरीफॉस व साइपरमेथ्रिन मिश्रण के साथ साफ नाम की दवा का छिड़काव दो बार करके बंद करने का सुझाव दिया. इससे गलका रोग समाप्त हो जायेगा. उत्पादन बढ़ाने के लिए अमीनो एसिड व मल्टीप्लेक्स मिलाकर छिड़काव करने की सलाह दी. ठंड में लगनेवाली सभी फसलों में सल्फर 20 प्रतिशत करने का सुझाव दिया. सल्फर व यूरिया का मिश्रण बनाकर छिड़काव करना काफी फायदेमंद होता है.