Madhushravani Puja: पग-पग पोखर, माछ-मखान के लिए प्रसिद्ध मिथिला की प्राचीन जीवन पद्धति वैज्ञानिक रही है. कल एक ओर प्राकृतिक प्रकोप से बचाव का संदेश देता नाग पंचमी का पर्व है. वहीं, नवविवाहितों को सुखमय दांपत्य जीवन जीने की कला सिखाने वाला 15 दिवसीय पारंपरिक लोकपर्व मधुश्रावणी भी कल से प्रारंभ हो रहा है. श्रावण मास के कृष्ण पंचमी से शुरू होने वाला मधुश्रावणी मिथिलांचल का इकलौता ऐसा लोकपर्व है, जिसमें पुरोहित महिला ही होती हैं. इसमें व्रतियों को महिला पंडित न सिर्फ पूजा कराती हैं, बल्कि कथावाचन भी करती हैं. नवविवाहिता महिला पंडित को पूजा के लिए न सिर्फ समझौता करती हैं, बल्कि इसके लिए उन्हें दक्षिणा भी देती हैं. यह राशि लड़की के ससुराल से आती है. महिला पंडित को वस्त्र व दक्षिणा देकर व्रती विधि-विधान व परंपरा के अनुसार व्रत करती हैं.
पंद्रह दिवसीय पर्व के दौरान नवविवाहिता अपने पति के दीर्घायु होने और घर में सुख शांति की कामना करती हैं. पूरे व्रत के दौरान गौरी-शंकर की विशेष पूजा होती है. नवविवाहिताओं को शिवजी-पार्वती सहित मैना पंचमी, मंगला गौरी, पृथ्वी जन्म, पतिव्रता, महादेव कथा, गौरी तपस्या, शिव विवाह, गंगा कथा, बिहुला जैसे 14 खंडों की कथा सुनायी जाती है. इन कथा-कहानियों में शंकर-पार्वती के चरित्र के माध्यम से पति-पत्नी के बीच होने वाले नोक-झोंक, रूठना मनाना, प्यार, मनुहार जैसी बातों का भी जिक्र होता है, ताकि नव दंपत्ति इनसे सीखकर अपने जीवन को सुखमय बना सकें.
इस त्योहार को नवविवाहिता अपने मायके में ही मनाती हैं. व्रत के दौरान पंद्रह दिनों तक नवविवाहिता नमक नहीं खाती हैं और जमीन पर सोती हैं. रात में वे ससुराल से आए अन्न से ही तैयार भोजन ग्रहण करती हैं. पूजा-अर्चना के लिए मिट्टी से निर्मित नाग-नागिन, हाथी, गौरी, शिव की प्रतिमा बनायी जाती है और फिर इनका पूजन फूलों, मिठाइयों और फलों को अर्पित कर किया जाता है. तमाम नववाहिता पूरे पंद्रह दिनों तक सोलह श्रृंगार कर संध्या की बेला में एक साथ मधुश्रावणी से संबंधित पारंपरिक लोक गीत गाते हुए फूल लोढ़ने निकलती हैं. फूल और पत्तियों को लोढ़कर गांव के देव स्थलों एवं मंदिरों का परिक्रमा करती हैं. संध्या की बेला में लोढ़े गये फूल-पत्तियों से ही अगली सुबह नवविवाहितायें भगवान शिव-पार्वती व नाग देवता की पूजा-अर्चना करती हैं.