बक्सर कोर्ट. कहा जाता है कि न्याय में देरी अन्याय के समान है. ऐसा ही एक मामला बिहार में सामने आया है. एक व्यक्ति की लगभग पूरी जिंदगी कोर्ट से न्याय की गुहार में गुजर गयी. बेशक उसे न्याय मिला लेकिन 43 साल बाद. जी हां, डुमरांव थाने के चौगाई के रहने वाले श्याम बिहारी सिंह पर 10 साल पांच महीने की उम्र में सात सितंबर, 1979 को डुमरांव थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी थी. इस बीच लगभग 43 साल तक कोर्ट में मामला चला. मंगलवार को कोर्ट ने श्याम बिहारी सिंह दोषमुक्त कर दिया. इस समय उनकी उम्र 53 साल है.
जानकारी के अनुसार, सात सितंबर, 1979 को एक दुकान में मारपीट करने, गोली चलाने एवं हत्या के प्रयास की प्राथमिकी दर्ज करायी गयी थी. पुलिस ने प्राथमिकी में 10 वर्षीय एक बच्चे को भी भीड़ में शामिल होने का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी अभियुक्त बनाया था. इस बीच न्यायालय की दहलीज पर मुकदमे की सुनवाई लगभग 43 वर्षों तक चलती रही. इस दौरान न जाने कितने तरीख, कितने जज और कितनी सुनवाई हुई. तारीख पर तारीख आने के बावजूद श्याम बिहारी सिंह ने उम्मीद नहीं छोड़ी.
एक नवंबर, 2012 को एसीजेएम द्वितीय के न्यायालय से स्थानांतरित होकर उक्त मुकदमे की सुनवाई किशोर न्यास परिषद में शुरू की गयी, जहां बार-बार अभियोजन पक्ष की ओर से गवाही के लिए मौका दिया गया, लेकिन कोई गवाह सुनवाई के दौरान न्यायालय में उपस्थित नहीं हुआ. मंगलवार को किशोर न्यास परिषद के न्यायाधीश डॉ राजेश सिंह ने दोष सिद्ध नहीं होने की स्थिति में रिहा कर दिया. अपनी जीत पर श्याम बिहारी सिंह ने कहा कि उन्हें अदालत पर विश्वास था. वहां देर है लेकिन अंधेर नहीं है. पिछले 43 साल से मैं जिस आरोप से खुद को मुक्त करने की गुहार लगा रहा था, आखिरकार अदालत ने मुझे उससे मुक्त कर दिया. मेरे जीवन का यह सबसे अनमोल दिन है.