मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड में 8 साल बाद FIR दर्ज, बिहार सरकार के अनुरोध पर अब CBI नए सिरे से करेगी जांच
बिहार के मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड में 8 साल के बाद प्राथमिकी दर्ज की गयी है. बिहार सरकार के अनुरोध पर अब सीबीआई इस मामले में नए सिरे से जांच करेगी. फर्जी पहचान पत्र पर बच्ची को लेकर गए माता-पिता के मामले को जानिए...
Bihar: मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड की जांच कर रही सीबीआइ पटना की विशेष अपराध शाखा ने शनिवार को एक और प्राथमिकी दर्ज की है. वर्ष 2015 में बालिका गृह में रह रही एक दिव्यांग नाबालिग को फर्जी मां-बाप के हवाले करने का मामला प्रकाश में आने के बाद बिहार सरकार के अनुरोध पर सीबीआइ ने यह प्राथमिकी दर्ज की है. आठ साल से लापता नाबालिग के अपहरण की आशंका जताते हुए सीबीआइ ने मुजफ्फरपुर बालिका गृह का संचालन करने वाली एनजीओ सेवा एवं संकल्प समिति के अज्ञात अधिकारियों और अन्य को आरोपी बनाया है. सीबीआइ की डीएसपी नीलमश्री इस केस की नयी आइओ नियुक्त की गयी हैं.
फर्जी पहचान पत्र पर बच्ची को लेकर गए
जांच में यह बात सामने आयी है कि दिव्यांग नाबालिग को बालिका गृह से सौंपे जाने के दौरान जिसे माता-पिता बताया गया था, उनका मतदाता पहचान पत्र फर्जी था. साथ ही उनकी पहचान करने वाला मुखिया एक काल्पनिक व्यक्ति है. दरअसल, मुजफ्फरपुर के नगर थाना क्षेत्र के साहू रोड स्थित सेवा संकल्प व विकास समिति द्वारा संचालित बालिका गृह से 2015 से एक लड़की कथित रूप से लापता हो गयी थी. वह मानसिक और शारीरिक तौर पर बीमार थी. सीबीआइ अब यह पता लगायेगी कि आखिर वह लड़की कहां गयी. नयी प्राथमिकी में आइपीसी की धारा 120 बी के तहत आरोप लगाये गये हैं. राज्य सरकार ने मार्च माह में इस संबंध में सीबीआइ जांच की स्वीकृति दे दी थी.
2018 से बालिका गृह कांड की जांच कर रही है सीबीआइ
गौरतलब है कि सीबीआइ ने राज्य सरकार की अनुशंसा पर 31 मई , 2018 को मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड की जांच अपने हाथों में ली थी. दिसंबर 2018 को सीबीआइ ने इस केस के मुख्य आरोपित ब्रजेश ठाकुर और अन्य के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था. मुजफ्फरपुर बालिका गृह की दिव्यांग नाबालिग लड़की के गायब होने के मामले में बिहार सरकार ने 23 मार्च, 2023 और केंद्र सरकार ने 18 जुलाई, 2023 को सीबीआइ को एफआइआर दर्ज करने की सहमति दी. इसके बाद शनिवार को सीबीआइ ने केस दर्ज किया.
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फर्जी माता-पिता को सौंपा
आठ साल पहले सीतामढ़ी में हजारीबाग की लड़की मिली थी. उसे सीतामढ़ी के चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की अनुशंसा पर मुजफ्फरपुर के बालिका गृह में रखा गया था. सीबीआइ को जांच के दौरान पता चला कि 10 नवंबर, 2015 को बच्ची को गलत दस्तावेज के आधार पर राजकुमार पासवान नामक एक व्यक्ति को पिता और शीतला देवी को मां बताते हुए सौंप दिया गया. बताया गया था कि राजकुमार पासवान हजारीबाग के बड़कागांव के सुकुल खपीरा गांव के रहने वाले हैं. सीबीआइ जब उस गांव में पहुंची तो पता चला कि पति-पत्नी के वोटर कार्ड फर्जी हैं. राजकुमार पासवान की पहचान करने वाले नथुनी मुखिया भी फर्जी निकले. इस नाम का कोई मुखिया संबंधित पंचायत में नहीं मिला. नाबालिग को रिलीज करने के दौरान सीतामढ़ी की चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की अध्यक्ष और सदस्य के नकली हस्ताक्षर किये गये थे. उकेस की पड़ताल के दौरान जब शेल्टर होम में रहने वाली और वहां से रिहा की गयी लड़कियों के बारे में सीबीआइ की टीम ने पड़ताल की तो यह मामला सामने आया.
बिहार सरकार के अनुरोध पर प्राथमिकी
मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार की तरफ से इस मामले में जांच और कार्रवाई के लिए 23 मार्च 2023 को एक सीबीआइ जांच के लिए केंद्र सरकार को लिखा गया. 18 जुलाई को केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से एक आदेश जारी कर सीबीआइ को आगे बढ़ने का आदेश दिया गया. इस आदेश के बाद नयी प्राथमिकी दर्ज की गयी है.