तेजस्वी, मीसा व मदन मोहन समेत छह पर दर्ज हुई प्राथमिकी, टिकट देने के नाम पर पांच करोड़ रुपये लेने का आरोप
इसमें नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, सांसद मीसा भारती, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा, कांग्रेस प्रवक्ता राजेश राठौर, कांग्रेस के दिवंगत नेता सदानंद सिंह व उनके पुत्र शुभानंद मुकेश को नामजद किया गया है.
पटना. पिछले लोकसभा चुनाव में भागलपुर सीट से टिकट देने के नाम पर पांच करोड़ रुपये लेने के मामले में कोर्ट के आदेश के बाद बुधवार को कोतवाली थाने में प्राथमिकी दर्ज कर ली गयी. इसमें नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, सांसद मीसा भारती, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा, कांग्रेस प्रवक्ता राजेश राठौर, कांग्रेस के दिवंगत नेता सदानंद सिंह व उनके पुत्र शुभानंद मुकेश को नामजद किया गया है.
इन सभी के खिलाफ आइपीसी की धारा 420, 467, 468, 471, 506, 406, 499, 500, 120 बी आदि के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिसका केस नंबर 365/21 है. सिटी एसपी अंबरीष राहुल ने इसकी पुष्टि की. पटना मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने इस मामले में 16 सितंबर को प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया था.
कोर्ट में दायर किया था परिवाद
मालूम हो कि अधिवक्ता व बिहार कांग्रेस के प्रभारी पर्यवेक्षक संजीव सिंह ने 18 अगस्त, 2021 को कोर्ट में परिवाद दायर किया था. उन्होंने आरोप लगाया था कि प्रतिपक्ष नेता व अन्य ने भागलपुर लोकसभा सीट से टिकट देने के लिए 15 जनवरी, 2019 को पांच करोड़ रुपये लिये थे. लेकिन, उन्हें टिकट दूसरे को दे दिया गया.
इसके बाद उन्हें विधानसभा चुनाव में भी दो सीटों से टिकट देने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन वह भी नहीं मिला. इसके बाद कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करने के बाद पटना के एसएसपी के माध्यम से कोतवाली थानाध्यक्ष को तमाम आरोपितों के खिलाफ मामला दर्ज करने का आदेश 16 सितंबर को दिया.
क्या है आइपीसी की धारा 420
कोई भी व्यक्ति अपने स्वयं के लाभ के लिए किसी दूसरे व्यक्ति की संपत्ति को प्राप्त करने के लिए उसके साथ छल-कपट या बेइमानी करता है, वैसे मामलों में लाभ प्राप्त करने वाले व्यक्ति के खिलाफ में इस आइपीसी की धारा के तहत प्राथमिकी दर्ज की जाती है.
सात वर्ष तक का कारावास
आइपीसी की इस धारा में सजा का प्रावधान सात वर्ष तक का कारावास और जुर्माना है. यह एक गैर जमानतीय व संज्ञेय अपराध की श्रेणी में और किसी भी न्यायाधीश द्वारा विचारणीय है. न्यायालय की अनुमति से पीड़ित व्यक्ति द्वारा समझौता किया जा सकता है.
जालसाजी के अपराध में जमानत का प्रावधान
किसी भी अभियुक्त को कारावास से छुड़ाने के लिए न्यायालय के सामने जो राशि जमा की जाती है या राशि को जमा करने की प्रतिज्ञा ली जाती है, उस राशि को एक बांड के रूप में भरी जाती है. इसे ही जमानत की राशि कही जाती है. और जमानत की राशि के बांड तैयार होने के बाद न्यायाधीश द्वारा उचित तर्क के आधार पर ही आरोपित को जमानत दी जाती है.
यदि किसी व्यक्ति को जालसाजी के अपराध में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह सत्र न्यायालय में अग्रिम जमानत के लिए भी आवेदन कर सकता है. न्यायाधीश द्वारा स्वीकृति देने के बाद ही आरोपित को जमानत दी जाती है. अब तक जमानत के लिए कोई निर्धारित प्रक्रिया नहीं है. यह लेनदेन की प्रकृति और आरोपों की गंभीरता पर निर्भर करता है.
Posted by Ashish Jha