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पहली बार सरकार तोड़ने को साथ आए थे 7 दल, बिहार में गठबंधन तो दाल–भात–चोखा हो गया है

Bihar: बिहार की राजनीति में गठबंधन इतना कॉमन हो गया है, जितना दाल–भात–चोखा. पहली बार कांग्रेस विरोध में बनी गठबंधन की सरकार बिहार की सत्ता तक पहुंचने के लिए एक हथियार बन जाएगा यह किसी को नहीं पता था.

इस कड़कड़ाती ठंड पटना की सड़कों पर दो चीजें बेहद गर्म हैं, पहली चाय दूसरी राजनीति. कोई कहता है ये जो रोज कोई न कोई राजभवन की परिक्रमा कर रहा है वो ऐसे ही थोड़े है. मौसम बदलने वाला है. फिर कोई कहता नहीं–नहीं, कल अखबार पढ़े थे. सीएम तो कह रहे हैं कि ‘हम तो दो बार गलती से चले गए, अब इधर-उधर जाने वाले नहीं…’

इन बहस–मु‌बाहिसों में हम आपको एक जर्नी पर ले चलते हैं. चलेंगे? थोड़ा पेंचीदा मसला है– गठबंधन

जानते हैं ये शब्द कहां से आया है? शादी में जब दो लोग सात जन्मों तक एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ने का वायदा करते हैं तब दोनों की गांठ बांध दी जाती है. और कहते हैं चालिए भइया गठबंधन हो गया. 

लेकिन जब ये गठबंधन राजनीति में आया…

तो सात जनम क्या, सात महीने टिक जाए, इसी की खैरियत मनाते हैं. 

58 साल पहले कांग्रेस के विरोध में बना था 7 दलों का गठबंधन

साल 1967 में बिहार और झारखंड दोनों एक राज्य हुआ करते थे और विधानसभा की कुल 312 सीटें होती थी. उस साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 128,  एसएसपी को 63, बीजेएस को 26, सीपीआई को 24, पीएससी को 18, जेकेडी को 13, सीपीएम को 04, एसडब्लूयूएच को 03 और निर्दलीय को 33 सीटें मिली थी. ऐसी स्थिति में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और कांग्रेस को सत्ता से दूर करने के लिए 7 विपक्षी दल एक साथ आए और उन्हें निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन मिला. इसका असर ये हुआ कि कांग्रेस न सिर्फ पहली बार सत्ता से बेदखल हुई और गठबंधन की सरकार बनी बल्कि उसके बाद जो सिलसिला शुरू हुआ वह आज भी बदस्तूर जारी है. हालांकि यह सरकार बहुत दिनों तक चल नहीं पाई. 

महामाया प्रसाद सिन्हा
महामाया प्रसाद सिन्हा

1967 से 1972 के बीच बिहार में बनी नौ सरकारें

1967 में बिहार में जब पहली बार गठबंधन की सरकार बनी तो महामाया प्रसाद सिन्हा को मुख्यमंत्री बनाया गया. लेकिन यह सरकार बहुत दिनों तक चल नहीं पाई और आपसी खींचतान की वजह से गिर गई. इसके बाद दो सरकारें और बनी लेकिन वह भी ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाई. इन सबके बीच  दो साल बाद ही 1969 में विधानसभा का मध्यावधि चुनाव हुआ. इस चुनाव में कांग्रेस 118 सीट पर सिमट गई. जिसके बाद 16 फरवरी, 1970 को इंदिरा गांधी की कांग्रेस ने सीपीआई, प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी, शोषित दल, लोकतांत्रिक क्रांति दल जैसी पार्टियों के समर्थन से सरकार बनाई. हालांकि यह सरकार भी अपनी पूर्ववर्ती सरकारों की तरह ही निकली और दिसंबर, 1970 में गिर गयी. इसके बाद कर्पूरी ठाकुर की अगुआई में सरकार बनी. गैर कांग्रेसी संयुक्त विधायक दल में जनसंघ, संगठन कांग्रेस, लोकतांत्रिक कांग्रेस, शोषित दल, भारतीय क्रांति दल जैसी पार्टियों ने समर्थन किया. इसके बाद 1972 में हुए चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला और 1977 तक सरकार आराम से चलती रही. हालांकि इस दौरान मुख्यमंत्री बदलते रहे. 

कर्पूरी ठाकुर
कर्पूरी ठाकुर

1977 में दिखा दूसरा प्रयोग

प्रदेश में 5 साल तक कांग्रेस की सरकार रहने के बाद साल 1977 में गठबंधन का दूसरा बड़ा प्रयोग देखने को मिला. देश में आपातकाल लागू करने की वजह से कांग्रेस की हुकूमत केंद्र से चली गयी और बिहार में विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई. इस चुनाव में जनता पार्टी को 214, कांग्रेस 57, सीपीआइ को 21, सीपीएम को 04, जेकेडी को 02 और निर्दलीय को 24 सीटें मिली. बता दें कि 1977 के चुनाव में जो जनता पार्टी बनी थी उसमें कांग्रेस विरोधी दल जनसंघ, लोकदल समेत कई पार्टियां थी.  इस सरकार के मुखिया के तौर पर कर्पूरी ठाकुर को चुना गया. हालांकि इस सरकार का भी वही हश्र हुआ, जो पहली गैर कांग्रेसी सरकार का हुआ था और आपसी तिकड़म और मनमुटाव के चलते यह सरकार गिर गयी. ढाई साल बाद ही 1980 में देश में मध्यावधि चुनाव हुए. कांग्रेस केंद्र की सत्ता में वापस आयी. आते ही बिहार की सरकार बर्खास्त कर दी गयी. इसी साल यहां भी विधानसभा के चुनाव हुए और कांग्रेस की बहुमत वाली सरकार बनी और 1990 तक कांग्रेस ने बिहार की सत्ता पर राज किया.  

लालू यादव
लालू यादव

1990 में बीजेपी की बदौलत सीएम की कुर्सी पर बैठे लालू यादव 

बिहार में 1990 के दशक की शुरुआत ही गठबंधन की सरकार से हुई. इस समय तक कांग्रेस की हालत पतली हो चुकी थी. विपक्ष में भी नये युवा तुर्क अपनी राजनीतिक पहचान बना चुके थे. बुजुर्ग हो रहे नेताओं को किनारे किया जा रहा था. इसी परिप्रेक्ष्य में 1990 का विधानसभा चुनाव हुआ. इस चुनाव में 122 सीटें जीत कर जनता दल सबसे बड़ी पार्टी बनी. कांग्रेस महज 71 सीटों पर सिमट कर रह गयी. वही बीजेपी को 39, सीपीआई को 23, सीपीएम को 06, जेएमएम को 19, जेएमपी को 03 और निर्दलीय को 30 सीटें मिली. इस चुनाव में भी किसी भी दल को सरकार बनाने के लिए बहुमत नहीं मिला. ऐसे में बीजेपी और जेएमएम ने लालू के नाम का समर्थन कर दिया और लालू प्रसाद यादव पहली बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे. हालांकि लालू और बीजेपी की दोस्ती ज्यादा दिनों तक नहीं चली. अयोध्या रथ यात्रा को रोकने की वजह से बीजेपी ने लालू की सरकार से समर्थन वापस ले लिया. लेकिन उस समय के बिहार बीजेपी के बड़े नेता इंदर सिंह नामधारी लालू के समर्थन में आ गए और बीजेपी में टूट हो गई. नामधारी का गुट लालू प्रसाद यादव के समर्थन में आया और इस तरह लालू ने अपनी कुर्सी बचा ली और कई दलों के समर्थन से चली इस सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया.  

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राबड़ी देवी

2000 से अब तक बिना गठबंधन नहीं बनी कोई सरकार

साल 2000 में एकीकृत बिहार में चुनाव हुआ. इन चुनावों से पहले बिहार में काफी उथल-पुथल हुई थी. चारा घोटाला में जेल जाने की वजह से लालू यादव ने राबड़ी देवी को अपनी जगह बिहार का मुख्यमंत्री बनाया था और 1997 में लगभग तीन हफ़्तों का राष्ट्रपति शासन भी लगा था. इसके बाद मार्च 2000 में विधानसभा चुनाव हुए. ये वो समय जब बिहार से अलग करके झारखंड राज्य नहीं बनाया गया था. तब बिहार में 324 सीटें हुआ करती थीं और जीतने के लिए 162 सीटों की जरूरत होती थी. इन चुनावों में राजद ने 293 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे 124 सीटें मिली थीं. वहीं, भाजपा को 168 में से 67 सीटें हासिल हुई थीं. इसके अलावा समता पार्टी को 120 में से 34 और कांग्रेस को 324 में से 23 सीटें हासिल हुई थीं. इसके बाद कांग्रेस की समर्थन से राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं और यह सरकार 2005 तक चली. 

राबड़ी देवी
राबड़ी देवी

2005 में हुआ दो बार चुनाव

साल 2005 में ऐसा पहली बार हुआ था जब बिहार में एक ही साल के अंदर दो बार विधानसभा चुनाव कराने पड़े. साल 2003 में जनता दल के शरद यादव गुट, लोक शक्ति पार्टी और जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार की समता पार्टी ने मिलकर जनता दल (यूनाइटेड) का गठन किया था. तब लालू यादव के करीबी रहे नीतीश कुमार ने उन्हें विधानसभा चुनावों में बड़ी चुनौती दी.

फरवरी 2005 में हुए इन चुनावों में राबड़ी देवी के नेतृत्व में राजद ने 215 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से उसे 75 सीटें मिल पाईं. वहीं, जदयू ने 138 सीटों पर चुनाव लड़ 55 सीटें जीतीं और भाजपा 103 में से 37 सीटें लेकर आई. कभी बिहार में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस इन चुनावों में 84 में से 10 सीटें ही जीत पाई थी. इन चुनावों में 122 सीटों का स्पष्ट बहुमत ना मिल पाने के कारण कोई भी सरकार नहीं बन पाई और कुछ महीनों के राष्ट्रपति शासन के बाद अक्टूबर-नवंबर में फिर से विधानसभा चुनाव हुए. दूसरे विधानसभा चुनावों में जदयू 88 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. जदयू ने 139 सीटों पर चुनाव लड़ा था. भाजपा ने 102 में से 55 सीटें हासिल की थीं. वहीं, राजद ने 175 सीटों पर चुनाव लड़कर 54 सीटें जीतीं, लोजपा को 203 में से 10 सीटें मिलीं और कांग्रेस 51 में से नौ सीटें ही जीत पाई. साल 2000 में ही लोजपा का गठन हुआ था. इन चुनावों में नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी.

सीएम नीतीश कुमार
सीएम नीतीश कुमार

2010 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने किया अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 

साल 2010 में हुआ विधानसभा चुनाव को छह चरणों में बांटा गया था. 243 सीटों पर हुए इन चुनावों में नीतीश कुमार की जदयू सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. इन चुनावों में एनडीए गठबंधन में जदयू और भाजपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था और उनके सामने राजद और लोक जनशक्ति पार्टी का गठबंधन था. इन चुनावों में जनता दल यूनाइटेड ने 141 में से 115 सीटें और बीजेपी ने 102 में से 91 सीटें जीती थीं. वहीं, राजद ने 168 सीटों पर चुनाव लड़कर 22 सीटें जीती थीं. लोजपा 75 सीटों में से तीन सीटें लेकर आई थीं. कांग्रेस ने पूरी 243 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन उसे सिर्फ़ चार सीटें ही मिली थीं. इसके बाद से कांग्रेस ने महागठबंधन में ही चुनाव लड़ा है. इन चुनाव में बिहार की बड़ी पार्टी माने जाने वाली राजद का प्रदर्शन बहुत खराब रहा था जो फरवरी 2005 के चुनावों की 75 सीटों के मुक़ाबले सिमटकर 22 सीटों पर आ गई थी. 2010 में एनडीए की सरकार बनी और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनाए गए. 

लालू यादव और नीतीश कुमार
लालू यादव और नीतीश कुमार

2015 में साथ आए लालू-नीतीश 

अक्टूबर-नवंबर 2015 में हुआ विधानसभा चुनाव पांच चरणों में पूरा हुआ था. इन चुनावों में सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड (जदयू), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस, जनता दल, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, इंडियन नेशनल लोक दल और समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) ने महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा था. वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के साथ चुनावी मैदान में कदम रखा था. 2015 का चुनाव कुल 243 सीटों पर हुआ था जिसमें जीतने के लिए 122 सीटों की ज़रूरत थी. इन चुनावों में लालू यादव की राजद और नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडी(यू) ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा था. कांग्रेस ने 41 और भाजपा ने 157 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. चुनाव के नतीजे आने पर राजद 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. इसके बाद जदयू को 71 सीटें और भाजपा को 53 सीटें मिली थीं. इन चुनावों में कांग्रेस को 27 सीटें मिली थीं. इन चुनाव में महागठबंधन की सरकार बनी और नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया. हालांकि, 2017 में जेडी(यू) महागठबंधन से अलग हो गई और नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई और यह सरकार 2020 तक चली. 

सीएम नीतीश कुमार
सीएम नीतीश कुमार

2020 में नीतीश के लीडरशीप में लड़ी BJP

साल 2020 के बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने 125 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि राजद महागठबंधन ने 110 सीटें मिली. इसके साथ की नीतीश कुमार के लगातार मुख्यमंत्री बनने की राह भी साफ हो गई है. हालांकि इस बार उनकी पार्टी जदयू को 2015 जैसी सफलता नहीं मिली है. जदयू को 2015 में मिली 71 सीटों की तुलना में इस बार 43 सीटें ही मिली हैं. इस चुनाव में राजद 75 सीटें अपने नाम करके सबसे बड़ी एकल पार्टी के रूप में उभरी. मतगणना के शुरुआती घंटों में बढ़त बनाती नजर आ रही भाजपा को 16 घंटे चली मतों की गणना के बाद 74 सीटों के साथ दूसरा स्थान मिला. जदयू को चिराग पासवान की लोजपा के कारण काफी नुकसान झेलना पड़ा है. लोजपा को एक सीट पर जीत मिली, लेकिन उसने कम से कम 30 सीटों पर जदयू को नुकसान पहुंचाया. 

एनडीए की एक रैली में सीएम नीतीश कुमार और पीएम मोदी
एनडीए की एक रैली में सीएम नीतीश कुमार और पीएम मोदी

किसे-कितनी सीटें मिली

भाजपा की 74 और जदयू की 43 सीटों के अलावा सत्तारूढ़ गठबंधन साझीदारों में हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को चार और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को चार सीटें मिलीं. विपक्षी महागठबंधन में राजद को 75, कांग्रेस को 19, भाकपा माले को 12 और भाकपा एवं माकपा को दो-दो सीटों पर जीत मिली. इस चुनाव में एआईएमआईएम ने पांच सीटें और लोजपा एवं बसपा ने एक-एक सीट जीती. एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार जीतने में सफल रहा. आरजेडी और कांग्रेस के साथ महागठबंधन में शामिल तीन प्रमुख वाम दलों- भाकपा (माले), भाकपा और माकपा- ने कुल 29 सीटों पर चुनाव लड़ा. भाकपा (माले) ने 19, भाकपा ने छह और माकपा ने चार सीटों पर चुनाव लड़ा. पिछले विधानसभा चुनाव में इन तीनों दलों में से सिर्फ भाकपा(माले) को तीन सीटें मिली थीं. साल 2010 में भाकपा सिर्फ एक सीट जीती थी. हालांकि इस दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2022 और 2024 में गठबंधन बदला. लेकिन फिलहाल वह एनडीए के साथ हैं और हर मंच से कहते हैं कि अब वह कही नहीं जाएंगे और बिहार के विकास के लिए हर संभव काम करेंगे.

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