राजदेव पांडेय, पटना. कोविड महामारी और सांसों की दूसरी तकलीफों से जूझ रहे मरीज अगर रोजाना केवल तीन मिनट 12-15 बार गहरी सांस लेते और छोड़ते हैं, तो वह बिना किसी कृत्रिम ऑक्सीजन के अपने शरीर में ऑक्सीजन लेवल को मेंटेन कर सकते हैं. ऐसा करके व्यक्ति फेफड़ों को संक्रमित होने से भी बचा पायेगा. कोविड पॉजिटिव क्रिटिकल स्थिति में पहुंचने से बच जाते हैं.
प्रो विनायक के मुताबिक दोनों फेफड़ों पर करीब 75 करोड़ एल्बोलाइ होती हैं. इन सभी एल्बोलाइ की भूमिका वातावरण की ऑक्सीजन को फेफड़े तक पहुंचाने और शरीर के अंदर की कार्बन डाइ ऑक्साइड को बाहर पहुंचाने की होती है. एल्बोलाइ के अंदर श्वसन झिल्ली भी होती है़ छोटी-छोटी थैलियों के रूप में होती हैं. ये ऑक्सीजन को अवशोषित करती हैं. ऑक्सीजन की कमी से छोटी थैलियां कम बनती हैं. इससे सांस लेने में दिक्कत आती है.
वातावरण में घटी हरियाली की वजह सामान्य तौर पर 75 करोड़ कोशिकाओं में से 7 से 9 फीसदी कोशिकाएं निष्क्रिय रह जाती हैं. दरअसल फेफड़े में इतनी ऑक्सीजन मिल ही नहीं पाती कि वह सक्रिय हों. गहरी सांस की वजह से इनमें से चार से पांच फीसदी सक्रिय हो जाती हैं.
इसकी वजह से फेफड़े तक प्राकृतिक तौर पर ऑक्सीजन पहुंचने लगती है. एक व्यक्ति एक बार में 500 मिलीलीटर ऑक्सीजन लेता है. सामान्य तौर पर इनमें से 330-350 मिलीलीटर ऑक्सीजन ही फेफड़े तक पहुंच पाती हैं. शेष श्वास नलिकाओं में अवशोषित हो जाती हैं. अगर कोई व्यक्ति गहरी सांस लेता है, तो फेफड़ों तक करीब 380-390 एमएल तक ऑक्सीजन पहुंच जाती है.
पटना एम्स के अतिरिक्त प्राध्यापक और ट्रॉमा एंड इमरजेंसी के हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ अनिल कुमार का भी दावा है कि रोजाना लंबी-लंबी सांस लेने की प्रक्रिया शरीर में पांच से 10% तक ऑक्सीजन लेवल बढ़ा देती है. इससे मरीज का जोखिम कम हो जाता है. इसके अलावा कृत्रिम सांस लेने के विकल्प को कम करने के लिए मरीज को पेट के बल लिटाया जाता है. इससे भी ऑक्सीजन लेवल मेंटेन होता है.
डॉ अनिल कुमार ने बताया कि यह पूरी तरह प्रायोगिक है. इसे आजमाया जाता है. कई मरीजों को ठीक होने में इससे मदद मिली है. डॉ अनिल बताते हैं कि शरीर में ऑक्सीजन की कमी को दूर करने के लिए चेस्ट एक्सपायरोमेट्री नाम का एक उपकरण भी आता है. इससे फेफड़े अधिक ऑक्सीजन लेने योग्य बन जाते हैं. हालांकि सभी मरीजों को सांस की दिक्कत नहीं आती है.
Posted by Ashish Jha