भभुआ. गर्मी की शुरूआत होते ही कैमूर वन प्रमंडल का अभ्यारण्य क्षेत्र सुलगने लगा है. जंगल को आग से बचाने के लिए डीएफओ द्वारा प्रत्येक रेंज में पांच-पांच आग बुझाने वाली टीमों का गठन किया गया है. कैमूर का लंबे चौड़े अभ्यारण्य क्षेत्र में इस वर्ष भी जंगल में आग लगने का सिलसिला शुरू हो गया है. पूर्व में भी मार्च माह में कैमूर के करर बीट और मुशहरवा बाबा के जंगल में आग लगने की घटनाएं हो चुकी हैं. उस पर वन्य कर्मियों और ग्रामीणों के प्रयास से काबू पाया गया था.
कैमूर वन प्रमंडल पदाधिकारी चंचल प्रकाशम ने बताया कि जंगल में आग लगने की सूचना विभाग को प्राप्त हो रही है. इसे लेकर भभुआ, अधौरा, चैनपुर रेंज के प्रत्येक बीट में आग बुझाने के लिए टीमों का गठन किया गया है. एक रेंज में पांच टीमों को लगाया गया है, जो आग बुझाने का काम करने के साथ-साथ आगलगी की घटनाओं पर भी नजर रखेगी और तत्काल डिवीजन कार्यालय को इसकी सूचना देगी. आग बुझाने वाली सभी टीम सक्रिय है. टीम में वन ट्रेकर सहित छह सदस्यों को शामिल किया गया है, जो विभाग के नर्सरी के टैंकरों, स्थानीय जल स्रोतों और आगलगी टहनियों को काट कर आग पर काबू पाने का प्रयास करते हैं. दुर्गावती जलाशय क्षेत्र के नौहट्टा बीट में नाव के माध्यम से भी टीम को आग बुझाने के लिए भेजा जायेगा.
कैमूर वन प्रमंडल के जंगल क्षेत्र में लगने वाले आग को लेकर वन विभाग द्वारा जंगल क्षेत्र से लगे गांवों में माइकिंग भी करायी जा रही है. इस संबंध में डीएफओ ने बताया कि लोगों को आगाह किया जा रहा है कि अगर उनके किसी कृत्य से जंगल में आग लगती है, तो उनके खिलाफ वन अधिनियम के तहत कार्रवाई की जायेगी. गौरतलब है कि जंगल क्षेत्र में गर्मी के दिनों में बड़े पैमाने पर महुआ चुनने और शहद चुआने के लिए जगंल क्षेत्र में हलचल बढ़ जाती है. महुआ चुनने के क्रम में लोगों द्वारा बीड़ी, सिगरेट अथवा चिलम आदि पीकर जलता हुआ बीड़ी, सिगरेट जंगल में फेंक दिया जा रहा है. इससे सूखे पत्तों में आग पकड़ लेती है, जो बाद में फैल जाती है. इसी तरह पेड़ों पर मधु छत्ता से मुधमक्खियों को भगाने के लिए लगायी जाने वाली आग भी जंगल के विनाश का कारण बन जाती है.
संसाधनों के अभाव में आग पर काबू पाने में होने वाली देर को लेकर वन विभाग द्वारा जंगल क्षेत्र में आगलगी की घटनाओं को कम करने के लिए हवा मशीन मंगाने और फायर वाच टावर बनाने का प्रस्ताव सरकार को भेजा गया है. इस संबंध में डीएफओ चंचल प्रकाशम ने बताया कि हवा मशीन चालू होने पर एक तरफ से हवा फेंकती है, जिसके हवा के माध्यम से जंगल में गिरे सूखे पत्तों को एक साइड करके स्टोर कर दिया जाता है. फिर इन सूखे पत्तों को गढ्ढ़ों में डाल कर पानी भर दिया जाता है. इसके बाद गिरे पत्तों के माध्यम से आग नहीं फैल पाती है. उन्होंने बताया कि इसके अतिरिक्त सरकार को वन प्रमंडल के अधौरा, भभुआ, तथा चैनपुर रेंज में फायर वाच टावर बनाने का भी प्रस्ताव भेजा गया है. ताकि इसकी सहायता अग्नि क्षेत्र को तत्काल चिह्नित कर आग बुझाने की कार्रवाई शुरू करायी जा सके.
हर वर्ष वन प्रक्षेत्र में आगलगी के कारण बड़े पैमाने पर वन संपदा की क्षति हो जाती है. इस आगलगी में कैमूर की बहुमूल्य वन संपदाएं जहां जल कर राख हो जाती हैं, वहीं वन प्रक्षेत्र में रहने वाले वन्य जीवों के दिनचर्या पर भी बुरा असर पड़ता है. गौरतलब है कि कैमूर का पूरा वन प्रक्षेत्र 1134 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इसमें से 986 वर्ग किलोमीटर आश्रयणी क्षेत्र है. इसमें बहुमूल्य इमारती लकडियां, शीशम, सागौन, महुआ, सखुआ, सलई, आम आदि सहित दवा या फिर सौंदर्य प्रसाधन बनाने के काम आने वाली खैर, आंवला, पलाश सहित कीमती जड़ी बूटियों के रूप में पहचाने जाने वाले सतावर, सफेद मुसली लेकर कई तरह की जड़ी बूटियां फैली हुई है.
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कैमूर के वन प्रक्षेत्र में पूर्व में किये गये सर्वे में कुछ जगह पर अबरख और बाक्साइट होने की संभावना भी सर्वे टीमों द्वारा जतायी गयी थी. मिलाजुला कर प्रकृति के अनुपम अवदानों से भरा यह जंगल क्षेत्र गर्मी में अग्नि देवता के सामने घुटने टेक देता है. हर वर्ष बड़े पैमाने पर वन संपदा की क्षति हो जाती है. यही नहीं इस भीषण गर्मी में आगलगी की घटनाओं से प्रभावित होकर कई छोटे वन्य जीवों की जहां मौत हो जाती है, वहीं हिरण, कोटरे, बंदर, लंगूर, मोर जैसे वन्य जीव मैदानी क्षेत्र में शरण लेने पहुंच जाते हैं. जहां इनके जान के ऊपर लगातार खतरा मंडराता रहता है. कुछ कुत्तों के शिकार बन जाते हैं, तो कुछ ग्रामीणों के क्रूरता के भेंट चढ़ जाते हैं.