छपरा. सारण जिले में विगत एक वर्ष में जहरीली शराब का सेवन करने से कई लोगों ने अपनी जान गंवा दी है. इस समय पूरे प्रदेश में शराब का निर्माण, भंडारण व उसकी बिक्री पर रोक है. उसके बावजूद भी स्थानीय स्तर पर शराब बनाकर लोगों को बेचते है. शबाब में शामिल केमिकल का न तो, कोई जांच होता है और ना ही इसे परखने को लेकर कोई उपकरण शराब बनाने वालों के पास मौजूद है. इस संदर्भ में जयप्रकाश विश्वविद्यालय के गंगा सिंह कॉलेज में कार्यरत केमेस्ट्री के शिक्षक डॉ विकास सिंह कुरूवंशी ने बताया कि जहरीली शराब के सेवन से जो लोग मर रहे है उन्हें जागरूक होना पड़ेगा. उन्होंने बताया कि स्थानीय स्तर पर गलत ढ़ंग से जो शराब बनायी जा रही है, उसकी रसायनिक अभिक्रियाओं के दौरान इथाइल अल्कोहल के साथ मिथाइल अल्कोहल भी बन जा रहा है.
स्थानीय स्तर पर शराब बनाने के दौरान टेम्परेचर का कोई खयाल नहीं रखा जाता है. ऐसे में शराब बनने के दौरान इथाइल के साथ उसमें खतरनाक मिथाइल अल्कोहल भी शामिल हो जा रहा है. इथाइल अल्कोहल मूल रूप से सीरका या एसिडिक एसिड का निर्माण करने में सहायक है. जो शरीर के लिये खतरनाक नहीं है. लेकिन मिथाइल अल्कोहल से फार्मिक एसिड निकलता है. जो शरीर के लिये काफी नुकसानदायक होता है. जहरीली शराब में फार्मिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है, जिसके सेवन से चक्कर आना, आंख की रौशनी चले जाना, लगातार उल्टी होना तथा ब्रेन हेमरेज तक का खतरा बना रहता है.
उन्होंने बताया कि जब चीटी या हड्डा काटता है तो, एक मिलीलीटर से भी कम फॉलिक एसिड का प्रवाह शरीर में होता है. चीटी व हड्डा काटने के समय इतनी कम मात्रा में फॉलिक एसिड शरीर में आने से काफी दर्द होता है. वहीं जब शराब में मौजूद फॉलिक एसिड अधिक मात्रा में शरीर में जायेगी तो, मौत होना निश्चित है. उन्होंने बताया कि शराब बनाने के क्रम में चावल से निकले ग्लुकोज को अल्कोहल के प्रयोग से तोड़ा जाता है. जब ग्लुकोज टूटता है तो, टेम्पेरेचर वेरियेसन बहुत जरूरी होता है. टेम्पेरेचर सही नहीं होने के कारण ही मिथाइल अल्कोहल से निकला फॉर्मिक एसिड जानलेवा साबित हो रहा है.