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बिहार में पेड़-पौधे और चिड़ियों के बीच हो रही पढ़ाई, स्कूल ऑफ नेचर से जोड़ कर बच्चों को दी जा रही मुफ्त शिक्षा

चहकती चिड़ियां, बड़े-छोटे पौधों का रूप-रंग और उनकी खासियत, पोखरों में तैरते बत्तख और पहाड़ों से उतरकर नदी में समाती कल-कल जल धारा को देखने का लुत्फ वही ले सकता है, जो प्रकृति के साथ रहता हो.

मुजफ्फरपुर. चहकती चिड़ियां, बड़े-छोटे पौधों का रूप-रंग और उनकी खासियत, पोखरों में तैरते बत्तख और पहाड़ों से उतरकर नदी में समाती कल-कल जल धारा को देखने का लुत्फ वही ले सकता है, जो प्रकृति के साथ रहता हो.

पाठ्य पुस्तकों से ही प्रकृति के विभिन्न रंगों काे देखने वाले बच्चों की समझ अच्छी तरह विकसित नहीं होती, लेकिन सीतामढ़ी के बच्चे पेड़-पौधों, चिड़ियों और नदी-पोखरों के समीप रह कर अपनी पढ़ाई कर रहे हैं. बच्चों को प्रकृति के साथ जोड़ने का जरिया सीतामढ़ी का श्रीरामपुर संवाद बना है.

इन बच्चों को पढ़ाई के साथ विभिन्न जीवों व पौधों के रूप-रंग और खासियत के बारे में बताया जा रहा है. संस्था के संस्थापक आर्यन चंद्र प्रकाश ने इसे स्कूल ऑफ नेचर का नाम दिया है. संस्था बच्चों की पढ़ाई और भ्रमण निशुल्क कराती है.

संस्थापक आर्यन चंद्रप्रकाश कहते हैं कि दो साल पहले किसानों व मजदूरों के बच्चों को को प्रकृति से जोड़ने के लिए यह पहल की थी. कोरोना काल में बच्चों की संख्या बढ़ी. फिलहाल विभिन्न वर्गों के 67 बच्चे संस्था से जुड़ कर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.

कहानियां लिख रहे और फोटोग्राफी कर रहे बच्चे

संस्था से जुड़े कई बच्चे अब कहानियां लिख रहे और फोटोग्राफी कर रहे हैं. आर्यन बताते हैं कि पहले ये बच्चे किताब से दूर भागते थे. जब से प्रकृति के बीच रह कर पर्यावरण को समझने लगे हैं, पढ़ाई में इनकी रुचि बढ़ गई है. ये पौधों को पहचानने लगे हैं और चिड़ियों के रंग और बोली के साथ प्रकृति से परिचित हो चुके हैं. ये नियमित तौर पर पौधरोपण कर धरती और पर्यावरण को बचाए रखने का प्रयास कर रहे हैं.

आर्यन ने बताया कि संस्था इन बच्चों को नियमित अंतराल पर पेंटिंग, एक्टिंग, क्राफ्टिंग का वर्कशॉप भी कराया जा रहा है. इस कार्य की देश-विदेश में सराहना हो चुकी है. जर्मन फोटोग्राफर डैनियल स्वाईटजर, मलेशियन पत्रकार योह, पर्यावरणविद् संजय पयासी, फॉरेस्ट ऑफिसर रविंद्र दुबे, समाजसेवी प्रिथी पाल सिंह मथारू ने संस्था के कार्यों को देखा है इसकी सराहना की है

Posted by Ashish Jha

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