Gandhi Jayanti: बापू ने ड्यूक हॉस्टल में बितायी थी रात, सुबह उत्तर बिहार में फूंका सत्याग्रह का बिगुल
Gandhi Jayanti: 10 अप्रैल 1917 की रात महात्मा गांधी ने लंगट सिंह कॉलेज के ड्यूक हॉस्टल में बितायी थी. मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर उतरने के बाद छात्र उन्हें बघ्घी पर बैठाकर कॉलेज कैंपस तक ले गये. बापू के सम्मान में खुद छात्रों ने ही बघ्घी खींची.
Gandhi Jayanti: 10 अप्रैल 1917 की रात महात्मा गांधी ने लंगट सिंह कॉलेज के ड्यूक हॉस्टल में बितायी थी. मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर उतरने के बाद छात्र उन्हें बघ्घी पर बैठाकर कॉलेज कैंपस तक ले गये. बापू के सम्मान में खुद छात्रों ने ही बघ्घी खींची. चंपारण सत्याग्रह का बिगुल फूंकने उत्तर बिहार आये बापू ने हॉस्टल के वार्डेन कक्ष में पहली रात गुजारी और अगले दिन यानि 11 अप्रैल को कॉलेज कैंपस स्थित कुएं पर स्नान किये. कुएं को स्मृति के तौर पर सहेजने के लिए सुंदरीकरण कराया गया है. साथ ही स्नान करते हुए बापू की प्रतिमा भी स्थापित की गयी है, जिसका अनावरण दो अक्तूबर 2018 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना से रिमोट के जरिये किया था. हालांकि ड्यूक हॉस्टल के जिस कमरे में बापू ने पहली रात गुजारी थी, वह अभी बंद पड़ा है. कुछ साल पहले सुरक्षा के लिहाज से दरवाजे पर ईंट की दीवार खड़ी कर दी गयी.
चंपारण को नीले आतंक से मुक्ति दिलाने आए थे बापू
महात्मा गांधी बिहार के चंपारण जिले के किसानों को नीले आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए आये थे. वर्ष 1917-18 में गांधीजी के नेतृत्व में शुरू आंदोलन को ही चंपारण सत्याग्रह का नाम दिया गया. दरअसल, नील की खेती करने वाले किसानों की दशा खराब हो गयी थी. समाजसेवी पंडित राज कुमार शुक्ल ने 27 फरवरी 1917 को मोहनदास करमचंद गांधी को एक पत्र लिखा था. इसी पत्र ने आजादी की लड़ाई के पहले अहिंसक आंदोलन का बिगुल फूंका और चंपारण सत्याग्रह ने गांधी को महात्मा बना दिया.
मीनापुर चौक पर 5 मार्च 1919 को आये थे बापू
आजादी की लड़ाई का शंखनाद करने के लिए महात्मा गांधी पांच मार्च 1919 को मीनापुर चौक पर पहुंचे थे. मीनापुर चौक का गांधी आश्रम बापू के आगमन की गवाही देता है. गांधी ने यहां के नौजवानों को ललकारा कि देश को हर हाल में आजाद कराना है. इसी जगह पर हरका गांव के भविषण शाही ने गांधी आश्रम की स्थापना की थी. महात्मा गांधी हरका गांव के पंडित सहदेव झा के साथ रामपुर हरि गांव भी गये. वहां पंडित सहदेव झा को मीनापुर का गांधी कहा था. सभा के बाद पंडित सहदेव झा के पुराने वस्त्रों की नीलामी की गयी, जिसे सीतामढ़ी के एकव्यापारी ने खरीदा. नीलामी से प्राप्त धन को कस्तूरबा गांधी ट्रस्ट में जमा किया गया. इसके बाद महात्मा गांधी ने पंडित सहदेव झा को सत्याग्रह आंदोलन का संयोजक नियुक्त किया. आखिरी बार वह 1934 के विनाशकारी भूकंप के तुरंत बाद आये थे. वह कांटी में रेलवे स्टेशन पर उतरने के बाद रघई कोठी होते हुए टमटम गाड़ी से वहां पहुंचे थे.