Gandhi Jayanti :बिहार का ये जिला गांधी के विचारों पर चलकर उनके सपनों को किया साकार, आपदा को अवसर में बदला
महात्मा गांधी को हम सिर्फ एक व्यक्ति या व्यक्तित्व के रूप में याद नहीं कर सकते हैं. वो एक सभ्य और विकसित समाज बनाने के लिए शब्दकोश हैं. वहीं, बिहार के पश्चिमी चंपारण जिला महात्मा गांधी के बताए रास्ते पर चलकर आज आत्मनिर्भर बन गया है.पढ़ें पश्चिमी चंपारण ने कैसे ये मुकाम हासिल किया.
पटना. महात्मा गांधी को हम सिर्फ एक व्यक्ति या व्यक्तित्व के रूप में याद नहीं कर सकते हैं. वो एक सभ्य और विकसित समाज बनाने के लिए शब्दकोश हैं. मानव जाति के सुनियोजित विकास के क्रम में आने वाले हर एक क्षेत्र में उनका एक मॉडल और विचार आज भी प्रमाणिक है. समाज के विकास के लिए उन्होंने जो मॉडल बताए थे वो आज भी उतनी ही सटीक साबित हो रहा है जितना कि विज्ञान का कोई सिद्धांत होता है. उनके ‘ग्राम स्वरोजगार’ जैसे विचारों को तब और मजबूती मिली जब कोरोना जैसी आपदा में सब कुछ फेल सा हो गया था. इसी आपदा में बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में महात्मा गांधी के बताए रास्ते पर चलकर न सिर्फ आपदा में चलना सिखा बल्कि आज दूसरे राज्यों के लिए भी रोजगार के क्षेत्र में प्रेरणास्रोत बन गया है. इस उपलब्धि की कहानी भी महात्मा गांधी से ही जुड़ी हुई है.
महात्मा गांधी की एक संक्षिप्त परिचय
महात्मा गांधी का जन्म आज यानी 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था. उनका जन्म एक संपन्न परिवार में हुआ था. उनके पिता करमचंद पोरबंदर रियासत के राजा के दरबार में दीवान थे और उनकी माता पुतलीबाई एक धार्मिक महिला थीं, जो अक्सर पूजा-पाठ के लिए मंदिर जाती थीं और उपवास रखा करती थीं. तब महात्मा गांधी कोई महात्मा नहीं सिर्फ मोहनदास करमचन्द गांधी थे. चूकि परिवार आर्थिक सम्पन्न थी तो शायद शिक्षा का महत्व भी जानते थे.
बम्बई के भावनगर कॉलेज में की पढ़ाई
मोहनदास गांधी ने उच्च शिक्षा बम्बई के भावनगर कॉलेज से पढ़ाई की. लेकिन वो वहां ख़ुश नहीं थे. तभी उन्हें लंदन के मशहूर इनर टेम्पल में क़ानून की पढ़ाई करने जाने का प्रस्ताव मिला. परिवार के बुज़ुर्गों ने मोहनदास को समझाया कि विदेश पढ़ने जाने पर वो ज़ात से बाहर कर दिए जाएंगे. लेकिन, बड़ों के ऐतराज़ को दरकिनार कर के गांधी पढ़ने के लिए लंदन चले गए. ये वो पहला फैसला था जहां से महात्मा बनने की शुरुआत होता है. वो वहां वकालत की पढ़ाई की फिर भारत लौट आए. यहां वो वक़ालत करने लगे. लेकिन यहां उनका ज्यादा दिन मन नहीं लगा.
दक्षिण अफ्रीका चले गए
मोहनदास गांधी को दक्षिण अफ्रीका में काम करने का प्रस्ताव मिला और वो वहां निकल गए. वहां सबकुछ तब ठीक ही चल रहा था. लेकिन 1904 में दक्षिण अफ्रीका के जोहानसबर्ग में हिंदुस्तानियों की आबादी में प्लेग फैल गया. उस दौरान महात्मा गांधी ने अपना चिंता छोड़कर लोगों की मदद खूब की. तभी शायद महात्मा का जन्म हुआ, जिसकी पहचान बिहार के चंपारण में हुई. फिर वो 1915 में भारत लौटे.
ट्रेन में भेदभाव
महात्मा गांधी भारतीय ट्रेनों में भेदभाव के खिलाफ अंग्रेजों के समक्ष बिगुल फुंका. इसके बाद वो क़ानून रौलट एक्ट के विरोध का ऐलान किया. इस दौरान उन्हें ये एहसास हो गया था कि भारत सिर्फ अंग्रेजों से नहीं गरीबी से भी लड़ रहा है. वहीं, इसके बाद राजकुमार शुक्ल के आग्रह पर महात्मा गांधी 1916 में बिहार और चंपारण सर्वप्रथम पहुंचे. चंपारण में नील की खेती से संबंधित तिनकठिया प्रणाली को लेकर वो मोतिहारी पहुंचे थे और यहां से शुरू हो जाती है महात्मा गांधी की राष्ट्र मिशन, जिसे सत्याग्रह भी कहते हैं.
इनके पास विकास का मॉडल था
महात्मा गांधी और क्रांतिकारियों से इसलिए अलग हो जाते हैं क्योंकि मात्र इनके पास ही भारत की आजादी के साथ- साथ एक विकसित और सभ्य देश बनाने के लिए एक मॉडल था. वे भारत आने के बाद भारत की गरीबी को देख चुके थे. इसलिए वे हमेशा आर्थिक सिद्धांतों की बात किया करते थे. उनके सिद्धांतों में एक सबसे सफल सिद्धांतों ‘ग्राम स्वरोजगार’ था. उन्हें पता था कि भारत की आजादी के बाद भी कई समस्याएं पहले से ही प्रतिक्षा में खड़ा है. वे कहा करते थे “भारत की स्वतंत्रता का अर्थ पूरे भारत की स्वतंत्रता होनी चाहिए, और इस स्वतंत्रता की शुरुआत नीचे से होनी चाहिए. तभी प्रत्येक गांव एक गणतंत्र बनेगा, अतः इसके अनुसार प्रत्येक गांव को आत्मनिर्भर और सक्षम होना चाहिए. समाज एक ऐसा पैरामीटर होगा जिसका शीर्ष आधार पर निर्भर होगा” इसी सिद्धांत को ‘ग्राम स्वरोजगार’ नाम दिया गया.
ग्राम स्वरोजगार की बात पर जोड़
समय -समय पर सरकार के द्वारा ‘ग्राम स्वरोजगार’ की बात तो हुआ करती थी लेकिन धरातल पर अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका. आज इसकी महत्ता हमें तब पता चला जब कोरोना जैसी महामारी से पूरी दुनिया ग्रसित हो गई. सभी अपने काम छोड़ जान की चिंता कर घर लौटने लगे. बिहार जैसे प्रदेश में तो और भी हाल खराब हो गया. जब सभी जिले में लाखों प्रवासी मजदूर घर आ गए और एक झटके में बेरोजगार हो गए. लेकिन महात्मा गांधी की ‘ग्राम स्वरोजगार’ मॉडल शायद तब और भी मजबूती के साथ खड़ा हो गया.
पश्चिमी चंपारण के डीएम कुंदन कुमार ने उनके सपनों को किया साकार
वहीं, इस चुनौती के घड़ी में बिहार के पश्चिमी चंपारण के डीएम कुंदन कुमार महात्मा गांधी के ‘ग्राम स्वरोजगार’ मॉडल पर काम करना शुरू कर दिए. विपरीत परिस्थिति से निपटने की समझ ही किसी भी अधिकारी को लोगों के बीच लोकप्रिय बनाता है. डीएम कुंदन कुमार ने न सिर्फ अपने आप को साबित किए बल्कि महात्मा गांधी की ‘ग्राम स्वरोजगार’ के सपने को भी सफल सिद्ध करके दिखाया.
‘चनपटिया मॉडल’ की हो रही है तारीफ
डीएम कुंदन कुमार के सहयोगी से टेलीफोनिक बातचीत में उन्होंने बताया कि आज पूरे देश में ‘चनपटिया मॉडल’ की तारीफ हो रही है. कई राज्य में इस मॉडल पर चर्चा भी किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि हमलोगों ने आपदा को ही अवसर बनाया है. वहीं, डीएम कुंदन कुमार इसके पीछे महात्मा गांधी के ‘ग्राम स्वरोजगार’ के सपने को ही बताते हैं. वे इसे ही प्रेरणा मानते हैं. जिससे ‘चनपटिया मॉडल’ से न सिर्फ चनपटिया को एक नई पहचान मिली बल्की पूरे देश में बेतिया और पश्चिमी चंपारण एक नये रूप में उभर कर आ सका.
चनपटिया बना टेक्सटाइल इंडस्ट्री का हब
बता दें कि पश्चिमी चंपारण के बेतिया शहर से चनपटिया की दूरी लगभग 18 कि.मी है. ये क्षेत्र आज टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिया जाना जा रहा है. यहां के वृदांवन पहले ही बुनकरों के लिए फेमस रहा है. लेकिन ये उद्योग पैन इंडिया विस्तार नहीं कर सका. कोरोना के बाद कौशल पूर्ण मजदूरों की पहचान कर डीएम कुंदन कुमार ने सरकार के सहयोग से यहां 350 एकड़ क्षेत्र में इंडस्ट्रियल एरिया का निर्माण करवाया. आज यहां सैकड़ों अलग- अलग क्षेत्र की इंडस्ट्री लगी हुई है. इसमें हजारों मजदूरों को रोजगार मिला है. अभी 114 लोग यहां उद्योग लगाने के लिए इच्छुक हैं.
गांधी हमेशा प्रासंगिक रहेंगे
बिहार का ये जिला आज महात्मा गांधी के सपने को साकार कर रहा है. हमारे समाज के लिए महात्मा गांधी आज भी उतना ही प्रासंगिक हैं जितना कि आजादी के लिए थे. उनके कार्य और विचार आजादी के 75 साल बाद भी विकास के हर एक कदम पर समृद्धि प्रदान कर उन्हें और महान बना रहा है.