Ganesh Chaturthi 2022: देश की आर्थिक नगरी के रूप में विख्यात मुंबई व उसके मराठा परिक्षेत्र में धूमधाम से मनाये जाने वाले गणेश उत्सव की धूम उसके प्रारंभिक स्थल मिथिलांचल के मधेपुरा है. मुंबई में प्रत्येक वर्ष उत्सवी माहौल में आयोजित गणेश उत्सव की शुरुआत सर्वप्रथम वर्ष 1886 में जिले के शंकरपुर से हुई थी. लेकिन इसकी जानकारी बहुत कम ही लोगों के पास है. इनदिनों सिनेमा के पर्दे से लेकर टीवी कार्यक्रमों में महाराष्ट्र में आयोजन होने वाली गणेश उत्सव के बारे में लोग उसकी भव्यता को देखते है. लोगों के बीच इस बात की धारणा बन गयी है कि गणेश उत्सव का शुभारंभ महाराष्ट्र से हुआ है. जबकि सच कुछ और ही है. इतिहासकारों के अनुसार देश में सबसे पहले बिहार के मिथिला क्षेत्र में गणेश उत्सव की शुरुआत हुआ था.
बतादें कि महराजा रूद्र सिंह के पोते और महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह के भाई और आप्त सचिव बाबू जनेश्वर सिंह ने 1886 के आसपास ही वर्तमान मधेपुरा जिले के शंकरपुर में सार्वजनिक रूप से गणेश पूजा की शुरुआत की थी. जबकि महराष्ट्र में इसके करीब सात साल बाद 1893 में गणेश उत्सव सार्वजनिक रूप से आयोजित किया जाने लगा. ऐसे में गणेश उत्सव की सार्वजनिक रूप से मनाने का श्रेय शंकरपुर के लोगों को जाता है. इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व वीसी डॉ सर गंगानाथ झा की ऑटो बायोग्राफी में इस बात का जिक्र किया गया है कि वर्ष 1893 में दरभंगा आने से पूर्व बाबू जनेश्वर सिंह शकरपुर में सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत कर दी थी. सर गंगानाथ शंकरपुर में गणेश पूजा करने के वायदे को पूरा करने के कारण ही मिथिला नरेश की नाराजगी के शिकार बने और उनकी राज मुस्तकालयाध्यक्ष पद गंवानी पड़ी.
बतादें कि सर गंगानाथ ने उत्सव में पुरोहित की भूमिका निभायी थी. नौकरी गवाने के बाद सर गंगानाथ ने इलाहाबाद का रुख किया था. सर गंगानाथ के आत्मकथा में ही इस बात का उल्लेख मिलता है कि 19वीं शताब्दी के आखरी दशक में केवर शंकरपुर ही नहीं दरभंगा, राजनगर जैसे अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर भी यह पूजा धूम धाम से मनाया जाता था. दरभंगा महाराज के कार्यकाल के दौरान कोसी क्षेत्र में शंकरपुर स्टेट का अपना रुतबा था.
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सार्वजनिक गणेश उत्सव राजा व प्रजा साथ मिलकर मनाते थे. वर्ष 1934 तक दरभांगा से जमींदार की आवाजाही बनी रही. भूकंप के बाद विराम लग गया. बतादें कि बाबू जनेश्वर सिंह ने अपने जीवन काल में शिक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण संस्थानों का निर्माण कराया. इनमें शंकरपुर पुस्कालय मधेपुरा, शंकरपुर संस्कृत पाठशाला, महरानी लक्ष्मीवती एकादमी दरभंगा, महराजा लक्ष्मेश्वर सिंह सार्वजनिक पुस्तकालय लालबाग दरभंगा तथा शंकरपुर धर्मशाला हराही दरभंगा शामिल है.