गंगा का पानी तेजी से नहीं घटा, तो हो सकती है परेशानी, पटना के इन घाटों पर इस बार नहीं होगा छठ

निरीक्षण को करने वाले अधिकारियों से बातचीत मे सामने आया है कि लगभग सभी घाटों पर गंगा नदी का जल स्तर पूर्व की तुलना मे बढ़ा हुआ है. जब तक जल स्तर में कमी नही आयेगी, बेहतर तरीके से तैयारी मुश्किल है.

By Prabhat Khabar News Desk | October 10, 2022 8:37 AM

पटना. लोक आस्था के महापर्व छठ को लेकर तैयारियां तेज हो गयी है. दुर्गापूजा बीतने के बाद जिला प्रशासन और नगर निगम की ओर से पटना के छठ घाटो पर तैयारियां शुरू कर दी गयी है. इसी कड़ी में इन दिनाें 20 अधिकारियों की टीम घाटाें कर निरीक्षण कर रही है. निरीक्षण को करने वाले अधिकारियों से बातचीत मे सामने आया है कि लगभग सभी घाटों पर गंगा नदी का जल स्तर पूर्व की तुलना मे बढ़ा हुआ है. जब तक जल स्तर में कमी नही आयेगी, बेहतर तरीके से तैयारी मुश्किल है.

पक्के घाटों पर भीड़ बढ़ने से एप्रोच रोड पर भी दबाव बढ़ेगा

पटना के कच्चे घाटों पर अगर पानी तेजी से नहीं घटा, तो दलदल जैसी स्थिति भी विभिन स्थानों पर बन सकती है. अधिकारियों ने नाम नही छापने की शर्त पर बताया कि लगभग सभी पक्के घाटों की सीढ़यों तक पानी है. इससे इन घाटों पर ही छठ आसानी से हो सकता है. उन्होंने बताया कि अगर पानी कम नही होता है, तो मौजूदा पक्के घाटों पर छठ में लोगों की संख्या काफी बढ़ सकती है. ऐसा इसलिए कि शहर मे मौजूद घाटों से गंगा के दूर जाने की स्थिति में जमीन का बड़ा हिस्सा निकल जाता है, जिससे वतियों और श्रद्धालुओं की एक बड़ी संख्या को पर्याप्त जगह मिल जाती है. पक्के घाटों पर भीड़ बढ़ने से एप्रोच रोड पर भी दबाव बढ़ेगा. ऐसे में प्रशासन के लिए भीड़ नियंत्रण भी एक बड़ी चुनौती बन सकती है.

बांसघाट व पहलवान घाट पर मुश्किल

माना जा रहा है कि अगले 10 दिनों में जल स्तर मे गिरावट आयेगी. इसके बाद ही तैयारी तेज हो सकती है. ऐसे मे अब पानी के कम होने का इंतजार किया जा रहा है. जानकारी के मुताबिक इस वर्ष पहलवान घाट और बांस घाट जैसे महत्वपूर्ण घाटों पर छठ का आयोजन मुश्किल लग रहा है. यहां पानी कम होने के बाद दलदल जैसी स्थिति बन सकती है. हालांकि, अधिकारियो की रिपोर्ट ने के बाद ही इसकी सही तस्वीर सामने आयेगी. दूसरी ओर इस वर्ष भी कालीघाट, पटना कॉलेज घाट, एनआइटी घाट, कृष्णा घाट, लॉ कॉलेज घाट छठ पर्व के आयोजन के लिए सबसे बेहतर घाटों में से होंगे.

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