खाकी वरदी के लिए छोड़ी लाखों रुपये की नौकरी

गया: खाकी वरदी का आकर्षण अमूमन युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करता है. पुलिस अफसर बन कर अपराधियों को सही जगह पहुंचाने व निर्दोष लोगों की मदद करने की चाहत युवाओं के मन-मस्तिष्क में हिलोरें मारती हैं. ऐसा ही कुछ एसडीपीओ वजीरगंज अभिजीत कुमार सिंह के साथ बचपन से ही दिलो दिमाग में दौड़ रहा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 15, 2017 9:52 AM
गया: खाकी वरदी का आकर्षण अमूमन युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करता है. पुलिस अफसर बन कर अपराधियों को सही जगह पहुंचाने व निर्दोष लोगों की मदद करने की चाहत युवाओं के मन-मस्तिष्क में हिलोरें मारती हैं. ऐसा ही कुछ एसडीपीओ वजीरगंज अभिजीत कुमार सिंह के साथ बचपन से ही दिलो दिमाग में दौड़ रहा था, पर पुलिस अफसर बनने से पहले उन्होंने आइआइटी का एग्जाम क्लियर किया व नॉटिकल साइंस की पढ़ाई कर मर्चेंट नेवी में बड़ा अफसर बन गये.

विदेश में लाखों रुपये महीने की नौकरी की, लेकिन नौकरी रास नहीं आयी. वर्ष 2013 में पहली बार उन्होंने बीपीएससी (बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन) का एग्जाम दिया व 17वां रैंक प्राप्त कर डीएसपी बन गये.

आइआइटी भी कर चुके हैं क्रैक: वजीरगंज के डीएसपी अभिजीत कुमार सिंह मूल रूप से इलाहाबाद के रहनेवाले हैं. बचपन से ही वह पढ़ाई लिखाई में तेज थे. वर्ष 2002 में आइआइटी का एग्जाम दिया. पहली दफा में ही पीटी व मेन्स की परीक्षा पास कर गये. इससे पूर्व वह मर्चेंट नेवी में फॉर्म भर चुके थे.

आइआइटी पास करनेवाले छात्र ही मर्चेंट नेवी की पढ़ाई कोलकाता स्थित डीएटी व नवी मुंबई स्थित टीएस चाणक्या कॉलेज से कर सकते थे. लिहाजा टीएस चाणक्या कॉलेज उन्हें रास आया व उन्होंने दाखिला ले लिया. नॉटिकल साइंस की पढ़ाई पूरी की व इटैलियन कंपनी सियर लैंड ज्वाइन कर लिया. ज्वाइन करते ही विदेश में नौकरी करने का दौर शुरू हुआ. विभिन्न कंपनियों में काम किया. नौकरी ज्वाइन की थी, तो वह कैडेट थे. उस समय उनकी तनख्वाह 50000 हजार रुपये थी. इसके बाद थर्ड ऑफिसर इंचार्ज हुए, तो उनकी सैलरी डेढ़ लाख प्रतिमाह हो गयी. जब सेकेंड अफसर बने, तो उनकी तनख्वाह 2.70 लाख रुपये हो गयी. नौकरी करते हुए उन्होंने विदेश के 28-30 शहरों का भ्रमण भी किया. इस बीच उनके बड़े भाई भी यूएस शिफ्ट कर गये. घर में उनके माता-पिता अकेले पड़ गये. परिवार के प्रति नैतिक जिम्मेदारी का खयाल भी उन्हें परेशान करने लगा. मां पिता विदेश जाने को राजी नहीं थे, सो वह असमंजस की स्थिति में पहुंच गये. तय किया कि इंडिया में ही रह कर कुछ बेहतर किया जायेगा. यूपीएससी का एग्जाम दिया, लेकिन सफलता नहीं मिली. इस बीच वर्ष 2013 में बीपीएससी का एग्जाम दिया व पहली बार में ही सफलता मिल गया. उन्हें इस परीक्षा में 17वां रैंक मिला. ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उन्हें मुजफ्फरपुर के नक्सलग्रस्त सरैया थाने का एसएचओ बनाया गया. वहां रहते हुए उन्होंने 50000 रुपये के इनामी नक्सली अमीन सहनी को गिरफ्तार किया.

पुलिस में हर दिन नयी-नयी चुनौतियां
उन्होंने बताया कि पुलिस की नौकरी में हर दिन नयी चुनौतियां सामने आती हैं. उन नयी चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ने में मजा आता है. खासकर जब किसी निर्दोष को राहत पहुंचती है, तो अंदर से बड़ा सुकून मिलता है. यह काम मल्टी नेशनल कंपनी में रहते हुए नहीं किया जा सकता था. उन्होंने बताया कि पुलिस में पहली चुनौती अपराध होने के समय से ही शुरू हो जाती है. इसके बाद भी कई प्रकार की प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष चुनौतियों से पुलिस अफसरों का सामना होता है. इन चुनौतियों से जूझते हुए आगे बढ़ने में मजा आना स्वाभाविक है. उन्होंने बताया कि मल्टीनेशनल कंपनी में एक सेट पैटर्न होता है व उसी ढर्रे पर चलना व चीजों को संभालना होता है. इसके अलावा कुछ भी नहीं होता.

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