बाल श्रम रोकने को बनेगी समिति
पहल. छुड़ाये गये बाल श्रमिकों की सही से की जायेगी मॉनीटरिंग पंचायत, ब्लॉक व जिला स्तर पर होगी रिपोर्टिंग गया : जिले में बाल श्रम के मामले को न्यूनतम करने और कल-कारखानों से छुड़ा कर लाये गये बाल श्रमिकों की सही मॉनीटरिंग करने के लिए जल्द ही पंचायत लेवल पर भी बाल संरक्षण समिति का […]
पहल. छुड़ाये गये बाल श्रमिकों की सही से की जायेगी मॉनीटरिंग
पंचायत, ब्लॉक व जिला स्तर पर होगी रिपोर्टिंग
गया : जिले में बाल श्रम के मामले को न्यूनतम करने और कल-कारखानों से छुड़ा कर लाये गये बाल श्रमिकों की सही मॉनीटरिंग करने के लिए जल्द ही पंचायत लेवल पर भी बाल संरक्षण समिति का गठन होगा. इसकी कवायद शुरू कर दी गयी है. जिला बाल संरक्षण इकाई की सहायक निदेशक नेहा नूपुर ने बताया कि पंचायत लेवल पर बाल संरक्षण समिति के बनने से तीन स्तरों (पंचायत, ब्लॉक व जिला ) पर बाल श्रम की सही रिपोर्टिंग हो पायेगी. एक तो यह पता चल पायेगा कि किस पंचायत में कितने बच्चे काम धंधे में लगे हैं. उनके घर की माली हालत कैसी है. कितने बच्चे स्कूल जाते हैं आदि. इस काम में पंचायत के प्रतिनिधि व कुछ सामाजिक संगठन को सदस्य के तौर पर रखा जायेगा.
ब्लॉक स्तर पर समिति का गठन, दी जा रही ट्रेनिंग : हाल ही में सदर अनुमंडल के तहत आने वाले ब्लॉक में ब्लॉक लेवल बाल संरक्षण समिति का गठन किया गया है. इन्हें ट्रेनिंग दी जा रही है. इस ब्लॉक लेवल समिति में गांव के प्रमुख को अध्यक्ष, बीडीओ सह अध्यक्ष के साथ गांव के मुखिया व ब्लॉक लेवल पर सभी पदाधिकारी को इसका सदस्य बनाया गया है. इस काम में जस्टिस एंड केयर व सेव द चिल्ड्रेन संस्था सहयोग कर रही है. इसके अलावा अन्य अनुमंडल के तहत आने वाले ब्लॉक में भी इस समिति का गठन होगा.
हुनर को तराशने की जरूरत : मंजू शर्मा
शिक्षाविद व सामाजिक कार्यकर्ता मंजू शर्मा कहतीं हैं कि गांव में जो गरीब परिवार रहता है उनके हुनर को पहचाने की जरूरत है. कोई पत्थर अच्छी तरह से काटता है तो कोई बांस व दूसरे उत्पाद के बारे में जानकारी रखता है. कुछ लोग खेती बाड़ी के बारे में अच्छी जानकारी रखते हैं तो कुछ लोग घरेलू उपचार के बारे में जानकारी रखते हैं. अगर ऐसे लोगों को सही तरीके से निखारा जाये तो यह ठीक-ठाक आर्थिक उपार्जन कर सकेंगे. इसके अलावा इनके बीच शिक्षा का प्रचार-प्रसार भी सही तरीके से हो ताकि यह बच्चों को कमाने के बजाए उन्हें स्कूल में भेज सकें. इसके अलावा सिविल सोसाइटी भी ऐसे परिवार व बच्चों को लेकर थोड़ा आगे आयें. इससे निश्चित तौर पर बाल श्रम के मामले खत्म होंगे.
छुड़ाये जाते हैं बच्चे, फिर लौट जाते हैं काम पर
राजस्थान के अलावा ढाबा व रेस्तरां से छुड़ाये गये बच्चे जब भी रेस्क्यू करके गया लाये गये हैं तो ऐभे मामले भी प्रकाश में आये हैं कि कई बच्चे दुबारा कल-कारखानों से छुड़ाये गये हैं. जिला बाल संरक्षण इकाई की सहायक निदेशक नेहा नूपुर भी इससे इंकार नहीं करती. कहती है कि जब इस तरह के बच्चों से बात होती है कि तो वह अपने माता-पिता या सगे-संबंधियों द्वारा काम पर बाहर भेजे जाने की बात कहते हैं. इसके अलावा एक ओर दिक्कत जो सामने आयी है
कि गांव में काम धंधा विशेषकर इज्जत के अनुकूल काम धंधा नहीं होने के कारण भी छुड़ाकर लाये गये बच्चों को उनके माता-पिता दुबारा दलालों के मार्फत काम के लिए बाहर भेज देते हैं. इसके अलावा बाल श्रम, बंधुआ मजदूरी के नाम पर मिलने वाली हजारों रुपये की राशि के लालच में भी कई बार माता-पिता अपने बच्चे को काम पर बाहर भेज देते हैं. हालांकि इसे रोक पाने में फिलहाल बहुत सफलता अधिकारियों को नहीं लगी है.