सरल, साधारण व मृदुभाषी हैं जीतन राम मांझी

गया: 1977 से राजनीतिक जीवन में कदम रखे जीतन राम मांझी भले ही राजनीतिक ऊंचाइयों को छूते रहे, पर हर रविवार को अपने गांव जाना व वहां के लोगों से मिलना-जुलना नहीं भूलते. उनका जीवन बचपन से जिस संघर्ष में बीता, वह राजनीतिक जीवन में बड़ा काम आया. गया जिले के खिजरसराय प्रखंड के महकार […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 20, 2014 9:50 AM

गया: 1977 से राजनीतिक जीवन में कदम रखे जीतन राम मांझी भले ही राजनीतिक ऊंचाइयों को छूते रहे, पर हर रविवार को अपने गांव जाना व वहां के लोगों से मिलना-जुलना नहीं भूलते. उनका जीवन बचपन से जिस संघर्ष में बीता, वह राजनीतिक जीवन में बड़ा काम आया. गया जिले के खिजरसराय प्रखंड के महकार गांव में जन्मे व पले-बढ़े जीतन राम मांझी ने बड़ी सादगी के साथ जीवन जिया है. उनकी डिक्शनरी में ‘ना’ शब्द नहीं है. उनका सोच व अप्रोच दोनों सकारात्मक है. उनसे मिलने आये लोग कभी निराश नहीं लौटते.

वह फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र से दो बार, बाराचट्टी विधानसभा क्षेत्र से दो बार, बोधगया से एक बार व जहानाबाद के मखदुमपुर विधानसभा क्षेत्र से एक बार बतौर विधायक रहे. इस बीच उन्होंने बिहार सरकार में कई मंत्रलय भी संभाले. लेकिन, सांसद बन कर संसद भवन जाने का सपना अधूरा ही रह गया. 1991 में गया संसदीय क्षेत्र से उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर भाग्य की आजमाइश की थी, पर लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे राजेश कुमार से 35000 मतों से हार का सामना करना पड़ा था. फिर 2014 में वह गया सुरक्षित संसदीय क्षेत्र से जदयू के टिकट पर भाग्य आजमाइश करने उतरे, पर तीसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा. शायद उनके भाग्य में बेहतर लिखा था.

गया को दिया सम्मान

यों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इससे पहले दलित वर्ग के माउंटेनमैन दशरथ मांझी को मुख्यमंत्री की कुरसी पर एक दिन के लिए बैठाया था. उसके बाद महादलित वर्ग से जीतन राम मांझी को यह सम्मान देकर गया की जनता को भी मान-सम्मान दिया है.

गांव में उनकी अपनी खेती-बारी नहीं थी. पिता रामजीत मांझी दूसरे के खेतों में काम करने जाते थे. साथ में उन्हें भी ले जाते थे. उनके पिता ने अपने दोनों बेटे जीतन राम मांझी व गोविंद प्रसाद मांझी को पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाने की कोशिश की. लेकिन जीतन मांझी को तो राजनीति में आना था, आये भी. पर, उनके छोटे भाई पुलिस में चले गये.

बाद में बीमारी के कारण उनकी मौत हो गयी और तब से अपने भावज व भतीजे को भी अपने साथ रख कर पढ़ा लिखा रहे हैं. श्री मांझी न केवल पारिवारिक व सामाजिक जीवन में सहृदय हैं, बल्कि धार्मिक प्रवृत्ति के भी हैं. हमेशा मंदिरों में जाकर मत्था टेकने के साथ बिथो शरीफ मजार के साथ बदरीनाथ आदि धर्मस्थलों पर जाते रहे हैं. उनके मृदुभाषी होने के कारण कोई भी व्यक्ति कभी उनसे नाराज नहीं हुआ.

Next Article

Exit mobile version