शराबबंदी कानून की तरह सरकार सख्‍ती से लागू करे बाल श्रम कानून : प्रो पुष्पेंद्र

गया : बिहार के गया जिले में बालश्रम के सबसे अधिक मामले पाये जाने को लेकर सेंटर डायरेक्‍ट के सहयोग से एक्शन मीडिया की ओर से बिहार डायलॉग का आयोजन किया गया. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पटना स्थित टाटा इंस्‍टिटयूट ऑफ सोशल साइंस सेंटर के प्रमुख प्रो पुष्‍पेंद्र ने कहा कि हम एक दोहरी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 27, 2018 6:52 PM

गया : बिहार के गया जिले में बालश्रम के सबसे अधिक मामले पाये जाने को लेकर सेंटर डायरेक्‍ट के सहयोग से एक्शन मीडिया की ओर से बिहार डायलॉग का आयोजन किया गया. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पटना स्थित टाटा इंस्‍टिटयूट ऑफ सोशल साइंस सेंटर के प्रमुख प्रो पुष्‍पेंद्र ने कहा कि हम एक दोहरी जिंदगी जी रहे हैं. हम अपने बच्‍चों के लिए एक अलग स्‍तर रखते हैं, जबकि दूसरों के लिए दूसरा. बाल श्रम को खत्‍म करना अब सिर्फ नैतिक ही नहीं कानूनी दायित्‍व भी है.

कितने तरह के है बाल श्रमिक?

कुछ लोग का मानना है कि जो बच्चे स्कूल में नहीं है, वे सभी बाल श्रमिक है. लेकिन, इसमें दो तरह के है. इनमें पहली श्रेणी में वे बच्चे आते हैं, जो जो वेज के लिए इंडस्ट्रीज में काम करते है. वहीं, दूसरी श्रेणी में वे आते हैं, जो घर में काम करते हैं. जैसे- अगरबत्ती, मोमबत्ती बनाना. इंडस्ट्री में ट्रैफिक किये गये है, चाइल्‍ड लेबर है, वेज लेबर है, माइग्रेंट लेबर है. सरकार का पूरा ध्यान आमतौर पर माइग्रेट लेबर या इंडस्ट्री लेबर पर ही केंद्रित है. लेकिन, यह बहुत छोटा हिस्सा है. बाल श्रमिक का क्षेत्र काफी व्‍यापक है. अगर कोई बच्चा काम पर लगाया जा रहा है, तो इसका मतलब एक वयस्क की नौकरी जा रही है. हमने वयस्क में बेरोजगारी बढ़ायी और आनेवाले समय में बच्चे को शिक्षित नहीं होते बस प्रशिक्षत होंगे.

कानून में बदलाव के बारे में बताते हुए बताते हुए उन्‍होंने कहा कि श्रम में बाल भी होता है. कानून कहता है कि 14 साल के छोटे बच्चे से जोखिम का काम नहीं करना चाहिए. 14 साल से ऊपर के बच्चे जोखिम के काम कर सकते है. उसके लिए कई काम को जोखिम के कैटेरिया से निकाल दिया गया. कानूनी हिसाब से हम पीछे की ओर जा रहे हैं. इसके लिए एक ऐसे कानून की आश्‍वयकता है, जिसमें लूप होल न हो.

शराबबंदी कानून का उदाहरण देते हुए प्रो पुष्‍पेंद्र ने कहा कि सरकार की प्राथिमकता में भी बाल श्रम को समाप्‍त करना नहीं हैं. शराबबंदी कानून इसका उदाहरण है, जहां रातों-रात सरकार ने इस कानून को सख्‍ती से लागू किया. ऐसा बाल श्रम और बच्‍चों की सुरक्षा से जुड़े कानूनों के साथ क्‍यों नहीं हो सकता. अगर कोई बच्चा काम पर लगाया जा रहा है, तो इसका मतलब एक वयस्क की नौकरी जा रही है. हमने वयस्क में बेरोजगारी बढ़ायी है. हमें यह सुनिशिचत करना होगा कि वयस्क रोजगार में इतना पैसा मिले कि वह अपने बच्चे को आराम से पढ़ा सके. मूल सवाल वयस्कों के श्रम का है.

प्रसिद्ध समाजसेवी सिस्‍टर मैरी एलिस ने कहा कि बच्‍चों को सुरक्षित करना सरकार, मां-बाप और समाज सबकी जिम्‍मेवारी है. यह एक मिथ है कि गरीब लोग अपने बच्चों के हितों का ख्याल नहीं रखते हैं. सभी को बच्‍चे उतने ही प्‍यारे होते हैं. कानून तो बहुत बनते हैं. इस कानून को लागू कराने के लिए क्या सरकार बाध्य है या जिस पर यह जुल्म हो रहा है, उसकी भी जिम्‍मेवारी है. क्या हमलोग थोड़ा भी दर्द और अनुभव के साथ ये सोच कर कि जो बच्चा काम कर रहा है, वह हमारे ही बच्चा है. यह सोचने से धारणा बदल जाती है. हमने यह कभी नहीं सोचा, जो बच्चा काम करता है, वह हमारे लिए करता है. हमें सबसे पहले इसके लिए सामाजिक बदलाव करना होगा. उसके बिना इसे व्यवहार में लाना कठिन होगा. इस बदलाव में मीडिया का भी काफी बड़ा हाथ हो सकता है. मीडिया, जनता और सामाजिक संगठन मिलकर काम करेंगे, तभी इसे जड़ से खत्म कर सकते हैं. अभी मानव तस्करी बिल पास होनेवाला है, उसे हमलोग कितना नैतिक समर्थन देते हैं. ये बाल श्रम से बच्चों को मुक्त करना एनजीओ का या सरकार का काम नहीं है, यह एक सामाजिक काम है और इसे सबको मिलकर करना होगा.

कार्यक्रम का संचालन एक्‍शन मीडिया से व्‍यालोक ने किया. सेंटर डायरेक्‍ट के महासचिव पीके शर्मा ने सभी श्रोताओं और अतिथियों का आभार व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि यह हमारे लिए बुहत ही गौरव का दिन है. इस अवसर पर गया के सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि, सेटर डायरेक्‍ट के प्रतिनिधियों के साथ ही गया जिले से कुछ बाल श्रम से विमुक्‍त कराये गये बच्चों के साथ ही उनके माता-पिता भी मौजूद रहे.

Next Article

Exit mobile version