पिछले साल 22, तो इस बार मात्र पांच को मिली सफलता

गया की पटवा टोली में उदासी मानपुर (गया) : मानपुर वस्त्र उद्योग नगरी के बच्चे पिछले 15 सालों से लगातार आईआईटी जेईई एडवांस में सफलता का परचम लहराते आ रहे है. लेकिन, रविवार की सुबह दस बजे जैसे ही आईआईटी जेईई का अंतिम परिणाम आया वहां के बच्चे व परिजनों में काफी उदासी व निराशा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 11, 2018 9:35 AM
गया की पटवा टोली में उदासी
मानपुर (गया) : मानपुर वस्त्र उद्योग नगरी के बच्चे पिछले 15 सालों से लगातार आईआईटी जेईई एडवांस में सफलता का परचम लहराते आ रहे है. लेकिन, रविवार की सुबह दस बजे जैसे ही आईआईटी जेईई का अंतिम परिणाम आया वहां के बच्चे व परिजनों में काफी उदासी व निराशा देखने को मिली. इस साल पटवा टोली में कुछ खास उत्साह नहीं दिखा. फिर भी पांच बच्चों ने कामयाबी हासिल कर अपनी मर्यादा बचाये रखी.
इसमें परमानंद कुमार (पिता मोहन प्रसाद, माता सरिता देवी) ने ओबीसी में 1830 व जेनरल में 9751वां रैंक प्राप्त किया. वहीं चंदन प्रकाश (पिता लालकेश्वर प्रसाद, माता अनीता देवी) ने ओबीसी में 978 व जेनरल में 5745, अंकित कुमार (पिता ओम प्रकाश, माता गीता देवी) ने ओबीसी में 1522 व जेनरल में 8331वां रैंक, जय प्रकाश (पिता ओम प्रकाश, माता रेणु देवी) ने ओबीसी में 1195वां रैंक प्राप्त किया. इसके साथ रवि कुमार (पिता जितेंद्र कुमार) ने ओबीसी में 2300वां रैंक प्राप्त किया.
बुनकरों के बच्चे अपने पुश्तैनी धंधे में नहीं ले रहे रुचि
मानपुर पटवाटोली के रहनेवाले परमानंद कुमार ने बताया कि उन्हें आईआईटी की पढ़ाई पूरी कर इंजीनियर बनना है. जब उसे अपने पुश्तैनी धंधों को नये व आधुनिक टेक्नाेलॉजी के बल पर आगे बढ़ाने की बात पूछी गयी तो उन्होंने बताया कि सूत्री वस्त्र उद्योग में आगे संभावनाएं नहीं हैं.
उनके परिवार के लोग घर के अंदर ही 12 जोड़ी पावरलूम मशीन बैठा कर वस्त्र उत्पादन कर रहे हैं. परमानंद ने बताया कि वह दूसरे प्रयास में सफल रहा. पहली बार 24000वां रैंक प्राप्त हुआ था. वहीं अंकित के माता व पिता बुनकर मजदूर हैं. लेकिन परिवार में दूसरे लोग शिक्षा के महत्व को समझते हैं. इसका परिणाम है कि अंकित के बड़ा भाई आईआईटी कानपुर में शिक्षक हैं.
कहीं मजबूरी, कहीं झांसे में फंस रही हैं जिंदगियां
लापरवाही : झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज कराना लोगों को पड़ रहा है महंगा
सूबे के अनुमंडलों व प्रखंडों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की हालत इतनी बदतर है कि स्वास्थ्य केंद्रों पर आये दिन घंटों ताला लटका हुआ रहता है. ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों का टोटा है. जिसको ले सीएम ने कर झोलाछाप डॉक्टर पांव पसार रहे हैं. ग्रामीणों की यह भी धारणा है कि शहर के डॉक्टर महंगा इलाज करते हैं. अधिक खर्च से बचने के लिए भी लोग झोलाछाप डॉक्टरों के चक्कर में पड़ जाते हैं, जिससे उन्हें अपनी जान तक गंवानी पड़ती है.

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