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पांच वर्षों से संगीनों के साये में शांति की भूमि बोधगया

आतंकियों ने बोधगया में सीरियल बम ब्लास्ट कर यहां की सुरक्षा बढ़ाने पर कर दिया है मजबूर शांति की खोज में महाबोधि मंदिर पहुंचनेवाले श्रद्धालुओं के लिए कड़ी सुरक्षा बंदोबस्त बोधगया : ढ़ाई हजार साल पहले जहां कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ ने बुद्धत्व प्राप्त कर दुनिया को शांति व अहिंसा का संदेश दिया, अब उसी […]

आतंकियों ने बोधगया में सीरियल बम ब्लास्ट कर यहां की सुरक्षा बढ़ाने पर कर दिया है मजबूर

शांति की खोज में महाबोधि मंदिर पहुंचनेवाले श्रद्धालुओं के लिए कड़ी सुरक्षा बंदोबस्त
बोधगया : ढ़ाई हजार साल पहले जहां कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ ने बुद्धत्व प्राप्त कर दुनिया को शांति व अहिंसा का संदेश दिया, अब उसी स्थान को संगीनों के साये में रखने की विवशता आ पड़ी है. बौद्ध धर्मावलंबियों के अन्यतम तीर्थस्थल बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर पर अब मानो आतंकियों ने अपनी नापाक नजरें गड़ा रखी हैं. अब भी यहां हर वर्ष बौद्धों के विभिन्न संगठनों व पंथों के मानने वाले बौद्ध श्रद्धालुओं द्वारा विश्व शांति के लिए पूजा समारोह होता है. इसमें बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा, 17वें ग्यालवा करमापा व अन्य केवल और केवल यही संदेश प्रसारित करते हैं कि लोग मानव ही नहीं, सभी जीवों और यहां तक कि वनस्पतियों से भी प्रेम करें,
सहिष्णुता रखें और हिंसा के मार्ग पर कदापि नहीं जायें. इसी मंत्र के साथ सम्राट अशोक से लेकर विश्व के कई देशों के लोगों ने बौद्ध धर्म को अंगीकार किया. इसके क्षेत्र में व्यापक रूप से फैलाव हुआ व आज पश्चिमी देशों के लोग भी बुद्ध के उपदेशों को प्रासंगिक बता रहे हैं, दलाई लामा व करमापा को सुन रहे हैं, उनके पीछे भाग रहे हैं.
लेकिन, कुछ वर्ष पहले तक किसी भय या खतरे से बेखौफ बोधगया और महाबोधि मंदिर आज आतंक के साये में सांस लेते दिख रहे हैं. पहली बार यहां सात जुलाई, 2013 को आतंकियों ने सिलिंडर बम विस्फोट कर पूरी दुनियाभर के शांतिप्रिय लोगों को चौंका दिया. अवांछित हरकतों के साथ आतंकियों ने विश्व में शांति व अहिंसा का संदेश देनेवाले पवित्र महाबोेधि मंदिर को कलंकित कर दिया. इसी के मद्देनजर शासन-प्रशासन को महाबोधि मंदिर की सुरक्षा में काफी बदलाव करना पड़ा व अब मंदिर के चप्पे-चप्पे पर हथियारबंद जवानों को तैनात कर दिया गया है. बहरहाल, समय की नजाकत को देखते हुए यह कदम जरूरी था व इससे लोगों में विश्वास का वातावरण बनाने की कोशिश हुई है.
नहीं दूर हुई दुकानदारों की पीड़ा : सात जुलाई 2013 की अहले सुबह बोधगया में हुए सीरियल बम विस्फोट के बाद वहां की सुरक्षा पर मंथन शुरू हो चुका था. आतंकियों की पहचान व उनके प्रवेश के रास्तों की खोज शुरू हो चुकी थी.
अलग-अलग बिंदुओं पर जांच शुरू हुई थी. इसी बीच महाबोधि मंदिर परिसर के बाहर लाल पत्थर की 58 दुकानों को भी मंदिर की सुरक्षा में बाधक मानते हुए निर्णय किया गया कि उन्हें हटा दिया जाये. दुकानदारों का विरोध काम नहीं आया और 25 जुलाई 2013 को सभी दुकानों को जमींदोज कर दिया गया. हालांकि, दुकानदारों को दुकानें उपलब्ध कराने व मुआवजे का भी भरोसा दिया गया था. लेकिन, अब तक दुकानदारों के लिए मुकम्मल रूप से कोई व्यवस्था नहीं की गयी है.
करनी किसी और की, सजा भुगत रहा कोई और
इस बारे में नागरिक विकास मंच, बोधगया के अध्यक्ष सुरेश सिंह का कहना है कि करनी किसी औरों (आतंकी) की थी, पर सजा मिली बोधगया के 58 दुकानदारों व उनके परिवारों को. आज भी यह सवाल कौंध रहा है कि लाल पत्थर के 58 दुकानदार कहां चले गये? उनके परिजनों की स्थिति कैसी है? यह पूछने-देखने वाला भी कोई नहीं है. बोधगया टेंपल मैनेजमेंट कमेटी (बीटीएमसी) के पूर्व सचिव डॉ कालीचरण सिंह यादव ने बताया कि बम ब्लास्ट के बाद दुकानों को हटाना सही फैसला नहीं था. इससे हजारों लोग बेरोजगार हो गये व ज्यादातर लोग गरीबी का दंश झेलने पर मजबूर हो गये. उन्होंने कहा कि सुरक्षा को लेकर विस्थापित दुकानदारों को पुनर्वासित किया जाना चाहिए.

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