13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

नक्सलियाें के ठाैर पर की गयी चाेट, तभी ताे गढ़ में भी पड़े वाेट

कंचन, गया : राज्य में नक्सलियाें का गढ़ माना जाने वाला क्षेत्र मगध यानी दक्षिण बिहार, जहां के अधिकतर हिस्सों में पहले चरण का मतदान 11 अप्रैल काे संपन्न हाे गया. संपन्न ऐसा हुआ, जैसे लगा मतदान हुआ ही न हुआ हाे. राज्य में लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में नक्सली खौफ पर […]

कंचन, गया : राज्य में नक्सलियाें का गढ़ माना जाने वाला क्षेत्र मगध यानी दक्षिण बिहार, जहां के अधिकतर हिस्सों में पहले चरण का मतदान 11 अप्रैल काे संपन्न हाे गया. संपन्न ऐसा हुआ, जैसे लगा मतदान हुआ ही न हुआ हाे.

राज्य में लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में नक्सली खौफ पर बिहार के मतदाताओं ने खूब चोट किया. पिछले साल की तुलना में 2.27 प्रतिशत अधिक वोटिंग के साथ ही वोटरों ने यह जता दिया कि प्रदेश में लोकतंत्र की जड़ें और मजबूत हो रही हैं.
गया, औरंगाबाद, नवादा व जमुई में हुए मतदान पर नक्सली खौफ का कोई असर नहीं रहा. 2014 लोकसभा चुनाव का रिकॉर्ड तोड़कर मतदाताओं ने 53.50 प्रतिशत मतदान किया. पिछले चुनाव से यह करीब 2.27 फीसदी अधिक है. गया में सबसे अधिक 56 प्रतिशत तो औरंगाबाद में सबसे कम 51.5 प्रतिशत वोटिंग हुई. वहीं नवादा में 52.5 व जमुई में 54 प्रतिशत वोट पड़े.
चार महीने से जंगल, पहाड़ की खाक छान रहे थे अर्द्धसैनिक बलाें के जवान : तीन सालाें में बिहार-झारखंड की सीमा पर स्थित गया जिले व आैरंगाबाद के सीमा क्षेत्र डुमरिया, इमामगंज, बांकेबाजार, बाराचट्टी आमस व मदनपुर, देव इलाके में सीआरपीएफ के सेवरा, छकरबंधा, लुटुआ, काेठी-सलैया, इमामगंज, डुमरिया, बाराचट्टी, मदनपुर में कैंप स्थापित किये गये.
छकरबंधा व बाराचट्टी में काेबरा बटालियन के कैंप स्थापित हैं. पिछले चार महीने से अद्धसैनिक बलाें के जवानाें ने जंगल, पहाड़ का काेना-काेना छान मारा.
इस इलाके के नेतृत्व करने वाले तीन नक्सली कमांडर संदीप, अरविंद भुइयां व भाेक्ता अॉपरेशन के बाद क्षेत्र छाेड़ अपनी कंपनी के साथ भाग खड़े हुए. गांवाें में इनके द्वारा बनाये गये स्लीपर सेल के कार्यकर्ता छिटपुट रूप से अपनी उपस्थिति बनाये रखने के लिए बनावटी बम, पाेस्टर, पर्चा बीच-बीच में छाेड़ते रहे. पर, जनता जिन्हें लाेकतंत्र में विश्वास जाग गया है. उनके झांसे में नहीं आ रहे हैं. ना ही उन्हें सेल्टर दे रहे हैं.
नक्सलियाें के खिलाफ चलाये गये अॉपरेशन व स्थापित कैंप से बढ़ा विश्वास
एक आेर जहां नक्सलियाें के जंगल में छिपने की जगह पर ‘अॉपरेशन ग्रीन हंट’ व ‘अॉपरेशन सफलता’ जैसे अभियान चलाये गये. वहीं, पनाहगाराें के बीच ‘सिविक एक्शन प्लान’ के तहत जन उपयाेगी सामान बांटे गये. उन्हें छाेटे-छाेटे प्रशिक्षण देकर राेजी-राेजगार से जाेड़ा गया. खेलकूद के माध्यम से आपसी समन्वय बनाया गया.
तब जाकर प्रशासन जनता के बीच पैठ जमा पाया आैर उनके विश्वास काे जीतने में कामयाबी मिली. फिर, नक्सलियाें के गढ़ में काेबरा व सीआरपीएफ के कई कैंप स्थापित कर दिये गये. इससे जनता का आैर विश्वास बढ़ा आैर दूर हाेने लगा नक्सलियाें का खाैफ.
बदली सरकार, बदले हालात
इस क्षेत्र में 1980 के दशक से 2000 तक नक्सलियाें की तूती बाेलती थी. नतीजा यह भी हुआ कि प्रतिशाेध में प्रतिक्रियावादी कुछ निजी सेनाएं भी पनप गयीं. नरसंहाराें का दाैर शुरू हाे गया. सरकार बदली आैर हालात भी बदले. यह सब एक दिन में संभव नहीं हुआ.
इसमें शासन-प्रशासन व इस व्यवस्था से ऊब चुके लाेगाें ने भी खूब मदद की. जनता दाे चक्की में पीस रही थी. एक ताे नक्सलियाें या निजी सेनाआें की प्रताड़ना व दूसरी आेर प्रशासन के अॉपरेशन के दाैरान पकड़े जाने के बाद जेल में ठूंसे जाने का.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें