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पितृपक्ष : हमारे पूर्वजों को मोक्ष मिले, हमारी संतानें भी धार्मिक हों

गया : आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा यानी शनिवार को 17 दिनी गया श्राद्ध करने आये पिंडदानियों ने प्रेतशिला में पिंडदान व तर्पण किया. शहर से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित प्रेतशिला पर प्रेतबाधा से मुक्ति के लिए सत्तु उड़ाने की परंपरा है. पिंडदानियों ने पहाड़ के नीचे स्थित ब्रह्मकुंड में तर्पण कर पिंड को गोशाला […]

गया : आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा यानी शनिवार को 17 दिनी गया श्राद्ध करने आये पिंडदानियों ने प्रेतशिला में पिंडदान व तर्पण किया. शहर से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित प्रेतशिला पर प्रेतबाधा से मुक्ति के लिए सत्तु उड़ाने की परंपरा है. पिंडदानियों ने पहाड़ के नीचे स्थित ब्रह्मकुंड में तर्पण कर पिंड को गोशाला में छोड़ा है. इसके बाद 676 सीढ़ियां चढ़ कर प्रेतशिला पर्वत के बाद प्रेत पर्वत पर तिल मिला सत्तू उड़ा कर पितरों को प्रेतयोनि से मुक्ति दिलायी. इस दौरान पूरा परिसर कर्मकांड के मंत्रों से गूंजता रहा.

कर्मकांड पूरा करने के बाद पिंडदानियों ने पितरों के लिए तालियां बजा कर उनके मोक्ष की कामना की और अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी उनकी तरह धार्मिक बनने की प्रार्थना की. कहा जाता है कि किसी कारण से व्यक्ति की अकाल मृत्यु हो जाने पर वह प्रेतात्मा हो जाते हैं. प्रेत योनि से प्राणी को मुक्ति दिलाने के लिए ही यहां पिंडदान किया जाता है. शनिवार को बड़ी संख्या देश के अलग-अलग हिस्सों से आये लोगों ने यहां पिंडदान किया. अधिक भीड़ होने की वजह से लोग पहाड़ पर भी पिंडदान करते दिखे. सुबह भीड़ कम रही, लेकिन दिन चढ़ने के साथ भीड़ भी बढ़ती गयी. हालांकि यहां के पंडों ने बताया कि पहले की अपेक्षा भीड़ बहुत कम है. उन्होंने उम्मीद जतायी एक-दो दिनों के बाद भीड़ बढ़ेगी. इधर, प्रेतशिला में पिंडदान करने के बाद श्रद्धालुओं ने रामशिला व रामकुंड में भी पिंडदान व तर्पण किया.

व्यवस्था से संतुष्ट दिखे पिंडदानी
प्रेतशिला में प्रशासनिक स्तर पर जो व्यवस्थाएं की गयी हैं. पिंडदानी उससे संतुष्ट दिखे. पार्किंग के लिए भी व्यापक इंतजाम थे. बड़ी गाड़ियों को किसान कॉलेज के पास मैदान में लगाया गया, तो मोटरसाइकिल को प्रेतशिला प्रवेश के पास. नगर निगम के सफाईकर्मी भी कचरा साफ करते दिखे. पिंडदानी व स्थानीय लोगों के मुताबिक पहाड़ चढ़ने के दौरान सबसे अधिक जरूरत पानी की होती है. पिछले साल ही नीचे से ऊपर तक पाइपलाइन बिछा कर पानी का इंतजाम कर दिया गया था, जो इस बार भी चालू है. पहाड़ पर चढ़ने व उतरने वाले लोगों को पानी के लिए परेशान नहीं होना पड़ा.
खटोला से आने-जाने का भाड़ा तय
प्रेतशिला के ऊपर चढ़ना व उतरना एक चुनौतीपूर्ण काम है. अधिक उम्र व बीमार व्यक्ति के लिए 676 सीढ़ी चढ़ना बहुत मुश्किल है. ऐसे में आसपास के गांव के लोगों द्वारा वर्षों से यहां पारंपरिक खटोला की व्यवस्था की जाती है. ग्रामीणों को रोजगार मिल जाता है और लोगों को बैठ कर ऊपर जाने का जरिया. प्रशासनिक स्तर पर खटोला पहाड़ पर ले जाने व ले आने का दर निर्धारित कर दिया गया है. पहाड़ की सीढ़ियां चढ़ने के साथ बोर्ड लगा है. इस पर ऊपर जाने के लिए 250 व नीचे आने के लिए 250 रुपये निर्धारित किये गये हैं.
चार पीढ़ियों ने एक साथ किया तर्पण
तकनीक के इस जमाने में कभी-कभी यह लगता है कि लोग तेजी से बदल गये हैं. लेकिन, हर साल गया जी में होने वाले पिंडदान व तर्पण में आने वाले लाखों लोगों को देख कर यह लगता है कि दुनिया जितनी तेजी से बदलती दिख रही है, उतना है नहीं. आज भी हजारों-लाखों लोग अपनी सनातन परंपराओं को जीवित रख रहे हैं. रोजमर्रा के जीवन में भले ही उन्हें धार्मिक कार्यों में समय देने का वक्त नहीं मिल रहा हो, लेकिन अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए बनी वैदिक परंपरा का निर्वहन करने वह गयाजी पहुंच गये हैं. ऐसा ही एक परिवार दिखा प्रेतशिला में. विशाखापत्तनम के रहने वाले रामअवतार गुप्ता अपनी चार पीढ़ियों के साथ यहां अपने पुश्तों का तर्पण करने पहुंचे हैं. परिवार में महिला- पुरुष मिला कर कुल 25 लोग आये हैं. इनमें दादा, पिता, पोता व परपोता हैं. श्री गुप्ता ने बताया कि नौकरी, पैसा, शोहरत सब अपनी जगह है, लेकिन अपनी परंपराओं को जीवित रखना सबसे अहम है. हमारी सभ्यता और संस्कृति ही हमारी जड़ें हैं. इनके कमजोर होने से मनुष्य का अस्तित्व ही खत्म हो जायेगा.

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